कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों का पहला जत्था पहुंचा पहली मंजिल, 13 राज्यों से 58 यात्री
कैलाश मानसरोवर यात्रियों का पहला दल अपनी यात्रा के पहले पड़ाव पर पहुचा। 13 राज्यों के 58 यात्री बसों से बूंदी पहुंचें। इनमें नौ महिलाएं हैं। इस दल को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 11 जून 2019 को नई दिल्ली से रवाना किया था.
इस वर्ष नाथूला मार्ग से 10 और लिपुलेख मार्ग से कुल 18 यात्री दलों के जाने की अनुमति है। नाथूला मार्ग से प्रत्येक बैच में 50 यात्री और परंपरागत लिपुलेख मार्ग से प्रत्येक मैच में 60 यात्रियों को ले जाया जाएगा। वर्ष 1981 में प्रारंभ हुए कैलाश मानसरोवर यात्रा में हर साल यात्रियों की संख्या में इजाफा होता आया है। हर साल इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आईटीबीपी के कंधों पर होती है।
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कैलाश मानसरोवर की यात्रा एक दुर्गम यात्रा है, पर जो लोग इसे करते हैं उनमें भगवान शिव के इस पावन धाम के दर्शन की लालसा होती है। कैलाश मानसरोवर तिब्बत में कैलाश माउंटेन रेंज में 21,778 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. हिंदू इसे भगवान शिव का निवास स्थान मानते हैं। इस यात्रा को कर चुके श्रद्धालुओं के भाव सुनने योग्य होते हैं, 2016 में कैलाश-मानसरोवर की यात्रा पर गए दिल्ली के नरेश मित्तल ने बताया कि, “हमारे मन में यात्रा को लेकर डर नहीं था, हां यात्रा कठिन होती है ये सुना था, पर ऐसा कुछ लगा नहीं। हां, बड़े आध्यात्मिक अनुभव जरूर हुए। मानसरोवर पर रात में हम गुरुजी के साथ बैठे थे, तो ऐसा अहसास हुआ कि ब्रह्मर्षि सरोवर से स्नान करके बाहर आ रहे हो। वहां मंत्रजाप करके बहुत अच्छा लगा। बहुत ही अच्छा लगा, यात्रा इतनी आसानी से हुई कि पता नहीं चला”।
2018 में 2-7 मई तक होने वाली पांच दिवसीय कैलाश यात्रा आयोजित करने वाले भागवताचार्य संजीवकृष्ण ठाकुरजी से समझना चाहा कि ये कैसे संभव होता है। उन्होंने रिलीजन वर्ल्ड को बताया कि, ” भारत में जिसने भी जन्म लिया हो, उसके लिए धर्म की चेतना प्राप्त करने में तीर्थों का योगदान खास है। चेतना को ईश्वर से तादात्म करने में इन तीर्थों का खास महत्व है। मेरे मन में ये विचार आया कि शिव से साक्षात्कार के लिए केवल कैलाश ही एक मात्र तीर्थ है। पर सुना था कि यात्रा कठिन होती है, बचपन से सुना था इस यात्रा के बारे में। सीमा के हिसाब ये चीन में भले हो, पर आध्यात्मिक धरातल पर ये भारत का ही हिस्सा लगता है। पर इसका नाम सुनते ही लगता था कि बहुत सारी चुनौतियां होंगी। कैलाश-मानसरोवर का नाम सुनते ही मन में खयाल आता है कि, दुर्गम पहाड़ होंगे, कठिनाइयां होंगी, बर्फ पर चलना होगा, भूखे-प्यासे चलना पड़ेगा। पर भगवान शंकर का नाम लेकर ये निश्चय किया कि ये यात्रा किया जाए। बहुत सारे लोगों के मन में ये इच्छा, भय के साथ रहती है। वर्ष 2016 में मुझे ये सौभाग्य मिला। हम छठवें दिन कैलाश की यात्रा करके लखनऊ लौट आए थे। मेरे साथ 75 साल की एक वृद्ध महिला भी गई, उनकी सुखद यात्रा देखकर आज भी मन प्रसन्न होता है। हम लखनऊ से नेपालगंज गए, फिर वहां से सभी को छोटे विमान से आगे की यात्रा हुई। हम ताकलाकोट हैलीकाप्टर से पहुंचे। हम वहां दो दिन रूके, इससे हमारा स्थानीय माहौल से तालमेल हो गया। ताकलाकोट से एक घंटे की दूरी पर ही है कैलाश। चीन की सड़कें ऐसी कि आप गाड़ी में चाय भी पिएं, तो वो भी न हिले। धरती पर एक ही तो स्थान है जहां आप जीते जी जा सकते है। भगवान विष्णुजी और ब्रह्मा के यहां तो जीवन के बाद जाया जाता है और केवल कैलाश ही तो है जहां साक्षात शिव आज भी बसे है, और आप जा सकते है। कैलाश पर्वत पर पहुंचकर हमने सबसे पहले राक्षस ताल के दर्शन किए, जहां रावण ने शिव की आराधना करी थी। मानसरोवर में स्नान के वक्त कई भक्तों की आंसुओं की धार बह रही थी। परिक्रमा के बाद मानसरोवर पर रात्रि विश्राम का अवसर मिला। वहीं परमार्थ कुटिया पर रूके। उस रात किसी को वहां नंदी बैल दिखे तो, किसी को भगवान गणेश तो किसी को ऊँ की आकृति नजर आ रही थी। ऐसा सुना था कि ब्रह्म मूहूर्त में देवता मानसरोवर में स्नान करने आते है। हम रात ढ़ाई बजे ही मानसरोवर किनारे पहुंच गए। साढे तीन बजे पानी के बीच एक धार सी बन गई, जैसे कोई पानी के बीच उतर आया हो। मेेरे साथ कई भक्तों ने इस दृश्य को देखा। सुबह पुन: स्नान किया और सौभाग्य मिला हमें हवन करने का। सबने हवन में हिस्सा लिया। फिर हम यम द्वार पर गए, मान्यता है कि मरने के बाद सभी आत्माएं वहीं से गुजरते, शिव के सामने से। एक बार कैलाश जरूर जाए, बहुत ही सरलता और सहजता ये यात्रा होती है। बहुत ही आनंद से होती है ये यात्रा। ये तो कष्टों से मुक्ति की यात्रा है। आप भी कैलाश जाएं और कैलाशी कहलाएं। इस पूरी यातरा में कोई असुविधा नहीं होती, ये मेरा निजी अनुभव है”।
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