ईसाई धर्म के अनुसार ईसा मसीह ईश्वर के पुत्र थे. अपने जीवन के अंतिम क्षण तक, लोगों में प्रेम और विश्वास जगाने वाले प्रभु यीशु को तमाम शारीरिक यातनाएं देने के बाद फ्राइडे के दिन ही क्रॉस पर लटकाया गया था. इसलिए उस दिन को ‘गुड फ्राइडे’ के नाम से संबोधित कर, प्रभु यीशु को याद किया जाता है.
ईसाई धर्म में गुड फ्राइडे को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे भी कहते हैं.
गुड फ्राइडे का इतिहास
ईसाई धर्मग्रंथों के अनुसार ईसा मसीह, लोगों को मानवता, अहिंसा, और एकता का उपदेश देते थे. जीवन और धर्म के सच्चे स्वरूप को समझाते थे. उनका कहना था कि धर्म मन को जीतने का उपाय है. लोग उनके उपदेशों को ध्यान से सुनते थे. धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी. लोग उन्हें ईश्वर मानने लगे.
इसके चलते तत्कालीन धार्मिक कट्टरपंथियों, और पाखंडियों को अपने लिए खतरा महसूस होने लगा. उन लोगों ने रोम के शासक पिलातुस से प्रभु यीशु की खूब बढ़ा-चढ़ा कर शिकायत की. उन्होंने पिलातुस से यीशु के बारे में कहा कि वह स्वयं को ईश्वर पुत्र कहता है. और लोगों से कहता है कि ईश्वर ने मानव-कल्याण के लिए उसे पृथ्वी पर भेजा है. वह लोगों से ईश्वर-राज की बात करता है. कट्टरपंथियों ने प्रभु पर, लोगों को राजा के विरुद्ध भड़काने का भी आरोप लगाया. राज-द्रोह और धर्म- द्रोह दोनों को ध्यान में रखते हुए गुस्से में आकर पिलातुस ने ईसा मसीह को मृत्युदंड दे दिया. प्रभु यीशु को पहले कोड़ों से पीटा गया, उसके बाद उनके सिर पर काँटों से भरा ताज पहनाया गया और अंत में उन्हें क्रॉस पर लटका दिया गया.
मृत्यु से ठीक पहले यीशु ने प्रभु से प्रार्थना की कि ,हे प्रभु इन्हें क्षमा करना, इन्हें बोध नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं. जिस जगह उन्हें क्रॉस (सूली) पर लटकाया गया था उसका नाम है गोलगोथा.
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कैसे मनाया जाता है ?
भारत के कई राज्यों में गुड फ्राइडे के दिन स्कूलों में छुट्टी रहती है. असम, गोवा, केरल जैसे राज्यों में, जहाँ ईसाई धर्म के लोग बहुत ज्यादा संख्या में रहते हैं वहाँ गुड फ्राइडे, ईस्टर और क्रिसमस बहुत अच्छी तरह से मनाया जाता है.
गुड फ्राइडे को ईसाई धर्म के लोग शोक दिवस के रूप में मनाते हैं. वे लोग चर्च जाकर प्रभु यीशु के दिए हुए मानवता के संदेशों को, उनके उपदेशों को स्वयं में उतारने का संकल्प लेते हैं. उनके बलिदान को याद करते हुए कुछ जगहों पर लोग उस दिन काले रंग के कपड़े पहनते हैं. उस दिन चर्च में घंटा नहीं बजाया जाता, उसकी जगह लकड़ी को खटखटा कर आवाज की जाती है लोग क्रॉस को माथे से लगाते हैं और उसे चूमकर प्रभु यीशु को याद करते हैं. लोग समाज के कल्याण के लिए उस दिन सामर्थ्य अनुसार दान देते हैं.
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