दंडकारण्य क्षेत्र को विकसित करेगा गायत्री परिवार
- दण्डकारण्य क्षेत्र के विकास के लिए बाल संस्कारशाला, स्वावलंबन से लेकर विविध कार्य योजना तैयार
- गायत्री परिवार का मूल उद्देश्य है आत्मीयता विस्तार : डॉ. पण्ड्या
- शांतिकुंज में बनी छग, मप्र व ओडिशा के वनवासी क्षेत्रों के विकास की कार्ययोजना
हरिद्वार ११ जून, अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि गायत्री परिवार का मूल उद्देश्य आत्मीयता का विस्तार करना है। भगवान् राम ने रीछ वानरों के साथ, श्रीकृष्ण ने ग्वालबालों से आत्मीयता का विस्तार कर उनसे बड़े-बड़े काम करवाये। वर्तमान समय में युगऋषि पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी के निर्देशन में शांतिकुंंज वनवासी भाई-बहिनों से लेकर समाज के प्रत्येक वर्ग से पौरोहित्य से लेकर समाज विकास के विभिन्न कार्यक्रम चल रहे हैं। ऐसे ही कर्मठ सेवाभावी समूह का नाम गायत्री परिवार है।
डॉ. पण्ड्या दण्डकारण्य, बस्तर (छत्तीसगढ़) से आये युवाओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दण्डकारण्य क्षेत्र के विकास के लिए बाल संस्कारशाला, स्वावलंबन से लेकर विविध कार्य योजना तैयार की जा रही है। जो दण्डकारण्य के विकास की भूमिका निभायेगा। साथ ही छत्तीसगढ़ के बस्तर, महासमुन्द सहित सात जिलों, ओडिशा के गोरखपुर, नवरंगपुर, मलकानगिरी एवं मध्यप्रदेश के मण्डला, बालाघाट आदि जिलों के वनवासी बहुल क्षेत्रों के विकास में गायत्री परिवार सक्रिय है। यहाँ चलाये जा रहे कार्यक्रमों को और गति दी जायेगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आने वाले कुछ वर्षों में यह वनवासी क्षेत्र विकास की नई परिभाषा गढ़ता हुआ दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि वनवासियों के बीच किये जाने वाले कार्यों में शिक्षा, स्वास्स्थ्य, स्वावलंबन, सामाजिक समरसता एवं श्रद्धा संवर्धन प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि दण्डकारण्य परियोजना के अंतर्गत प्रत्येक जिलों में एक-एक आरण्यक केन्द्र की स्थापना की जा रही है और इसका मुख्यालय कोण्डागाँव-बस्तर में होगा।
दंडकारण्य विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक फैला हुआ प्रसिद्ध वन है। यहाँ वनवास के समय श्रीरामचंद्र बहुत दिनों तक रहे थे। दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का भौतिक क्षेत्र है। क़रीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाक़े के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियाँ तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं।