भगवान गणेश के सिद्ध नाम उनके अर्थ – गणपति के अवतारों की व्याख्या
- पुराणों में गणपति के 12 अवतारों का विशेष जिक्र
- बारह अवतार – सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन
भगवान श्री गणेश के 12 नामो का अति महत्व है ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी के 12 नामों का है। रोजाना इनके यह नाम लेने से सुख समृधि में वृद्धि होती है। यह नाम ज्ञान, बुद्धि और रोजगार के कार्यो में उन्नति में सहायक है। देवताओं की रक्षा गणेश के सभी अवतारों ने कई बार की है। इन्हें इसी कारण विध्नविनाशायक भी पुकारा जाता है।
भगवान श्रीगणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमशः पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की गणेश जी का मुख प्रति पल देखने पर नया ही लगता है। साथ ही भोलेनाथ शंभु को कर्पूरगौर अर्थात कपूर गौर वर्णवाला कहा जाता है। साथ ही इनके मुंह की संपूर्ण शोभा का आकलन करते हुए इन्हें मंगल के प्रतीक के रूप में माना गया है और इसलिए इन्हें सुमुख के रूप में संबोधित किया जाता है। जब तक गणेश जी के मुंह में दो दांत थे, तब तक उनके मन में द्वैतभाव था, परंतु एक दांतवाला हो जाने के बाद वे अद्वैत भाव वाले बन गए। एक शब्द माया का बोधक है और दांत शब्द मायिक का बोधक है। श्री गणेश जी में माया और मायिक का योग होने से वे एकदंत कहलाते हैं।
हर शुभ कार्य की शुरुआत में लेने पर सुनिश्चित सफलता देने वाले माने गए हैं, लेकिन अनेक धर्मावलंबी श्री गणेश के इन नामों के पीछे छुपे अर्थ से परिचित नहीं है। इसलिए यहां संक्षिप्त रूप में बताया जा रहा है इन नामों का शाब्दिक अर्थ। जिनको जानकर गणेश का स्मरण भाव भरा और आनंदमयी होकर शुभ फलदायी हो जाएगा।
भगवान गणेश के ये नाम और उनका अर्थ इस प्रकार है।
पहले जानें इनका शास्त्रोक्त रूप…
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्रनाशो विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणव स्वरूप हैं। उनके अनन्त नामों में सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन− ये बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।
भगवान गणपति के प्राकट्य, उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम विग्रह के विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं। उनके सभी चरित्र अनन्त हैं।
पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्रीपार्वतीजी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगाजी में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वतीजी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्माजी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।
ऐसा हैं लिंगपुराण के अनुसार भगवान गणेश का स्वरूप
एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने तथास्तु कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेशजी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने सुमन−वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार−बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेशजी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया। इसी तरह से ब्रह्मवैवर्तपुराण, स्कन्दपुराण तथा शिवपुराण में भी भगवान गणेशजी के अवतार की भिन्न−भिन्न कथाएं मिलती हैं।
ऐसा हैं भगवान श्रीगणेशजी का परिवार
प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि−बुद्धि नामक दो कन्याएं गणेशजी की पत्नियां हैं। सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नामक शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए। शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेशजी का वाहन बताया गया है। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड में उल्लेख है कि कृतयुग में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेज स्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है। त्रेता में उनका वाहन मयूर है, वर्ण श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर नाम से विख्यात हैं और छह भुजाओं वाले हैं। द्वापर में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहन वाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं। कलियुग में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरुढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ हैं तथा उनका नाम धूम्रकेतु है। मोदकप्रिय श्रीगणेशजी विद्या−बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता तथा थोड़ी उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं।
उनके जप का मंत्र ‘ओम गं गणपतये नमः’ है।
इस गणेशोत्सव में आपकी राशि के अनुसार गणेश जी के 12 अवतारों में से आपको किसकी करनी चाहिए पूजा, जानिए ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी से….
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1. सुमुख (वक्रतुंड) – भगवान गणेश जी का पहला अवतार वक्रतुंड (सुमुख) कहलाता है जिनकी सवारी सिंह है।भोलेनाथ और माता पार्वती के दोनों पुत्रों को स्वाभाविक रूप से ही सुमुखी कहा जाता है। गणेश जी के मुँह की संपूर्ण शोभा का आंकलन करते हुए इन्हें मंगल के प्रतीक के रूप में माना गया है और इसलिए इन्हें सुमुख के रूप में संबोधित किया जाता है। गणेश जी का यह अवतार मनुष्य के अंदर बैठे द्वेष को दूर करके सफल इंसान बनाने में सहायक होता है। मेष राशि वालों को गणेश जी के इस अवतार की पूजा करनी चाहिए।
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2. एकदंत – गणेश जी का दूसरा अवतार है एकदंत। एक दांत होने के कारण गणेश जी अपने इस अवतार में एक दंत के नाम से जाने जाते हैं। इनका वाहन मूषक है और यह मनुष्य के अंदर विराजमान अहंकार को दूर करके मनुष्य को समाज में मान-सम्मान दिलाते हैं। वृषभ राशि के व्यक्तियों को गणेश जी के इस अवतार की पूजा करनी चाहिए। विष्णु के अवतार भगवान परशुराम जी के प्रहार से गणेश जी का एक दांत टूट गया। इस कारण गणेश जी को एकदन्त भी कहा जाता है। एकदंत की भावना ऐसा भी दर्शाती है कि जीवन में सफलता वही प्राप्त करता है, जिस का एक लक्ष्य हो।एक शब्द माया का बोधक है और दाँत शब्द मायिक का बोधक है। श्री गणेश जी में माया और मायिक का योग होने से वे एकदंत कहलाते हैं।
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3. कपिल ( महोदर ) – गणेश जी अपने तीसरे अवतार में महोदर कहलाते हैं। कपिल का अर्थ गोरा, ताम्रवर्ण, मटमैला होता है। गणेश जी विघ्न दूर करते हैं और दिव्य भावों द्वारा त्रिविध ताप का नाश करते हैं। जिस प्रकार कपिला गाय धूँधले रंग की होने पर भी दूध, दही, घी आदि पौष्टिक पदार्थों को दे कर मनुष्यों का हित करती है उसी तरह कपिलवर्णी गणेश जी बुद्धिरूपी दही, आज्ञारूप घी, उन्नत भावरूपी दुग्ध द्वारा मनुष्य को पुष्ट बनाते हैं तथा मनुष्यों के अमंगल का नाश करते हैं, विघ्न दूर करते हैं। इनका वाहन मूषक है और यह मनुष्य में मौजूद मोह, अज्ञान और दुर्बुद्धि का अंत करते हैं। मिथुन राशि के व्यक्तियों को गणेश जी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
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4. गजकर्ण (गजानन) – गणेश जी अपने चौथे अवतार में गजानन कहलाते हैं। गणेश जी का यह अवतार कुबेर के पुत्र लोभ का अंत करने के लिए हुआ है। हाथी का कान सूप जैसा मोटा होता है। गणेश जी को बुद्धि का अनुष्ठाता देव माना गया है। मनुष्य के अंदर लोभ को अंत करने के लिए गणेश जी के इस रूप की पूजा विशेष फलदाययी होती है। कर्क राशि के व्यक्तियों को गणेश जी के इस अवतार की पूजा करनी चाहिए।
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5. लंबोदर – लंबोदर के नाम से गणेश जी अपने पांचवें अवतार में जाने जाते हैं। भगवान शंकर के द्वारा बजाए गए डमरू की आवाज के आधार पर गणेश जी ने संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। माता पार्वती जी के पैर की पायल की आवाज से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया। शंकर का तांडव नृत्य देख कर नृत्य विद्या का अध्ययन किया। क्रोधासुर यानी मनुष्य के अंदर विराजमान क्रोध का अंत करने वाले यह गणेश जी हैं। सिंह राशि वालों को गणेश जी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
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6. विकट – गणेश जी अपने छठे अवतार में विकट दिखते हैं इसलिए इनके इस अवतार का नाम ही विकट है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है भयानक किंतु यहां पर विघ्रनाश के अर्थ में श्री गणेश को विकट या भयंकर माना गया है। विकट अर्थात भयंकर। गणेश जी का धड़ मनुष्य का है और मस्तक हाथी का है। श्री गणेश अपने नाम को सार्थक बनाने के लिए समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए विघ्नों के मार्ग में विकट स्वरूप धारण करके खड़े हो जाते हैं। गणेश जी अपने इस अवतार से मनुष्य में मौजूद काम भाव का अंत करते हैं। कन्या राशि वालों को गणेश जी के इस अवतार की पूजा करनी चाहिए।
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7. विघ्नविनाशक – गणेश जी का सातवां अवतार है विघ्नराजा का। वास्तव में भगवान गणेश समस्त विघ्नों के विनाशक हैं और इसलिए किसी भी कार्य के आरंभ में गणेश पूजा अनिवार्य मानी गई है। अपने नाम के अनुसार ही गणेश जी का यह अवतार भक्तों के विघ्नों को दूर करने वाला है। अपने इस अवतार में गणेश जी शेषनाग पर विराजमान होते हैं और अहं का अंत करते हैं। तुला राशि वालों को गणेश जी के इस अवतार की पूजा करनी चाहिए।
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8. महोत्कट – गणेश पुराण के अनुसार हर युग में गणेश जी का एक अवतार होगा और अब तक इनके तीन अवतार हो चुके हैं। सतयुग में गणेश जी ने महोत्कट अवतार लिया था। इस अवतार में गणेश जी ने धूम्रराक्षस, देवांतक और नरांतक का वध करके धर्म की रक्षा की। धनु राशि वालों को इनकी पूजा करनी चाहिए।
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9. धूम्रवर्ण (धूम्रकेतु) – धूम्रवर्ण गणेश जी के आठवें अवतार हैं। इनकी सवारी घोड़ा है और यह मनुष्य में मौजूद अभिमान का अंत करने वाले हैं। वृश्चिक राशि वालों को इनकी पूजा करनी चाहिए।मनुष्य के आध्यात्मिक और आदि भौतिक मार्ग में आने वाले विघ्नों को अग्नि की तरह भस्मिभूत करने वाले गणेश जी का धूमकेतु नाम यथार्थ लगता है। गणेश जी का यह अवतार धूम्रकेतु नाम से होगा जिनका रंग धुएं के समान होगा। इनका वाहन अश्व होगा। इस अवतार में कई असुरों का वध करके गणेश जी कलियुग का अंत करेंगे।
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10. गणाध्यक्ष (गणों के स्वामी) – इसके अनेक अर्थ हैं, मसलन गण जैसे देवता, नर, असुर, नाग या धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के स्वामी। दूसरा, गण यानी समूह रूपी जगत के पालनकर्ता। तीसरा संसार में गण यानी गिन सकने वाले हर पदार्थ के स्वामी। चौथा शिवगणों के स्वामी आदि।गणपति जी दुनिया के पदार्थ मात्र के स्वामी हैं। साथ ही गणों के स्वामी तो गणेश जी ही हैं। इसलिए इनका नाम गणाध्यक्ष है।
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11. भालचन्द्र (मयूरेश) – त्रेतायुग में भगवान शिव और पार्वती के पुत्र के रूप में गणेश जी ने अवतार लिया और यह मयुरेश्वर कहलाए। गजानन जी अपने ललाट पर चंद्र को धारण करके उसकी शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को आच्छादित करते हैं। साथ ही ऐसा भाव भी निकलता है कि व्यक्ति का मस्तक जितना शांत होगा, उतनी कुशलता से वह अपना कर्तव्य निभा सकेगा। गणेशजी गणों के पति हैं। इसलिए अपने ललाट पर सुधाकर हिमांशु चंद्र को धारण करके अपने मस्तक को अतिशय शांत बनाने की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को समझाते हैं।
इन्होंने इस अवतार में सिंधु नाम के असुर का अंत किया और अपने भाई कार्तिकेय को मयूर वाहन भेंट कर दिया। मकर राशि वालों को इनकी पूजा करनी चाहिए।
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12. गजानन – द्वापर युग में गणेश जी गजानन हुए और इन्होंने सिंदुरासन नाम के असुर का अंत किया। गजानन अर्थात हाथी के मुंह वाला। हाथी की जीभ अन्य प्राणियों से अनोखी होती है। मनुष्य के लिए यह सही है। अच्छी वाणी उसे चढ़ाती है और खराब वाणी उसे गिराती है। मगर, हाथी की जीभ तो बाहर निकलती ही नहीं। यह तो अंदर के भाग में है। अर्थात इसे वाणी के अनर्थ का भय नहीं है। उन्होंने कहा गणेश जी की स्तुति हर तरह से भक्तों की विघ्न दूर करने वाली और सुख संपत्ति को देने वाली है। कुंभ राशि वालों को इनकी पूजा करनी चाहिए।
भगवान गजानन के कई अवतार हो चुके हैं। लेकिन पुराणों में इनके 12 अवतारों का विशेष जिक्र किया गया है और बताया है कि हर अवतार का अलग-अलग राशियों से संबंध है इसलिए अपनी राशि के अनुसार गणेश जी के अलग-अलग अवतारों को ध्यान और पूजन करना चाहिए।
(1) मेष व वृश्चिक राशि वाले व्यक्ति रक्त वर्ण के गणेशजी का पूजन करें। माणिक्य, लालड़ी, मूंगा या रक्तवर्ण की कोई भी वस्तु के गणेश आपको शुभ फल देगें।
(2) वृषभ व तुला राशि के व्यक्ति सफेद या हल्के बादामी रंग के गणपति का पूजन करें या इस वर्ण की कोई और वस्तु के गणेश पूजें।
(3) मिथुन व कन्या राशि के व्यक्ति हरे रंग के गणपति का पूजन करें।
(4) कर्क राशि के व्यक्ति श्वेत वर्ण या क्रीम वर्ण के गणपति का पूजन करें।
(5) कुंभ व मकर राशि के व्यक्ति नील वर्ण के गणपति का पूजन करें।
(6) धनु व मीन राशि के व्यक्ति पीतवर्ण के गणपति का पूजन करें। हरिद्रा गणपति के पूजन से अधिक लाभ होगा।
(7) सिंह राशि के व्यक्ति लाल वर्ण के या गुड़ के गणपति का पूजन कर सकते है।