गंगा के लिए प्राण देने वाले स्वामी सानन्द के शरीर को गंगा स्नान से वंचित न करें : अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती
- सानन्द जी ने शरीर का दान किया है, न कि अपनी परम्परा का – अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती
हमे बताया गया है कि ऋषिकेश एम्स वालों ने स्वामी सानन्द जी के शरीर को अपने कब्जे में ले लिया है और गंगा भक्तों तथा उनसे जुडे लोगों को उनके अन्तिम दर्शन से भी रोक रहे हैं ।
उक्त बातें स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज ने आज काशी के केदार क्षेत्र के शंकराचार्य घाट पर स्थित श्रीविद्यामठ मे सायं 5 बजे से आयोजित स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द जी के लिए आयोजित श्रद्धाञ्जलि सभा में व्यक्त किए ।
उन्होंने कहा कि सानन्द जी शंकराचार्य जी की संन्यास परम्परा में दीक्षित हुए थे और दीख्षा के बाद का अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने सनातन धर्म के नियमानुसार बिताया । हिन्दुओं की यह परम्परा है कि एक सामान्य व्यक्ति का भी जब शरीर पूरा होता है तो उसे गंगा जल से स्नान कराया जाता है पर आश्चर्य है कि गंगा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सानन्द जी के शरीर को गंगाजल का स्पर्श भी नहीं मिल रहा है ।
स्वामी सानन्द जी ने अपने शरीर का दान किया है, न कि सनातनी परम्परा का। अतः हम यह मांग करते हैं कि कम से कम सानन्द जी के मृत शरीर को सनातनी परम्परानुसार गंगा जल से स्नान कराने दिया जाए।
सानन्द गंगा रक्षक के रूप मे तथा मोदी गंगा छली के रूप में याद किए जाएंगे
हमलोगों ने इस सरकार पर बहुत अधिक विश्वास कर लिया था । इसी कारण कांग्रेस की सरकार में गंगा सेवा अभियानम् द्वारा चलाए जा रहे गंगा आन्दोलन को मोदी सरकार के आने पर स्थगित कर दिया था । यह सोचकर कि मोदी जी गंगा के लिए कुछ करेंगे । जब गंगा मन्त्रालय बना तब हमलोगों ने गंगा किनारे बहुत बडा उत्सव इसी आशा में किया था कि अब गंगा की धारा अविरल होगी पर इस सरकार ने सभी गंगा भक्तों को बहुत बडा धोखा दिया । आज सानन्द जी ने गंगा रक्षा करते हुए अपना बलिदान कर दिया । सानन्द जी तो अमर हो गये । उनको सदा गंगा रक्षक के रूप में पूरा देश स्मरण करेगा और वहीं मोदी जी को गंगा छली के रुप में याद किया जाएगा ।
स्वामिश्रीः ने कहा कि गंगा के लिए तपस्या करते हुए स्वामी निगमानन्द जी, गंगा प्रेमी भिक्षु जी और अब सानन्द जी का बलिदान हुआ है । यदि यह सरकार यह समझती है कि गंगा की बात उठाने वालों की आवाज दबा दी जाएगी तो ऐसा नहीं होगा । गंगा प्रेमियों की आवाज को दबाने के लिए जितना जोर लगाया जाएगा उतने ही जोर से गंगा की मुक्ति के लिए आवाज उठायी जाएगी ।
कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए खेल से जुडे हुए हाजी फरमान हैदर जी ने कहा कि एक योग्य शिष्य के चले जाने पर गुरु को जो दुख होता है वह आज स्वामिश्रीः को देखकर साफ दिख रहा है ।
भायत धर्म महामण्डल के श्री सत्येन्द्र मिश्र जी ने कहा कि सानन्द जी के चले जाने से अपूरणीय क्षति हुई है ।
वाराणसी के गंगा सेवांसद श्री रमेश चोपडा जी ने चहा कि सानन्द जी की बात को जीवित रखकर ही हम उनको सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं ।
श्री यतीन्द्र चतुर्वेदी जी ने कहा कि गंगा जी के प्रति इस सरकार का बिलकुल ध्यान नहीं है पर स्वामिश्रीः के दिशा निर्देश पर गंगा अविरल अवश्य होगी ।
काशी विदुषी परिषद् की महामन्त्री श्रीमती सावित्री पाण्डेय जी ने कहा कि सानन्द जी के हृदय में गंगा बसी थी । उनके जीवन में वे अविरल गंगा के अलावा और कुछ भी और नहीं चाहते थे ।
भारत धर्म महामण्डल के श्री दिनेशमणि तिवारी जी ने कहा कि देश के भविष्य के लिए उन्होंने अपना बलिदान दे दिया । उनका जीवन अमूल्य था ।
भारत धर्म महामण्डल के श्रीप्रकाश पाण्डेय जी ने कहा कि गंगा पुत्र के शासन काल में अविरल गंगा के लिए एक वैज्ञानिक जो गंगा के प्यति आस्थावान् भी हो वह अपने प्राण त्याग दे यह आश्चर्य है ।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, सर्वश्री आत्माराम दुबे, अमन मिश्र, प्रभात वर्मा, सद्गुरु मूर्ति, शारदा देवी, बिजया तिवारी, नीलम दुबे, संजय पाण्डेय, हरिनाथ दुबे, सतीश अग्रहरि, सत्यनारायण, किशन जायसवाल, रवि त्रिवेदी, के एस अलमेलु,
कार्यक्रम का शुभारम्भ मयंक शेखर मिश्र के मंगलाचरण से हुआ । संचालन केन्द्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष श्री वागीशदत्त मिश्र जी ने किया ।
मुख्यसचिव उत्तराखंड सरकार को तथा एम्स प्रशासन को पत्र लिखकर स्वामी सानंद जी के गुरु
अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने उनके पार्थिव शरीर प्राप्त करने की मांग की
ज्ञात हुआ है कि आज हमारे प्रिय शिष्य के शरीर के अंतिम दर्शन तक उनके प्रेमी जनों को नहीं उपलब्ध हुए मातृ सदन हरिद्वार जो कि कि उनकी तपस्थली रहा है उनके आग्रह को भी अस्पताल ने नकार दिया ।
भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का यदि आप ज्ञान रखते हैं तो सन्यास के उपरांत सन्यासी के ऊपर उनके जन्म के संबंधियों का अधिकार नहीं, अपितु उसके गुरु और साधु परंपरा का अधिकार होता है । आश्चर्य है कि देवभूमि की सरकार और प्रशासन यह परंपरा और मर्यादा भी भूल गए और हमें एक सन्यासी के शरीर को अंतिम गंगा स्नान और धार्मिक संस्कार कराए जाने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है ।
स्वामी सानंद जी ने लोक हित और शोध कार्य हेतु अपना शरीर भी एम्स ऋषिकेश को दान कर दिया उनकी यह इच्छा और संकल्प हमारे लिए आदरणीय और स्वागत योग्य है जिसने हमारा मान बढ़ाया है किंतु इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हमें उनके अंतिम दर्शन, श्रद्धांजलि और उनके शरीर को अंतिम गंगा स्नान तक कराने का अधिकार नहीं रह गया।
जिस मां गंगा के लिए उन्होंने अपने प्राण अर्पण किए हैं उन्हीं मां गंगा के जल में उनके शरीर का अंतिम स्नान पूजन एवं पुष्पार्चन हेतु कृपया शीघ्र मातृ सदन को उनकी मृत्यु देव उपलब्ध कराई जाए ।
यदि प्रशासन सम्मान के साथ यह व्यवस्था नहीं करता तो इसे एक सन्यासी की की मृत-देह, भारतीय धार्मिक परंपरा और संस्कृति को अपमानित और तिरस्कृत किए जाने वाले कलंकित कृत्य के रूप में देखा जाएगा
यह हमारे संवैधानिक मूल अधिकारों का भी हनन होगा कि एक गुरु और उनके साथ साधु समुदाय को अपने सन्यासी शिष्य के अंतिम धार्मिक संस्कार से वंचित किया जाएगा
अतः हमारा आग्रह है कि संविधान सम्मत हमारे अधिकार के अंतर्गत कृपया 3 दिन के लिए उनका शरीर सम्मान मातृ सदन अजीत जगजीतपुर हरिद्वार पहुंचा दिया जाए ताकि उनकी गंगा स्नान करवा पुष्प आदि में उनका अर्थ शंकर गंगा भक्त और साधु जन उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सके उसके पश्चात प्रशासन उनके शरीर को उनकी इच्छा इच्छा अनुसार एम्स ऋषिकेश वापस ले जा सकता है धन्यवाद ।