गीत : राधा कृष्ण की होली
कहते कन्हाई धरी राधा की कलाई,
इस बार न छोडेंगे होली में।
बाबा से कह दो, चाहे मैया से कह दो,
चाहे छूपो जा के खोली मे।।
चाहे कसम चाहे माखन दे दो,
आयेंगे ना मीठी बोली में।
केतनो जतन तुम कर लो हे! राधा,
रंग लगाएंगे चोली में।।
विविध बरन का वसन धारे ग्वाल बाल,
भरी चले रंग पिचकारी में।
एक-सी चुनर ओढें गोपियों के बीच राधा,
आई गई पूरी तैयारी में।
सखियन बीच खींच घुँघट खड़ी है राधा,
मुश्किल बढ़ी गिरधारी की।
कैसे अंग रंग डालूँ, कैसे करूँ गाल लाल,
गौर वर्ण राधिका दुलारी की।।
ग्वाल बाल संग मिली जुगत किए बहुत,
दाल ना गली बनवारी की।
अब रंग बरसाओ इंद्र, हरि ने आदेश किया,
महिमा अजब त्रिपुरारी की।।
भाँति भाँति रंग बरसाने जब इद्रं लगे,
मथुरा बनी रंगोली रे।
गोपी रंगी, ग्वाले रंगे, कृष्ण भी रंगीन हुए,
रंग ना सकी राधा भोली रे।।
देखि इंद्र मुसकाए, हरि मन हरषाए,
दंग भई ग्वालन की टोली रे।
हार गए कृष्ण आज, भूल गए हर काज,
भूल गए रंगने को चोली रे।
बोले श्याम हर रंग तुझसे ही राधा रानी,
छला मैं गया इस होली रे।
कान्हा को उदास देख बोल उठी राधा रानी,
श्याम तेरी श्याम रंग बहुत अनोखी रे।।
भाँप गए इंद्र चाल बरसाए श्याम-श्याम,
चहूँ ओर अंग-अंग श्याम रंग दिखी रे।
बोली राधिका हे! श्याम, जो श्याम रंग तूने रंगी,
पड़ गई हर रंग फीकी रे।
उड़त गुलाल रंग भाँति भाँति होलिया में,
नहीं कोई रंग मेरो श्याम सरीखी रे।।
कहते कन्हाई धरी राधा की कलाई,
राधा लीला है तुम्हरी अनोखी रे।।
–सौरभ सतर्ष
साभार – http://hindilekhak.com/