गौ-मूत्र – एक सरल एवं प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार का तरीका
(जाने और समझें गोमूत्र को- क्या , क्यों और कैसे)
आयुर्वेद के अनुसार देसी गाय का “गौ मूत्र” एक संजीवनी है। गौ-मूत्र एक अमृत के सामान है जो दीर्घ जीवन प्रदान करता है, पुनर्जीवन देता है, रोगों को भगा देता है, रोग प्रतिकारक शक्ति एवं शरीर की मांस-पेशियों को मज़बूत करता है।
शास्त्रों में ऋषियों-महर्षियों ने गौ की अनंत महिमा लिखी है। उनके दूध, दही़, मक्खन, घी, छाछ, मूत्र आदि से अनेक रोग दूर होते हैं। गोमूत्र एक महौषधि है। इसमें पोटैशियम, मैग्नीशियम क्लोराइड, फॉस्फेट, अमोनिया, कैरोटिन, स्वर्ण क्षार आदि पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं इसलिए इसे औषधीय गुणों की दृष्टि से महौषधि माना गया है।
हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है इसलिये इसके गोबर और मूत्र को भी पवित्रता कि नज़र से देखा गया है। आयुर्वेद में गौमूत्र के प्रयोग से दवाइयां भी तैयार की जाती हैं।आयुर्वेद में गोमूत्र को एक दिव्य औषधि माना जाता है। इसका उपयोग प्राचीन काल से ही रोगों को दूर करने में किया जा रहा है।
गोमूत्र से बने अर्क को अगर सुबह शाम दवा के रूप में किया जाए तो त्वचा के रोग, नेत्र रोग, महिलाओं के रोग, किडनी रोग, हृदय रोग, कब्ज आदि जैसी बीमारियां छू भी नहीं सकती हैं। भागती-दौड़ती इस जिंदगी में लोग जंक फूड को जिस जरह से तवज्जो दे रहे हैं, उसके कारण कई बीमरियां उन्हें दिन पर दिन घेरती जा रही हैं, जिसे गोमूत्र के सेवन से पूरे शरीर को जहर से मुक्त किया जा सकता है।
आजकल गौमूत्र का नाम सुनकर कई लोगों की नाक-भौं सिकुड़ जाती हैं, लेकिन वे ये नहीं जानते कि गौमूत्र के नियमित सेवन से बडे़-बडे़ रोग तक दूध हो जाते हैं। गाय का मूत्र स्वाद में गरम, कसैला और कड़क लगता है, जो कि विष नाशक, जीवाणु नाशक, शक्ती से भरा और जल्द ही पचने वाला होता है। इसमें नाइट्रोजन, कॉपर, फॉस्फेट, यूरिक एसिड, पोटैशियम, यूरिक एसिड, क्लोराइड और सोडियम पाया जाता है।
गौमूत्र से लगभग 108 रोग ठीक होते हैं। इस बात का दावा किया गया है कि गर्भवती गाय का मूत्र सबसे अच्छा होता है क्योंकि उसमें विशेष हार्मोन और खनिज पाया जाता है। गौमूत्र दर्दनिवारक, पेट के रोग, चर्म रोग, श्वास रोग,आंत्रशोथ, पीलिया, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात, कृमिरोग आदि के उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है।
यही नहीं गौमूत्र के प्रयोग से बडे़-बडे़ रोग जैसे, दिल की बीमारी, मधुमेह, कैंसर, टीबी, मिर्गी, एड्स और माइग्रेन आदि को भी ठीक किया जा सकता है। तो अब गाय से प्राप्त दूध, दही, मठ्ठा आदि सेवन करने के साथ साथ गौमूत्र का भी सेवन कर के देखिये और अनेक लाभों का आनंद उठाइये।
आयुर्वेद के अनुसार यह शरीर में तीनों दोषों का संतुलन भी बनाता है और कीटनाशक की तरह भी काम करता है| जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान में सामने आया है कि गोमूत्र में 5600 तरह के तत्व होते हैं। एक अन्य अनुसंधान से पता चला है कि गाय के दूध में 5100 तत्व होते हैं। हमें तो देसी गाय को पकड़ना है। दूध तो इसका बहुत छोटा हिस्सा है। उससे 10 गुना आय तो गाय के गोबर और गोमूत्र में है। गो-पालन करना है तो जैविक खेती करना जरूरी है। जैविक कृषि ज्ञान सम्मेलन और जैविक कृषि मेले में आए गुजरात के जैविक खेती विशेषज्ञ और गो-पालक रमेशभाई रूपारेलिया ने यह बात कही।
संसाधित किया हुआ गौ मूत्र अधिक प्रभावकारी प्रतिजैविक, रोगाणु रोधक (antiseptic), ज्वरनाशी (antipyretic), कवकरोधी (antifungal) और प्रतिजीवाणु (antibacterial) बन जाता है। ये एक जैविक टोनिक के सामान है। यह शरीर-प्रणाली में औषधि के सामान काम करता है और अन्य औषधि की क्षमताओं को भी बढ़ाता है।
यह अन्य औषधियों के साथ, उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए भी ग्रहण किया जा सकता है। सच में अमृत से कम नहीं है गोमूत्र, महिलाओं की इन बीमारियाें का होता है इलाज।
देखिए और सुनिए…कोरोना वायरस से लड़ने में पंचगव्यों का योगदान
आयुर्वेद में गोमूत्र को एक दिव्य औषधि माना जाता है। इसका उपयोग प्राचीन काल से ही रोगों को दूर करने में किया जा रहा है। गोमूत्र से बने अर्क को अगर सुबह शाम दवा के रूप में किया जाए तो त्वचा के रोग, नेत्र रोग, महिलाओं के रोग, किडनी रोग, हृदय रोग, कब्ज आदि जैसी बीमारियां छू भी नहीं सकती हैं। भागती-दौड़ती इस जिंदगी में लोग जंक फूड को जिस जरह से तवज्जो दे रहे हैं, उसके कारण कई बीमरियां उन्हें दिन पर दिन घेरती जा रही हैं, जिसे गोमूत्र के सेवन से पूरे शरीर को जहर से मुक्त किया जा सकता है।
बता दें कि गोमूत्र पर हो रहा शोध अगर सफल रहा तो बोन मैरो और स्तन कैंसर जैसी बीमारियों से काफी राहत मिल सकती है। गोमूत्र अर्क की बढ़ती मांग के चलते प्रदेश भर की गौशालाओं में इसे बड़े स्तर पर तैयार किए जाने की कवायद शुरू हो चुकी है। इसके तहत प्रदेश भर की करीब 150 गोशालाओं में गोमूत्र का अर्क बड़ी मात्रा में तैयार किया जाएगा। गोमूत्र अर्क की खरीदारी में पतंजलि योग समिति ने भी बड़े स्तर पर गोशालाओं से मांग कर ली है।
गोमूत्र अर्क
यह लघु, रूक्ष व तीक्ष्ण रस में कटु लवण और विपाक कटु और ऊष्ण वीर्य वाला होता है। इसमें ताम्बे का अंश होता है, जो शरीर में स्वर्ण तत्व में परिवर्तित हो जाता है। इससे रोगों से लड़ने की क्षमता में खासी बढ़ोतरी होती है। गोमूत्र एक तरह का रासायनिक संगठक है। इसके मुख्य तत्व जल, यूरिया, सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, अम्ल, क्षार व लवण होते हैं। इसके सेवन से पेट के रोगों के अलावा शरीर के अन्य गंभीर रोगों से भी निजात मिल सकती है।
मोटापे से लेकर कई बीमरियों को दूर करेगा अर्क
पतंजलि स्टोर के मालिक के अनुसार, गोमूत्र आपकी इम्युनिटी और रेसिसटेंस पॉवर को बढ़ाता है। यह पेट के लिए भी फायदेमंद है। इसके सेवन से डेंगू, मलेरिया और कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज भी जल्द संभव होगा। इसके सेवन से कफ भी ठीक हो सकता है। इससे कब्ज से भी निजात मिल सकती है। आयुर्वेद में संजीवनी बूटी जैसी कई प्रकार की औषधियां गोमूत्र से बनाई जाती हैं। गौमूत्र के प्रमुख योग गोमूत्र क्षार चूर्ण कफ नाशक तथा नेदोहर अर्क मोटापा नाशक हैं।
कैंसर में है फायदेमंद
कैंसर की चिकित्सा में रेडियो एक्टिव एलिमेंट प्रयोग में लाए जाते हैं। गौमूत्र में माैजूद सोडियम, पोटैशियम, मैग्नेशियम, फाॅस्फोरस, सल्फर आदि में से कुछ लवण विघटित होकर रेडियो एलिमेंट की तरह कार्य करने लगते हैं और कैंसर की अनियन्त्रित वृद्धि पर तुरन्त नियंत्रण करते है। कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। गोमूत्र में इस लाइलाज बीमारी का भी इलाज हो सकता है।
गोमूत्र को ऐसा किया जाता है शुद्घ
आयुर्वेद में स्वर्ण, लौह, धतूरा तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से शुद्ध करने का विधान है। गोमूत्र के द्वारा शुद्धीकरण होने पर ये द्रव्य दोषरहित होकर अधिक गुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते हैं। रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है, जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं।
किस प्रकार बनता है गोमूत्र अर्क ?
भट्ठी पर एक बड़ा मटका गोमूत्र से भरकर रख दिया जाता है। भट्ठी के ताप से गर्म होते गोमूत्र को वाष्प के जरिए बाहर निकालने के लिए मटके में एक ओर छोटा सा सुराग निकालकर पाइप के माध्यम से एक बर्तन में छोड़ दिया जाता है। एक-एक बूंद बर्तन में जमा होती रहती है जिसे गौमूत्र अर्क कहा जाता है। सात लीटर गाय के मूत्र में करीब एक लीटर के आसपास अर्क निकलता है। इसे बोतलों में डालकर बेचा जाता है।
गौ-मूत्र कैंसर के उपचार के लिए भी एक बहुत अच्छी औषधि है। यह शरीर में सेल डिवीज़न इन्हिबिटोरी एक्टिविटी को बढ़ाता है और कैंसर के मरीज़ों के लिए बहुत लाभदायक है। आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार गौ-मूत्र विभिन्न जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है। यह आयुर्वेदिक औषधि गुर्दे, श्वसन और ह्रदय सम्बन्धी रोग, संक्रामक रोग (infections) और संधिशोथ (Arthritis), इत्यादि कई व्याधियों से मुक्ति दिलाता है।
गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास और मूत्र में गंगा का वास बताया गया हैं। यह केवल श्रद्धावश नहीं अपितु इसके वैज्ञानिक गुणों कारण कहा गया है गौ मूत्र मनुष्य जाति तथा वनस्पति जगत को प्राप्त होने वाला दुर्लभ अनुदान हैं। गौमूत्र चिकित्सा विशेषज्ञ डा. वीरेन्द्र जैन ने कहा है कि गाय एक चलता फिरता चिकित्सालय हैं। गाय के मूत्र में कार्बोलिक एसिड होता है। जो कीटाणुनाशक हैं अत: यह शुध्दि और स्वच्छता को बढ़ाता हैं, प्राचीन ग्रंथों में गौ मूत्र को अति पवित्र कहा है, आधुनिक दृष्टि में गौ मूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटेशियम और सोडियम होता हैं। जिन महीनों में गाय दूध देती है। उनमें उसके मूत्र में लेक्टोज रहता हैं जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों में बहुत लाभकारी हैं इसमें स्वर्णक्षार भी मौजूद रहता है जो रसायन हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसका बहुत ही विस्तृत ढंग से वर्णन मिलता है।
चरक संहिता, राज निघंटु, वृध्द भाग भट्ट अमृत सागर में वर्णन आया है कि गौ मूत्र कडक चरका, कषैला, तीक्ष्ण, ऊष्ण पंच रस युक्त हैं। यह पवित्र विष नाशक, जीवाणुनाशक, त्रिदोषनाशक, मेधा शक्तिवर्ध्दक, शीघ्र पाचक, परम रसायन पश्य हैं। हृदय को आनन्द देने वाला बल बुध्दि प्रदान करने वाला है, आयु प्रदान करने वाला, रक्त के समस्त विकारों को दूर करने वाला, कफवात पित्त जाय तीनों दोषों हृदय रोगों व विष के प्रभाव को दूर करने वाला हैं।
प्रसव के पश्चात् घरों में शुध्दिकरण हेतु गौ मूत्र का छिड़काव किया जाता हैं श्मशान से आने के बाद सभी व्यक्तियों का शुध्दिकरण गंगाजल या गौ मूत्र छिड़क कर तथा पिलाकर किया जाता है इसके जीवाणुनाशी गुणों के कारण ऐसी परम्पराएं चली आ रही हैं। पेट की बीमारी में गौ मूत्र एक रामबाण हैं। यकृत या प्लीहा बढ़ गयी हो तो पांच तोला गौ मूत्र नमक मिलाकर नियमित पीने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता हैं।
गौमूत्र का भारतीयों के लिए प्राचीन समय से ही बहुत महत्वपूर्ण रहा है। भारत के हिन्दू सभ्यता में गाय की पूजा की जाती है और माना जाता है कि गाय में 36 करोड़ देवी देवताओं का निवास होता है। गाय के दूध के फायदों के बारे में तो आपने सुना भी होगा और जानते भी होंगे लेकिन क्या आप गौमूत्र से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में जानते हैं ? नहीं।। तो कोई बात नहीं, अब जान जाइए की होते हैं गौमूत्र से लाभ कितने लाभ।
गौ कई प्रकार की होती है जेसे जर्सी, दोगली, देशी। इनमें से देशी गौ का मूत्र बहुत काम आता है। हिन्दू धर्म में गौ को माता मानते है और उसकी पूजा भी करते है इसलिए देशी गौ को गौ माता के नाम से भी जाना जाता है।
हमारे बुजुर्ग कहते है की गौ माता के मूत्र में गंगा और गोबर में लक्ष्मी का वास होता है यही कारण है घर की मूत्र को घर में छिड़का और गोबर से चोका लगाया जाता है। गोमूत्र (गाय का मूत्र) पंचगव्यों में से एक है। हिन्दू धर्म एवं संस्कृति में इसका बहुत महत्व है। प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में इसकी महत्ता का वर्णन मिलता है।
वैसे तो गाय के गोबर और मूत्र को उसके शरीर का वेस्ट मटेरियल कहा जाता है, लेकिन यह हमें कई तरह की बीमारियों से बचा सकता है। गौमूत्र से हमें कई तरह के फायदे मिलते हैं और न केवल आपका स्वास्थ्य ठीक रहता है बल्कि ये आपको कई बीमारियों जैसे डायबिटीज, हार्ट की परेशानी, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से बचने में सहायक साबित हो सकता है। गौमूत्र से आप अपने आप को फिट रख सकते हैं। और यह खून साफ करने में भी मदद करता है। इसके अलावा ये हमारे शरीर और दिमाग के लिए बहुत फायदेमंद होता है, और कई तरह के चर्म रोग से बचने में भी सहायक साबित होता है।
आयुर्वेद के अलावा मॉडर्न मेडिकल साइंस में भी गौमूत्र पर की गई रिसर्च ने भी इसके हेल्थ बेनिफिट्स को साबित किया है। हालिया रिसर्च में गौमूत्र को कई सीरियस और जनरल बीमारियों के लिए फायदेमंद बताया गया है। आयुर्वेद में गौमूत्र का प्रयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। वैसे तो गौमूत्र अपने आप में एक दवा की तरह है। मगर इसमें कुछ और जड़ी बूटियां मिलाकर दी जाएं तो इसका असर कई गुना बढ़ जाता है। गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटैशियम और सोडियम होता है। जब गाय का दूध देने वाला महिना होता है, तब उसके मूत्र में लेक्टोजन रहता है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए फायदेमंद होता है।
एक खास बात गोमूत्र हमेशा स्वस्थ देशी गाय का ही लिया जाना चाहिए और गोमूत्र को हमेशा निश्चित तापमान पर रखा जाना चाहिए न अधिक गर्म और न अधिक ठंडा। गोमूत्र का कितना सेवन करना चाहिए यह मौसम पर निर्भर है। इसकी प्रकृति कुछ गर्म होती है इसीलिए गर्मियों में इसकी मात्रा कम लेनी चाहिए। चलिए अब जानते है गौमूत्र से होने वाले कुछ खास फायदों की जिसके सेवन से आप एक सेहतमंद जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
गोमूत्र के साइंटिफिक फायदों में लिखा है- “गौमूत्र में आयरन, कॉपर, नाइट्रोजन, सल्फर, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, एंजाइम्स, मिनरल्स, विटामिन जैसे ए, बी, सी, डी, ई, यूरिक एसिड, हॉर्मोन, गोल्ड एरिड आदि पाए जाते हैं। यह विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकलाता है। इससे रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है और साथ ही यह एक संक्रमण रोधी की तरह काम करता है। रोजाना गौमूत्र के सेवन से शरीर में माइक्रो एलिमेंट्स की कमी पूरी होती है. घर में गौमूत्र का छिड़काव करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. अगर आपको लगता है कि किसी ने आपके ऊपर जादू किया है तो गौमूत्र उसका रामबाण उपाय है. जो लोग कैंसर और एड्स से पीड़ित हैं वो भी गौमूत्र की थेरेपी ले रहे हैं.”
गाय के मूत्र और गोबर में अनेक औषधीय तत्व मौजूद होते हैं। यहां तक कि गाय के दूध में गौ मूत्र, घी, दही और गोबर को मिलाकर पंचगव्य तैयार किया जाता है। आयुर्वेद में पंचगव्य को औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। सुश्रुत संहिता के अनुसार गाय से प्राप्त सभी चीजों में से गौ मूत्र सेहत के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। आयुर्वेद में गौ मूत्र को अमृत कहा गया है। नाइजीरिया और म्यांमार में भी दवाओं में गौ मूत्र का इस्तेमाल किया जाता है।
माना जाता है कि गर्भवती गाय का मूत्र बहुत ज्यादा स्वास्थ्यवर्द्धक होता है क्योंकि इसमें कुछ विशेष प्रकार के हार्मोंस पाए जाते हैं। गौ मूत्र से लगभग 80 असाध्य रोगों और सेहत से संबंधित कई अन्य समस्याओं को ठीक किया जा सकता है। फर्श पर गौ मूत्र का पोंछा लगाने से बैक्टीरिया नष्ट होता है। कॉस्मेटिक खासतौर पर शैंपू और साबुन में भी गौ मूत्र का इस्तेमाल किया जाता है।
गौ-मूत्र के लाभों को विस्तार से जानें
देसी गाय के गौ मूत्र में कई उपयोगी तत्व पाए गए हैं, इसीलिए गौमूत्र के कई सारे फायदे है। गौमूत्र अर्क (गौमूत्र चिकित्सा) इन उपयोगी तत्वों के कारण इतनी प्रसिद्ध है|देसी गाय गौ मूत्र में जो मुख्य तत्व हैउनमें से कुछ का विवरण जानिए।
1. यूरिया (Urea) : यूरिया मूत्र में पाया जाने वाला प्रधान तत्व है और प्रोटीन रस-प्रक्रिया का अंतिम उत्पाद है| ये शक्तिशाली प्रति जीवाणु कर्मक है।
2. यूरिक एसिड (Uric acid): ये यूरिया जैसा ही है और इस में शक्तिशाली प्रति जीवाणु गुण हैं। इस के अतिरिक्त ये केंसर कर्ता तत्वों का नियंत्रण करने में मदद करते हैं।
3. खनिज (Minerals): खाद्य पदार्थों से व्युत्पद धातु की तुलना मूत्र से धातु बड़ी सरलता से पुनः अवशोषित किये जा सकते हैं। संभवतः मूत्र में खाद्य पदार्थों से व्युत्पद अधिक विभिन्न प्रकार की धातुएं उपस्थित हैं। यदि उसे ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो मूत्र पंकिल हो जाता है। यह इसलिये है क्योंकि जो एंजाइम मूत्र में होता है वह घुल कर अमोनिया में परिवर्तित हो जाता है, फिर मूत्र का स्वरुप काफी क्षार में होने के कारण उसमे बड़े खनिज घुलते नहीं है। इसलिये बासा मूत्र पंकिल जैसा दिखाई देता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि मूत्र नष्ट हो गया। मूत्र जिसमे अमोनिकल विकार अधिक हो जब त्वचा पर लगाया जाये तो उसे सुन्दर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
4. उरोकिनेज (Urokinase) : यह जमे हुये रक्त को घोल देता है,ह्रदय विकार में सहायक है और रक्त संचालन में सुधार करता है।
5. एपिथिल्यम विकास तत्व (Epithelium growth factor) : क्षतिग्रस्त कोशिकाओं और ऊतक में यह सुधर लाता है और उन्हें पुनर्जीवित करता है।
6. समूह प्रेरित तत्व (Colony stimulating factor): यह कोशिकाओं के विभाजन और उनके गुणन में प्रभावकारी होता है।
7. हार्मोन विकास (Growth Hormone): यह विप्रभाव भिन्न जैवकृत्य जैसे प्रोटीन उत्पादन में बढ़ावा, उपास्थि विकास,वसा का घटक होना।
8. एरीथ्रोपोटिन (Erythropotein): रक्ताणु कोशिकाओं के उत्पादन में बढ़ावा।
9. गोनाडोट्रोपिन (Gonadotropins): मासिक धर्म के चक्र को सामान्य करने में बढ़ावा और शुक्राणु उत्पादन।
10. काल्लीकरीन (Kallikrin): काल्लीडीन को निकलना, बाह्य नसों में फैलाव रक्तचाप में कमी।
11. ट्रिप्सिन निरोधक (Tripsin inhibitor): मांसपेशियों के अर्बुद की रोकथाम और उसे स्वस्थ करना।
12. अलानटोइन (Allantoin): घाव और अर्बुद को स्वस्थ करना।
13. कर्क रोग विरोधी तत्व (Anti cancer substance): निओप्लासटन विरोधी, एच -११ आयोडोल – एसेटिक अम्ल, डीरेकटिन, ३ मेथोक्सी इत्यादि किमोथेरेपीक औषधियों से अलग होते हैं जो सभी प्रकार के कोशिकाओं को हानि और नष्ट करते हैं। यह कर्क रोग के कोशिकाओं के गुणन को प्रभावकारी रूप से रोकता है और उन्हें सामान्य बना देता है।
14. नाइट्रोजन (Nitrogen) : यह मूत्रवर्धक होता है और गुर्दे को स्वाभाविक रूप से उत्तेजित करता है।
15. सल्फर (Sulphur) : यह आंत कि गति को बढाता है और रक्त को शुद्ध करता है।
16. अमोनिया (Ammonia) : यह शरीर की कोशिकाओं और रक्त को सुस्वस्थ रखता है।
17. तांबा (Copper) : यह अत्यधिक वसा को जमने में रोकधाम करता है।
18. लोहा (Iron) : यह आरबीसी संख्या को बरकरार रखता है और ताकत को स्थिर करता है।
19. फोस्फेट (Phosphate) : इसका लिथोट्रिपटिक कृत्य होता है।
20. सोडियम (Sodium) : यह रक्त को शुद्ध करता है और अत्यधिक अम्ल के बनने में रोकथाम करता है।
21. पोटाशियम (Potassium) : यह भूख बढाता है और मांसपेशियों में खिझाव को दूर करता है।
22. मैंगनीज (Manganese) : यह जीवाणु विरोधी होता है और गैस और गैंगरीन में रहत देता है।
23. कार्बोलिक अम्ल (Carbolic acid) : यह जीवाणु विरोधी होता है।
24. कैल्सियम (Calcium) : यह रक्त को शुद्ध करता है और हड्डियों को पोषण देता है , रक्त के जमाव में सहायक।
25. नमक (Salts) : यह जीवाणु विरोधी है और कोमा केटोएसीडोसिस की रोकथाम।
26. विटामिन ए बी सी डी और ई (Vitamin A, B, C, D & E): अत्यधिक प्यास की रोकथाम और शक्ति और ताकत प्रदान करता है।
27. लेक्टोस शुगर (Lactose Sugar): ह्रदय को मजबूत करना, अत्यधिक प्यास और चक्कर की रोकथाम।
28. एंजाइम्स (Enzymes): प्रतिरक्षा में सुधार, पाचक रसों के स्रावन में बढ़ावा।
29. पानी (Water) : शरीर के तापमान को नियंत्रित करना| और रक्त के द्रव को बरक़रार रखना।
30. हिप्पुरिक अम्ल (Hippuric acid) : यह मूत्र के द्वारा दूषित पदार्थो का निष्कासन करता है।
31. क्रीयटीनीन (Creatinine) : जीवाणु विरोधी।
32.स्वमाक्षर (Swama Kshar): जीवाणु विरोधी, प्रतिरक्षा में सुधार, विषहर के जैसा कृत्य।
क्या गोमूत्र वास्तव में औषधीय गुण युक्त है?
गोमूत्र पंचगव्य नामक मिश्रण का एक घटक है जिसका उपयोग वास्तु शास्त्र में शुद्धि के लिए किया जाता है। एक गर्भवती गाय का मूत्र विशेष माना जाता है; यह विशेष हार्मोन और खनिज शामिल होने का दावा किया जाता है। म्यांमार और नाइजीरिया में लोक चिकित्सा में भी गोमूत्र का उपयोग किया जाता है।
गोमूत्र में बड़ी मात्रा में सल्फर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व होते हैं। यह मस्तिष्क रोगों, मधुमेह, कैंसर, त्वचा संक्रमण और गठिया के इलाज में उपयोगी है। शरीर के किसी भी प्रकार के जोड़ों के दर्द को ठीक करता है, जैसे घुटने का दर्द, कंधे का दर्द आदि।
यह खांसी, सर्दी, अस्थमा और यहां तक कि तपेदिक (जैसे हर सुबह टीबी का इलाज करने के लिए 3 महीने का समय लेने की आवश्यकता है) जैसे श्वास संबंधी बीमारियों का इलाज करता है।
गाय के मूत्र से ग्लोबल वार्मिंग के कारण:
गोमूत्र भारत में अपने औषधीय लाभों के लिए अनुसंधान का एक छोटा सा उद्गम है। यह ग्लोबल वार्मिंग में भी योगदान दे सकता है। जुगाली करने वाले का मूत्र नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन (N2O) का एक स्रोत है। यह एक ऐसी गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है। भारत में प्रति गाय या भैंस या अन्य पशुधन पशुओं के गोबर और मूत्र उत्पादन के साथ-साथ 2012 की जनगणना के अनुसार उनकी आबादी के लिए उनके समग्र अनुमान थे, लेकिन कुल नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में गोमूत्र के सटीक योगदान का सटीक अनुमान नहीं लगाया गया है। अपमानित चरागाहों में अधिक N2O उत्सर्जित होती है जो कभी-कभी तीन गुना तक होती थी।
लेखक – पं. दयानंद शास्त्री, उज्जैन
ये लेख लेखक के शोध का परिणाम है, इसमें दी गई जानकारी और प्रभाव से रिलीजन वर्ल्ड का सीधा नाता नहीं है।