हर देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा विधि और पूजा सामग्रियां अलग-अलग तरह की होती हैं। वहीं हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। किसी भी शुभ कार्य के शुभारंभ और धार्मिक- मांगलिक कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
आज गणेश चतुर्थी है और आने वाले दस दिन तक भगवान गणेश अपने भक्तों के घर में विराजेंगे और भक्त उनकी प्रिय चीज़ें उन्हें अर्पित करेंगे. गणेश जी की प्रिय वस्तुओं में दूर्वा भी आती है. भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा (घास) जरूर चढ़ाई जाती है।
आखिर दूर्वा (घास) में ऐसा क्या है जिसकी वजह से भगवान गणेश इसे इतना पसंद करते हैं। आइये यहां जानते हैं …
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नाम का एक दैत्य हुआ करता था। अनलासुर का आतंक चारों तरफ फैला था। इस दैत्य के आतंक से सारे देवी-देवता बहुत ही परेशान हो गए थे। कोई भी देवता इस राक्षस को मार नहीं पा रहे थे। तब सभी देवता अनलासुर के आतंक से त्रस्त होकर भगवान गणेश की शरण में गए। तब भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया था।
अनलासुर को निगलने के कारण भगवान गणेशजी के पेट में बहुत जलन होने लगी थी। उनकी इस जलन को शांत करने के लिए मुनियों ने उन्हें खाने के लिए दूर्वा घास दी। इसे खाते ही भगवान गणेश के पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश की पूजा में उन्हें दूर्वा चढ़ायी जाने लगी।
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ये है दूर्वा चढ़ाने के नियम
माना जाता है कि भगवान गणेश की पूजा-आराधना में दूर्वा चढ़ाने से सभी तरह के सुख और संपदा में वृद्धि होती है। पूजा में दूर्वा का जोड़ा बनाकर भगवान को चढ़ाया जाता है। दूर्वा घास के 11 जोड़ों को भगवान गणेश को चढ़ाना चाहिए। दूर्वा को चढ़ाने के लिए किसी साफ जगह से ही दूर्वा घास को तोड़ना चाहिए। गंदी जगहों से कभी भी दूर्वा घास को नहीं तोड़ना चाहिए।
गणेश मन्त्रों का जाप करें
दूर्वा चढ़ाते समय गणेशजी के 11 मंत्रों का जाप करना चाहिए।
ऊँ गं गणपतेय नम:
ऊँ गणाधिपाय नमः
ऊँ उमापुत्राय नमः
ऊँ विघ्ननाशनाय नमः
ऊँ विनायकाय नमः
ऊँ ईशपुत्राय नमः
ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ऊँ एकदन्ताय नमः
ऊँ इभवक्त्राय नमः
ऊँ मूषकवाहनाय नमः
ऊँ कुमारगुरवे नमः
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