5 करोड़ छोड़ साध्वी बन दे रहीं जैन धर्म की शिक्षा
इंदौर, 30 अगस्त; पिछले 15 साल से साध्वी जिनप्रज्ञाश्रीजी बनकर गांव-गांव,शहर-शहर घूमकर जैन धर्म की शिक्षा दे रही हैं. नातिन को जैन दीक्षा लेते देख नाना का दिल पिघला तो कहा बंगला, गाड़ी और 5 करोड़ तुम्हारे नाम से डिपॉजिट करता हूं, दीक्षा मत लो. तुम्हारी इच्छा है तो धर्म का प्रचार-प्रसार सांसारिक जीवन में रहकर ही करो, लेकिन उच्च शिक्षित नातिन नहीं मानी. दीक्षा से पहले वे कास्मेटिक के क्षेत्र में व्यवसाय करती थीं . इसका टर्न ओवर 70 लाख सालाना था. व्यवसाय से पहले हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड में सेल्स के क्षेत्र में उंचे ओहदे पर कुछ वर्ष सेवाएं दी. 15 साल पहले साध्वी प्रशामिताश्रीजी से अहमदाबाद में दीक्षा ली.
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साध्वी जिनप्रज्ञाश्रीजी कहती है कि शुरू से वे खुले विचारों की रही है. उन्हें स्वतंत्र रहना पसंद था. गुरु के एक सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने कहा तुम स्वतंत्र रहना चाहती हो लेकिन तुम्हारी हर खुशी धन से जुड़े है. तुम्हे नहीं लगता की तुम धन पर निर्भर हो गई हो.
वो बताती हैं कि नानाजी शुरु में मेरे दीक्षा के फैसले से परेशान हुए लेकिन बाद में मेरे विचारों से सहमत हो गए. मेरा मानना है कि आत्मबोध के लिए मन को काबू में रखना आवश्यक है. शिकायत नहीं करना चाहिए और जीवन में विनम्रता अति आवश्यक है.
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उनकी विशिष्टताएं
– अग्रेंजी, गुजराती, मराठी, हिंदी, फ्रेंच, रशियन, जर्मनी के साथ संस्कृत और प्राकृत भाषा सहित 9 भाषाएं आती है.
– शास्त्री संगीत की विशेष जानकारी है होने के चलते बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया के साथ वे संगत भी कर चुकी है.
– अब तक गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बंगाल,बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सहित देशभर में 30 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं.
– 25 जैन धार्मिक पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है. इन दिन वे प्रतिक्रमण सूत्र पर काम कर रहें है.
– 11 साल की उम्र में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड जीता था. इसके बाद वे 40 दिन तक सोवियत संघ में रही थी.
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