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इस साल गुड़ी पड़वा 25 मार्च को है। बता दें कि गुड़ी का अर्थ विजय होता है। हर साल गुड़ी पड़वा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।
माना जाता है कि इस दिन विश्व पिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। शास्त्रों के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन श्रीराम ने बाली के अत्याचारों से दक्षिण भारत की प्रजा को मुक्त करवाया था।
यहीं कारण है कि महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इस दिन विजय के दिन के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा भी कई कथाएं प्रचलित हैं।
गुड़ी पड़वा की पूजन विधि
गुड़ी पड़वा या नव संवत्सर के दिन प्रातः नित्य कर्म कर तेल का उबटन लगाकर स्नान आदि से शुद्ध एवं पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर देश काल के उच्चारण के साथ सुख समृद्धि प्राप्त होती है।
पूजन का शुभ संकल्प कर नई बनी हुई चौरस चौकी या बालू की वेदी पर स्वच्छ श्वेतवस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाकर उस पर ब्रह्माजी की सुवर्णमूर्ति स्थापित करें।
गणेशाम्बिका पूजन के पश्चात् ‘ॐ ब्रह्मणे नमः’ मंत्र से ब्रह्माजी का आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें।
पूजन के अनंतर विघ्नों के नाश और वर्ष के कल्याण कारक तथा शुभ होने के लिए ब्रह्माजी से विनम्र प्रार्थना की जाती है : –
‘भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु में। संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः।’
पूजन के पश्चात विविध प्रकार के उत्तम और सात्विक पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए।
इस दिन पंचांग श्रवण किया जाता है।
नवीन पंचांग से उस वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष आदि का तथा वर्ष का फल श्रवण करना चाहिए।
सामर्थ्यानुसार पचांग दान करना चाहिए तथा प्याऊ की स्थापना करनी चाहिए।
इस दिन नया वस्त्र धारण करना चाहिए तथा घर को ध्वज, पताका, बंधनवार आदि से सजाना चाहिए।
गुड़ी पड़वा दिन नीम के कोमल पत्तों, पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिस्री और अजवाइन डालकर खाना चाहिए। इससे रुधिर विकार नहीं होता और आयोग्य की प्राप्ति होती है।