काल निर्णय करने वाली “मां काली”
विज्ञान और सनातन धर्म दोनों में ही काल अर्थात टाइम को बहुत महत्ता दी गई है। अलबर्ट आइंस्टिन ने जहां टाइम को ब्रम्हांड को नियंत्रित करने वाली एक सत्ता माना है वहीं सनातन धर्म भी काल को ब्रम्हांड की सबसे महत्वपूर्ण सत्ता माना है जो ब्रम्हांड की हरेक गतिविधि का आधार है । सनातन धर्म में शिव को काल का नियंता कहा गया है। नियति अर्थात हमारे जीवन में जो भी गतिविधि होती है वो किसी ना किसी काल की अवधि में होती है। इसी लिए शिव को महाकाल कहा गया है। लेकिन महाकाल को भी नियंत्रित और नियमित किया जा सकता है और उस शक्ति का नाम है महाकाली। काल के उपर विराजने वाली महाशक्ति। महाकाली शिव के उपर विराजित दिखाई गई हैं।
इसके पीछे जो भी कथा हो लेकिन इसका व्यापक अर्थ यही है कि महाकाल के उपर वो इस लिए विराजित दिखाई गई है क्योंकि वही काल को नियंत्रित करती हैं। अर्थात जो भी काल या शिव के नियंत्रण से बाहर है उसे काली उपलब्ध करा सकती हैं। इसका अर्थ यह भी है कि काली आपके भाग्य में जो नहीं भी है उसे भी आपको दे सकती हैं। श्री काली सहस्त्रनाम में मां काली को काल की निर्णायनि शक्ति कहा गया है अर्थात जो काल का भी निर्णय कर सकती हैं। लेकिन काली कौन हैं ? क्या वो शिव की पत्नी हैं। क्या वो मां पार्वती का एक स्वरुप हैं। शैव मत के मुताबिक कई कथाओं में काली को मां पार्वती का ही स्वरुप बताया गया है। लेकिन अगर संपूर्ण रुप से परंपराओं और दार्शनिक विवेचनाओं का अध्ययन किया जाए तो काली न केवल ब्रह्मा की सृष्टि निर्माण की शक्ति हैं बल्कि वो विष्णु की भी योगमाया शक्ति हैं जिससे वो सृष्टि का पालन करते हैं । जो विष्णु को भी विमोहित करती हैं।
शिव भी जब महाकाल के स्वरुप में आते हैं तो काली उनकी परा शक्ति बन कर उन्हें नियंत्रित करती हैं। यह साफ है कि महाकाली कोई अलग सत्ता हैं जो इन त्रिदेवों ब्रम्हा, विष्णु और शिव को नियंत्रित करती हैं। इसीलिए ब्रम्हा ने उन्हें त्वं स्वाहा, त्वं स्वधा, त्वं ही स्वरात्मिका कह कर उनकी अऱाधना की है । काली को ही ब्रम्हांड की अनंत और आद्या शक्ति बताया गया है । श्री दुर्गा सप्तशती, शाक्त प्रमोद, श्री काली रहस्य, और अन्य शाक्त मत के पुस्तकों के अध्ययन से यही बात सामने आती है कि काली शिव की अर्धांगिनि मां पार्वती, विष्णु की पत्नी लक्ष्मी, और ब्रम्हा की शक्ति गायत्री तीनों से अलग और परे हैं।
मूलत: आद्या शक्ति काली शिव, विष्णु और ब्रम्हा की शक्तियों पार्वती, लक्ष्मी और गायत्री इन तीनों का स्वरुप जब चाहे धारण कर सकती हैं । साधारणत हम तीन प्रकार की देवियों के स्वरुपों की अराधना करते हैं । प्रथम ब्रम्हा की शक्ति ब्रम्हाणी के तीन स्वरुपों की पूजा होती है । वो हैं सरस्वती, गायत्री और ब्रम्हाणी। शिव की पत्नी पार्वती से हम दुर्गा, माहेश्वरी, शैलपुत्री की पूजा करते हैं। जबकि विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के स्वरुपों में स्वयं लक्ष्मी, भुवनेश्वरी , पद्मावती, राधा और मां जानकी की पूजा होती है। लेकिन मां काली त्रिदेवो के अलावा त्रिदेवियों को भी अपना माध्यम बनाती हैं। तभी ब्रम्हा काली के स्वरूप माया की शक्ति से सृष्टि का निर्माण करते हैं। विष्णु दशभुजा महाकाली के योगमाया शक्ति के प्रभाव से पालन कार्य करते हैं। जबकि शिव की जटा से कभी महाकाली भद्रकाली का स्वरुप लेकर दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस करती हैं तो कभी शिव की माया बन कर दशमहाविद्या का स्वरुप धारण करती हैं।
त्रिदेवियों को भी महाकाली अपना माध्यम बनाती हैं। कभी वो पार्वती के शरीर से काली का स्वरुप लेकर हिमालय में वास करती हैं और चंडिका बन कर चंड और मुंड का संहार करती हैं। तो कभी वो सभी देवताओं की नारी शक्तियों से मिल कर बनी अंबिका के नेत्रों से निकल कर महाकाली बन कर रक्तबीज का संहार करती हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि चाहे त्रिदेव हों या त्रिदेवियां या फिर इन सभी शक्तियों का संघनीत रुप अंबिका काली के लिए ये सभी माध्यम हैं। काली कोई और ही परा शक्ति हैं। अगर काली इन सभी से भिन्न हैं तो निश्चित रुप से इनके कई अलग स्वतंत्र स्वरुप होंगे। जी हां मां काली के स्वतंत्र स्वरुप हैं योगमाया, तारा,छिन्नमस्ता, चंडिका, दक्षिण कालिका, भद्रकाली, श्मशान काली, भैरवी। इनकी चर्चा हम इस सीरीज के अंतर्गत करेंगे जो इसी नवरात्र के दौरान किया जाएगा।
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लेखक – अजीत कुमार मिश्रा
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