जानिये कहां विदेशी महिलाएं कर रही पिंडदान
गया, 9 सितम्बर; गया में विदेशी श्रद्धालुओं का एक ग्रुप अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर तर्पण व पिंडदान के कार्यों में जुटा था. इन सभी विदेशी श्रद्धालुओं को गया पाल पंडा पुरुषोत्तम लाल कटरियार गोपाल लाल कटरियार सहित अन्य के नेतृत्व में लोक नाथ गौड़ दास ने पिंडदान के कर्मकांडों को पूरा कराया.
अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के 20 पर्यटकों ने पिंडदान व तर्पण किया. यहां आकर मिली शांति मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान शुक्रवार को देवघाट का नजारा कुछ बदला-बदला सा दिखा.
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हर किसी की निगाहें बस एक ही ओर टिकी थीं. जर्मनी की इवगेनिया ने कहा कि इंडिया धर्म और आध्यात्म की धरती है. गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है. मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूं.
गया में पिंडदान से मिलता है मोक्ष
मान्यता है कि जो लोग अपना शरीर छोड़ जाते हैं वे किसी भी लोक में या किसी भी रूप में हों, श्राद्ध पखवाड़े में पृथ्वी पर विष्णुपद क्षेत्र में आते हैं और श्राद्ध व तर्पण से तृप्त होते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है. यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है परंतु फल्गु नदी के तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है. कहा जाता है कि भगवान राम और देवी सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था.
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श्राद्ध की मूल कल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद पर आधारित है. कहा गया है कि आत्मा अमर है जिसका नाश नहीं होता. श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं पितरों और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है. गया को विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है. विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग में वास करते हैं. माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है.