गुप्त नवरात्रि विशेष: साधक को युक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाली माँ है त्रिपुर भैरवी
त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं. यह बंदीछोड़ माता है. भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि. त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं।
माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं. इन्हें षोडशी भी कहा जाता है. षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है. यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है. इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है. जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है. आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।
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जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है. इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है. षोडशी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है.
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देवी कथा : नारद-पाञ्चरात्र के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं. भगवान शिव जब देवी को को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल हो जाते हैं और उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं. शिवजी, महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारदजी उन्हें देवी का बोध कराते हैं वह कहते हैं कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं. वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी. तब भोले शिवजी की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहां जाते हैं. महर्षि नारदजी जब वहां पहुंचते हैं तो देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो जाती हैं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट होता है और इस प्रकार उससे छाया विग्रह ‘त्रिपुर-भैरवी’ का प्राकट्य होता है।
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