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10वें गुरु गोबिंद सिंह जी का शहीदी दिवस

10वें गुरु गोबिंद सिंह जी 

7 अक्टूबर, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सिख धर्म के 10 वें गुरू गोबिंद सिंह जी की निर्वाण दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि गुरू गोबिंद सिंह जी ने प्रेम और ज्ञान, सदाचारी एवं सत्यनिष्ठ होने का संदेश दिया।

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स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गुरू नानक देव जी से लेकर दसवें गुरू, गुरूगोबिंद सिंह जी ने जीवन के बड़े ही प्यारे मंत्र दिये। ’’नाम जपना, हमेशा ईश्वर का सुमिरन करना, किरत करना और ईमानदारी से आजीविका अर्जित करना। वंड छकना, अर्थात दूसरों के साथ अपनी कमाई साझा करना, जरूरत मंदों को दान देना एवं उनकी देखभाल करना।

वास्तव में यही जीवन जीने व सेवा करने का माध्यम है। ईमानदारी से जीवन जीना, अपराध से दूर रहना और प्रकृति के अनुरूप जीना यही सच्चा धर्म है।

सदाचारी एवं सत्यनिष्ठ जीवन जीने का उपदेश – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

स्वामी जी ने कहा कि हर क्षण प्रभुनाम का सुमिरण करना, अपने आध्यात्मिक एवं लौकिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए सदाचारी एवं सत्यनिष्ठ जीवन जीने की शिक्षा गुरू गोबिंद सिंह जी ने दी।

गुरु गोबिन्द सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

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गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु रूप में सुशोभित किया। आज्ञा भई अकाल की, तभी चलायो पंथ, सब सिखन को हुक्म है, गुरू मानियो ग्रंथ। गुरूगोबिंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया। उन्होंने प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। सहनशीलता, मधुरता और सौम्यता उनके व्यक्तित्व के प्रमुख गुण थे।

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स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में सिख समुदाय के इतिहास में जागृति और नई ऊर्जा का समावेश किया। वर्तमान समय में पूरे मानव समुदाय को विशेष रूप से युवाओं को देशभक्ति, पर्यावरण की सुरक्षा और नव जागृति के लिये कार्य करने की जरूरत है। आईये आज हम संकल्प लें कि हम अपने राष्ट्र की उन्नति और समृद्धि हेतु योगदान प्रदान करें।

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