वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी मनाई जानती है . इस दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है. गंगा मात्र एक नदी नहीं है बल्कि आस्था की देवी हैं .
गंदगी को अपने में समा लेने के बाद भी इसकी पवित्रता बरकरार कैसे हैं? जब किसी रहस्य का पता न चले तो उसे चमत्कार कहा जा सकता है। गंगा का यही रहस्य इस नदी को देवी गंगा बनाता है.
लेकिन क्या आप जानते हैं गंगा जी को एक बार एक ऋषि ने पूरा का पूरा गटक लिया था, फिर देवताओं के अनुरोध और भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर उन्होंने गंगा मैया को मुक्त किया ताकि वह भगीरथ के पूर्वजों को मुक्ति प्रदान कर सके.
जिस दिन गंगा मैया को ऋषि ने मुक्त किया वह दिन था वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का. इसलिये इस दिन को गंगा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. आइये जानते हैं वैशाख शुक्ल सप्तमी को घटे इस पूरे घटनाक्रम के बारे में जिसकी गवाही पुराण देते हैं.
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कैसे बनी मां गंगा जाह्नवी
अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिये भगीरथ ने कड़ा तप कर गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने में कामयाबी मिल गई थी. भगवान शिव ने अपनी जटा में लपेट कर गंगा के अनियंत्रित प्रवाह को नियंत्रित तो कर लिया लेकिन बावजूद उसके भी गंगा मैया के रास्ते में आने वाले बहुत से वन, आश्रम नष्ट हो रहे थे.
चलते-चलते वह जाह्नु ऋषि के आश्रम में पंहुच गई जब जाह्नु ऋषि ने गंगा द्वारा मचाई तबाही को देखा तो वे बहुत क्रोधित हुए और गंगा के सारे पानी को पी गये। भगीरथ को अपना प्रयास विफल दिखाई देने लगा.
वह जाह्नु ऋषि को प्रसन्न करने के लिये तप पर बैठ गये। देवताओं ने भी महर्षि से अनुरोध कर गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के महत्व के बारे में बताया. अब जाह्नु ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अपने कान से गंगा मुक्त कर दिया.
मान्यता है कि इसी कारण गंगा को जाहन्वी भी कहा जाता है. जिस दिन उन्होंने गंगा को अपने कान से मुक्त किया वह दिन था वैशाख मास की शुक्ल सप्तमी का. इसलिये इसे गंगा सप्तमी और जाह्नु सप्तमी भी कहा जाता है.
गंगा सप्तमी पर क्या करें
गंगा सप्तमी एक प्रकार से गंगा मैया के पुनर्जन्म का दिन है इसलिये इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है.
यदि गंगा मैया में स्नान करना संभव न भी हो तो गंगा जल की कुछ बूंदे साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है. स्नानादि के पश्चात गंगा मैया की प्रतिमा का पूजन कर सकते हैं.
भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है. इसके अलावा गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ की पूजा भी कर सकते हैं. गंगा पूजन के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी फल मिलता है.
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