गुप्त नवरात्रि विशेष: माँ छिन्नमस्ता जिनका स्वरुप भक्त के भाव पर निर्भर है
इस परिवर्तनशील जगत का अधिपति कबंध है और उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है. इनका सिर कटा हुआ और इनके कबंध से रक्त की तीन धाराएं बह रही है. इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन है. देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत है. इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं. उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है.
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माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है. चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है. कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं. पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है. इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है. शरीर रोग मुक्त होते हैं. सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं. यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है.
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कामाख्या के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है. झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर है. रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है.
छिन्नमस्ता माता का मंत्र : रूद्राक्ष माला से दस माला प्रतिदिन ‘श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा’ मंत्र का जाप कर सकते हैं।
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