गरबा और नवरात्रि का नाता : जानिए गरबा और डांडिया का पूरी कहानी
शारदीय नवरात्री यानि मां दुर्गा के आगमन की खुशियां. नवरात्री आते ही चारो ओर हर्षोल्लास सा व्याप्त हो जाता है. डांडिया और गरबा की धूम नज़र आती है. क्या लड़के क्या लड़कियां, क्या बच्चे और क्या बूढे हर उम्र के लोग डांडिया और गरबे का आनंद लेते हैं. बेहद ही खूबसूरत और पारंपरिक अंदाज में सजे लोग इस नृत्य को बेहद ही खूबसूरती से अंजाम देते हैं.
लेकिन क्या कभी आप लोगो के मन में यह विचार नहीं आया कि शारदीय नवरात्री के दौरान ही गरबे की इतनी धूम क्यों होती है. तो चलिए आज जानते हैं कि आखिर नवरात्री और गरबा के बीच कनेक्शन क्या है?
भारत में त्योहारों का अपना खासा महत्त्व है. त्यौहार किसी भी जाति या मज़हब के हों लेकिन हर त्यौहार को किसी न किसी परम्परा या रिवाज़ से जोड़ दिया जाता है.
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क्या है गरबे की मान्यता
अगर देखा जाये तो नवरात्रि की नौ रातों में मां को प्रसन्न करने के लिए नृत्य का सहारा लिया जाता है. यूं तो वर्षों से ही हिन्दू मान्यताओं में नृत्य को भक्ति एवं साधना का एक मार्ग माना गया है. इसलिए यह मान्यता प्रचलित है कि गरबा के जरिए भक्त मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. लेकिन यहां हम गरबा एवं नवरात्रि का महत्व कुछ गहराई से जानने की कोशिश करेंगे.
क्या है गरबा का अर्थ
गरबा एक अपभ्रंश है. दरअसल गरबा का संस्कृत नाम गर्भ-द्वीप है. गरबा के आरंभ में देवी के निकट सछिद्र कच्चे घट(छेद वाला कच्ची मिटटी का घड़ा) को फूलों से सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है. इस दीप को ही दीपगर्भ या गर्भ दीप कहा जाता है. गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है.
नाम बदला पर रीति रिवाज़ वही
जैसे-जैसे गर्भ द्वीप ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों तक पांव पसारे, इसका नाम परिवर्तित होता चला गया और अंत में इसे गरबा नाम दे दिया गया और तभी से सब लोग इस नृत्य को गरबा के नाम से ही जानते हैं. लेकिन नाम भले ही बदल गया लेकिन गर्भ द्वीप के जो रीति-रिवाज़ सर्वप्रथम किए जाते थे, वह आज भी उसी रूप में किए जाते हैं. जैसे कि गर्भ दीप के ऊपर एक नारियल रखा जाता है. नवरात्रि की पहली रात गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है. इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं. गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल देने के लिए किया जाता है. महिलाएं समूह में मिलकर नृत्य करती हैं. इस दौरान देवी के गीत गाए जाते हैं.
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क्या है तीन ताली का रहस्य
आपने देखा होगा महिलाएं जब भी गरबा करती है तो तीन ताली का प्रयोग करती हैं. जी हां… एक नहीं, दो नहीं तीन ताली का. क्या आप जानते हैं यह तीन ताली का रहस्य क्या है. यह पूरा ब्रह्मांड ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आसपास ही घूमता है. ऐसा माना जाता है कि तीन तालियों के माध्यम से इन तीन देवों की कलाओं को एकत्र कर शक्ति का आह्वान किया जाता है.
क्या है ताली का अर्थ
पहली ताली ब्रह्मा अर्थात इच्छा से संबंधित है. ब्रह्मा की इच्छा तरंगों को ब्रह्मांड के अंतर्गत जागृत किया जाता है. यह मनुष्य की भावनाओं और उसकी इच्छा का समर्थन करती है. दूसरी ताली के माध्यम से विष्णु रूपी कार्य तरंगें प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को शक्ति प्रदान करती हैं. जबकि तीसरी ताली शिव रूपी ज्ञान तरंगों के माध्यम से मनुष्य की इच्छा पूर्ति कर उसे फल प्रदान करती है. ताली की आवाज से तेज निर्मित होता है और इस तेज की सहायता से शक्ति स्वरूप मां अंबा जागृत होती है. ताली बजाकर इसी तेज रूपी मां अंबा की आराधना की जाती है.
भारत में कैसे हुआ गरबे का चलन
क्या आप जानते हैं कि गरबे का इतिहास लगभग 70 दशक पुराना है. यह बात गुलाम रह चुके भारत से भी पहले की है. कहते हैं कि भोपाल में आजादी से पहले नवाबों का राज हुआ करता था, उस दौरान गुजरात के अलावा और कहीं भी गरबा आयोजित नहीं होता था. यह नृत्य केवल इसी राज्य की शान था और अन्य किसी जगह पर यदि गरबा होता भी था तो केवल मनोरंजन के लिए और वह भी गुजरातियों द्वारा ही.
आजादी के बाद जब गुजराती समुदायों का अपने प्रदेश से बाहर निकलना शुरू हुआ तब उनके साथ यह परंपरा भी अन्य प्रदेशों में पहुंच गई. मध्यप्रदेश में 70 के दशक में गरबा की आमद हुई. इसके बाद 80 के दशक तक तो जैसे गरबा ने धीरे-धीरे अन्य राज्यों एवं कस्बों में अपनी जगह बना ली.
गीतों में भी हुआ परिवर्तन
आजादी से पहले गरबा नृत्य में केवल शक्ति स्वरूपा मां अंबा को समर्पित गीत ही नहीं बल्कि देश भक्ति से ओतप्रोत और साम्राज्यवाद विरोधी गीत भी शामिल किए जाते थे. आज का गरबा नृत्य पूरी तरह पारंपरिक रूप लिए हुए है जिसमें राजनीति का स्वरूप बिल्कुल न्यूनतम या कहें ना के बराबर है. आप इसके व्यवसायिक स्वरूप को भी देख सकते हैं.
आज के दौर में गरबा को भारत के विश्व विख्यात नृत्यों में से एक माना जाता है. अब यह कोई आम नृत्य नहीं रहा, विश्व भर में इस नृत्य का प्रचार किया जाता है. ना केवल त्यौहारों के दौरान, वरन् समय-समय पर यह नृत्य भारतीय साहित्य को दर्शाता रहता है.
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