शांतिकुंज अधिष्ठात्री शैलदीदी का 65वाँ जन्मदिन सादगी से मना
हरिद्वार, 19 दिसम्बर। शांतिकुंज की अधिष्ठात्री श्रद्धेया शैलदीदी का 65वाँ जन्मदिन सादगी के साथ मनाया गया। उनका जन्म् 1953 में गीता जयंती के दिन हुआ था। दीपयज्ञ के साथ जन्मदिवसोत्सव का वैदिक कर्मकाण्ड पूरा किया गया। तत्पश्चात वे 1926 से सतत प्रज्वलित अखण्ड दीपक का दर्शन कर पावन गुरसत्ता के चरण पादुकाओं से आशीष लिया। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या, व्यवस्थापक श्री शिवप्रसाद मिश्र सहित शांतिकुंज के कार्यकर्ता भाई-बहिनों एवं गायत्री विद्यापीठ के बच्चों ने गुलदस्ता भेंटकर स्वस्थ जीवन की मंगलकामना की।
गीता जयंती, को जन्मीं शैल दीदी का प्रारंभिक जीवन भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में बीता। देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय इंदौर से साइकोलॉजी में पीजी एवं शोध करने के बाद अपना जीवन समाजोत्थान हेतु समर्पित कर दिया। अपनी बाल्यावस्था में स्काउट गाइड के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए अनेक पुरस्कार प्राप्त की। इस दौरान अपने शिक्षकों के प्रिय छात्राओं में से एक रहीं। शैलदीदी अपनी पढ़ाई से इतर अपने पिता गायत्री परिवार के संस्थापक व महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानी युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के कार्यों में भी बढ़ चढ़कर भागीदारी करती रही। समाज व राष्ट्र के हित में सदैव कार्य करने वाली शैलदीदी कालेज के पढ़ाई के दौरान ही अपना जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया था।
उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं परम वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा जी के चरण चिह्नों पर चलकर उनके द्वारा चलाये गए विभिन्न अभियान, नारी जागरण, बाल संस्कार, युवाओं को दिशा देने व पीड़ित मानवता की सेवा करने जैसे सेवापरक कार्यों में अपने आपको पूर्णतः समर्पित कर दिया। साथ ही पतितों के उद्धार के साथ भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में भी पूर्ण रूप से संलग्न रहीं। जिस तरह गायत्री परिवार की संस्थापिका माता भगवती देवी स्नेह, करुणा, उदारता, समता और ममता की प्रतिमूर्ति थीं, उसी तरह शैलदीदी अपने आपको उदार हृदय रख हमेशा समाज सेवा में तत्पर रहती हैं। उनकी ही प्रेरणा तथा गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या जी के मार्गदर्शन से शांतिकुंज में आपदा प्रबन्धन दल की टीम सदैव सेवा सहयोग के लिए तैयार रहती है ताकि कहीं आपदा आए तो यथाशीघ्र पहुँचकर पीड़ित मानवता की सहायता की जा सके। निश्चय ही नारी जाति ही नहीं, सम्पूर्ण समाज के लिए शैल दीदी एक आदर्श स्वरूप हैं।
ममत्व लुटाने वाली शैलदीदी का जीवन समाज के लिए है समर्पित
दुनिया भर के लोग जिस आशा और अपेक्षा लिए आँखें टिकाएं देख रहे हैं, वह है समाज में चहुँओर सकारात्मक विचारधारा एवं अपनत्व से भरा वातावरण। समाज के इसी उद्देश्य के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली गायत्री परिवार की अधिष्ठात्री शैलदीदी ने अपना ६५वाँ जन्म दिन के मौके पर आज यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ। समाज व राष्ट्र के हित में सदैव कार्य करने वाली शैलदीदी कालेज के पढ़ाई के दौरान ही अपना जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया था। मनोविज्ञान से एमए करने के बाद इस दिशा में और अधिक सुगमता पूर्वक कार्य करने लगी।
अपनी माता व गायत्री परिवार की संस्थापिका माता भगवती देवी शर्मा के साथ परपीड़ा को अनुभव करना सीखा। उसके पश्चात से ही शैलदीदी ने पीड़ितों की सेवा करने में वन्दनीया माताजी के साथ देती रही। सन् १९७१ में जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री सत्यनारायण पण्ड्या जी के सुपुत्र डॉ. प्रणव पण्ड्या से विवाह के बाद भी उनकी सेवा कार्य में बाधित नहीं हुआ।
1978 में गायत्री परिवार के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय हरिद्वार स्थित शांतिकुंज आने के बाद वे नारी सशक्तिकरण के लिए अपना पूर्ण समय लगाती रही। उनके मार्गदर्शन एवं निर्देशन से ही अब तक हजारों आदिवासी, वनवासी नारी अपने पैरों में खड़ी हो पायी। समाज के सभी वर्गों की नारियों के लिए शांतिकुंज में कई प्रशिक्षण शिविर का संचालन करती हैं। इसके अलावा बहिनों को स्वावलंबन, पौरोहित्य, संगीत आदि का प्रशिक्षण का कार्य संभालती हैं। शैलदीदी ने अपने जीवन में जो ममत्व व प्यार लुटाती है, उसका ही परिणाम है कि आज करोड़ों गायत्री परिवार के भाई-बहिन उन्हें ‘श्रद्धेया जीजी’ नाम से पुकारती है।