गीता में भगवान कृष्ण ने सिर्फ कर्मयोग, ज्ञान योग और भक्ति योग का ही सन्देश नहीं दिया है अपितु मनुष्य को किस प्रकार का आहार करना चाहिए इसकी जानकारी भी दी है.
गीता के छठे अध्याय के श्लोक १६ और १७ में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से संवाद करते हुए कहा-
नात्याश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।16।।
अर्थात, “हे अर्जुन ! यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाववाले का और न सदा ही जागने वाले का ही सिद्ध होता है |”(16)
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।17।।
“दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार करने वाले का, कर्मों में यथा योग्य चेष्टा करने वाले का और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है |”(17)
क्या कहती है गीता
श्री कृष्ण के अनुसार भोजन तीन प्रकार के होती हैं-सात्विक, तामसिक और राजसी
प्रकृति के सात्विक , राजस और तमस गुणों के अनुसार आहार होते है. बुद्धिमान लोग यह समझ सकते है कि सात्विक गुणों के लिए सात्विक आहार लेनी चाहिए .
सात्विक आहार
आयु बढ़ाने वाला आहार, ह्रदय को बल,सुख तधा तृप्ति प्रदान करने वाला आहार, जीवन को खुश करने वाला आहार सात्विक मनुष्यों को प्रिय होता है . सात्विक आहार रसमय होता हैं .
आयुः सत्वबलारोग्य सुखः प्रीति विवर्धना : ।
रस्याः स्निग्धा : स्थिरा हृद्धया आहाराः सात्विक प्रियाः ।।
राजसी आहार
लेकिन, दुःख : शोक और रोग उत्पन्न करनेवाला आहार रजोगुण व्यक्ति को प्रिय होता है. अत्यन्त गरम , तिते , कट्टे और नमकीन आहार , जलन उत्पन्न करनेवाले आहार रजोगुण उत्पन्न करनेवाला आहार है .
कटु अम्ला लवणा अति उष्ण तीक्ष्ण रुक्ष विदहीनः।
आहारः रजसस्य इष्टा : दुःख शोक आमय प्रदाः ।।
तामसी आहार
पांच घंटे पूर्व पकाया गया आहार , स्वादरहित आहार , अत्यधिक गर्मी आहार, अस्पृश्य आहार तमो गुण वालों को प्रिय है.
यत यामम गता रसम पुती पर्युसितम् च यत।
उच्छिष्टम् एपीआई च आमेध्यम् भोजनम् प्रियम ।।
गीता और आहार एक दुसरे से कैसे जुड़े हैं इस का ज्ञान आपको भगवद गीता पढ़कर होगा. भगवान श्री कृष्ण बताया है कि आहार का उद्देश्य आयु को बढ़ाना है , जीवन को शुध्द करना है, और शरीर को शक्ति देना है. चावल , गेहुँ , तरकारी, दूध और बटर, दूध के व्यंजन , यह सभी आहार सातोगुणी इन्सान को अत्यंत प्रिया होते है. भगवान के अर्पित प्रसाद को लेना अत्यन्त श्रेष्ठ है.
भगवान श्री कृष्ण कहते है कि भक्ति पूर्वक दिया गया सात्विक आहार भगवान स्वीकार करते है.
भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 26 में भगवान श्री कृष्ण ने यह कहा:-
पत्रं पुष्पम फलम तोयम् यो में भक्त्या प्रयच्छाति ।
तत अहं भक्ति-उपहृृतम् अश्नामी प्रयतात्मनः।।
इसका अर्थ है की यति कोई पत्र, पुष्प , फल , जल भक्ति के साथ मुझे प्रदान करता है तो भगवान उसे स्वीकार करते हैं.
इसीलिए हम सब योग करना और सात्विक आहार लेना इंसान की सुख और आरोग्य जीवन का धर्म है. जो जैसा अन्न खाता है उसका मन भी वैसा ही हो जाता है.
तो आज के समय में भोजन और आहार का क्या अर्थ है और क्या हम भोजन के शास्त्रीय नियमों का पालन कर रहे हैं ये जानना बेहद आवश्यक है.
यह भी पढ़ें-योग चिकित्सा : जानिये क्या योग चिकित्सा से संभव है सभी बीमारियों का इलाज ?
गीता और आहार
हमारे शरीर की मुख्य जरूरत आहार है. शरीर आहार से बना है. खाने का असर शारीरिक बनावट पर पड़ता है. इसी के अनुरूप शरीर के साथ दिमाग का विकास होता है. शरीर पर भोजन का असर वैसे ही दिमाग और विचारों पर भी लेकिन आजकल के भागदौड़ के जीवन में कई बार हम उन नियमों का पालन नहीं कर पाते जो शास्त्रों में खान-पान को लेकर बनाए गए हैं.
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो मनुष्य सिर्फ स्वयं खाता है वो पाप का भागी है इसलिए पहले घरों में ब्राह्मण, गाय, कुत्ते की रोटी निकलती थी.
नियमों की अनदेखी कर रही बीमार
लोग अपने आसपास के लोगों का भी ख्याल रखते थे कि पौष्टिक खाना मिले. खाने की बर्बादी को रोकने के लिए लंगर और पंगत में खाना खिलाया जाता था. इससे गरीबों का पेट भरता था गीता में इस तरह के खान पान के नियम बताए गए हैं ये नियम आज के युग में भी उतने ही उपयोगी हैं. नियम छोड़ने की वजह से लाइफ स्टाइल डिजीज हो रही हैं. अगर वही नियम अपनाएं तो सिर्फ बीमारी से नहीं बचेंगे बल्कि आप दीर्घायु भी होंगे.
आहार के नियम
आयुर्वेद में भी भोजन करने के कई खास नियम बताए गए हैं. भूख लगने पर ही खाएं.
ज़रूरत से कम खाएं. आधा पेट ठोस चीजों से, 1/4 तरल और 1/4 खाली छोड़ें.
सूर्यास्त के बाद गरिष्ठ (मुश्किल से पचने वाला) भोजन न करें. जूठा भोजन न करें, इससे आप बीमार हो सकते हैं.
3 घंटे पहले बना भोजन न करें. खाने के आधे घंटे बाद पानी पिएं, बीच में न पिएं.
दिन में खाने के बाद बायें करवट से करीब 15 मिनट लेंटे. रात के भोजन के बाद टहलें.
भक्ति, योग, ध्यान के लिए भी आवश्यक है भोजन
भोजन के इस विषय पर पुराणों और आर्युर्वेद ने भोजन के संबंध में जो निर्देश दिए हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि भक्ति, योग, ध्यान और अध्यात्म के लिए भी भोजन एक महत्वपूर्ण विषय है.
भगवद गीता में अन्य क्षेत्रों की जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर आप इस पुस्तक को खरीद सकते हैं-
[video_ads]
[video_ads2]
You can send your stories/happenings here:info@religionworld.in