- 35 देशों से आये श्रद्धालुओं ने गीता जयंती महोत्सव में किया सहभाग
- स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने श्री मधुसूदन नायडू जी को भगवत गीता महाग्रन्थ तथा मौलाना अब्दुल वसी साहब और मौलाना हाफिज नेहाल अहमद खान साहब को रूद्राक्ष का पौधा किया भेंट
- कौमी एकता का दिया संदेश
- नशीले गुटखे के बल पर नहीं बल्कि गीता के गुटके के बल पर जीये जीवन
- गीता ही उत्तर है आतंकवाद से अध्यात्मवाद की ओर जाने का – स्वामी चिदानन्द सरस्वती
आज से पांच हजार वर्ष पहले द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने मोक्षदा शुल्क एकादशी के दिन अर्जुन को कुरूक्षेत्र के मैदान में गीता का पावन संदेश दिया था जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। गीता केवल एक धर्मग्रन्थ ही नहीं बल्कि धर्म और कर्म के सम्यक स्वरूप का प्रेरणाप्रद उदाहरण है। गीता जयंती के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’गीता का संदेश सर्वभौमिक है; सब के लिये है सदा के लिये है; गीता किसी से भी कोई भेदभाव नहीं करती। उन्होने कहा कि गीता ही उत्तर है आतंकवाद से अध्यात्मवाद की ओर जाने का; भगवत गीता विश्व शान्ति का संदेश देती है। गीता में जीवन की हर समस्या और हर पहलू का सार समाहित है।’
स्वामी जी ने ’युवाओं को संदेश देते हुये कहा कि गीता और रामायण का गुटका लेकर भारतीयों ने पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति के ध्वज को फहराया है और दूसरी ओर आज का युवा गुटखा खाकर शरीर और पर्यावरण दोनों को प्रदूषित कर रहा है अतः अब नशीले गुटखे के बल पर नहीं बल्कि गीता के गुटके के बल पर जीवन जीये।’
इस अवसर पर स्वामी जी ने कौमी एकता का संदेश प्रसारित करते हुये कहा कि हम सब एक है; एक परिवार है अतः सभी मिलकर रहे। स्वामी जी ने मौलाना हाफिज नेहाल अहमद खान साहब एवं मौलाना अब्दुल वसी साहब को कौमी एकता का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
मौलाना अब्दुल वसी साहब ने कहा कि गीता और कुरान अल्लाह और ईश्वर के गुणानुवाद के ग्रन्थ है जो हमें मिलकर रहने की शिक्षा देते है।