गुरु पूर्णिमा : जानिये आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व
हमारा देश अनेक परंपराओं का साक्षी रहा है, इन्हीं परंपराओं में से एक है गुरु-शिष्य परंपरा. गुरु भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं और उस संस्कृति को याद रखने के लिये ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का नाम दिया गया है.
आषाढ़ की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है. अर्थ है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह. आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों. शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं. उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है. इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी. यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है.
क्या है आध्यात्मिक महत्त्व
पुराणों में एक प्रसंग मिलता है कि जिसके अनुसार संतों, ऋषियों और देवताओं ने महर्षि व्यास से अनुरोध किया था कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं की पूजा के लिए कोई न कोई दिन निर्धारित है उसी तरह गुरुओं और महापुरुषों की अर्चना के लिए भी एक दिन निश्चित होना चाहिए. इससे सभी शिष्य और साधक अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता दर्शा सकेंगे.
इस अनुरोध पर वेद व्यास ने आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन से ‘ब्रह्मासूत्र’ की रचना शुरू की और तभी से इस दिन को व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा.
गुरु पूर्णिमा के सापेक्ष में यह भी माना जाता है कि और कई पुराणों, उपपुराणों व महाभारत की रचना भी इसी दिन पूर्ण हुई थी.
गुरु पूर्णिमा सभी गुरुओं को याद करने का, उन्हें नमन करने का दिन है. शास्त्रों में गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. गुरुओं के बारे में स्वयं भगवान शिवजी कहते हैं-
गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः.गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते .. (श्री गुरुगीता श्लोक 152) अर्थात् गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है.गुरु से अधिक और कुछ नहीं है और यह मैं तीन बार कहता हूं.
आपको ज्ञात होगा भगवान शिव भी किसी न किसी के ध्यान में लगे रहते हैं, यानी उनसे भी बड़ा कोई है जो उन्हें मार्गदर्शन देता है और जिनकी शरण में वे अपना मस्तक झुकाते हैं. भगवान कृष्ण ने भी ज्ञान के लिये गुरु सांदीपनि का आश्रय पाया था. गुरु सब कुछ है. गुरुत्व प्राणियों का आधार है. कहते हैं ‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर’ अर्थात् भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण मिल जाती है, परंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण नहीं मिल पाती. एक गुरु आत्मज्ञानी, आत्मनियंत्रित, संयमी और अंतर्दृष्टि से युक्त होता है जो अपने शिष्य की कमजोरी, ताकत, उसकी बुद्धि को भलीभांति पहचानकर ही उसे शिक्षा प्रदान करता है ताकि अपने ज्ञान के क्षेत्र में उसे कोई पराजित न कर सके.
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क्या है वैज्ञानिक महत्त्व
गुरुपूर्णिमा का पर्व भक्तों के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि गुरु के मार्गदर्शन से ही हमारा जीवन सम्पूर्णता प्रदान करता है. गुरु पूर्णिमा का अपना वैज्ञानिक महत्त्व है. इसकी विवेचना “विस्डम ऑफ़ ईस्ट” पुस्तक के लेखक आर्थर स्टोक ने की है. आर्थर स्टोक अपनी पुस्तक में स्वयं लिखते हैं कि “जैसे भारत द्वारा खोज किए गए शून्य, छंद, व्याकरण आदि की महिमा अब पूरा विश्व गाता है, उसी प्रकार भारत द्वारा उजागर की गई सतगुरु की महिमा को भी एक दिन पूरा विश्व जानेगा. यह भी जानेगा कि अपने महान गुरु की पूजा के लिए उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना? ऐसा क्या ख़ास है इस दिन में?”
स्टोक ने आषाढ़ पूर्णिमा को लेकर कई अध्ययन व शोध किए. इन सब प्रयोंगो के आधार पर उन्होंने कहा “वर्ष भर में अनेकों पूर्णिमा आती हैं जैसे शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा…. आदि. लेकिन, आषाढ़ पूर्णिमा भक्ति व ज्ञान के पथ पर चल रहे साधकों के लिए एक विशेष महत्व रखती है!
स्टोक के मुताबिक इस दिन आकाश में अल्ट्रावायॅलेट रेडिएशन फ़ैल जाती है. इस कारण व्यक्ति का शरीर व मन एक विशेष स्थिति में आ जाता है. अत: यह स्थिति साधक के लिए बेहद लाभदायक है. आत्म-उत्थान व कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अति उत्तम है. इसका असर ये होता है कि ध्यान आदि के लिए ये समय सबसे ज्यादा उपयुक्त हो जाता है.
गुरु के मध्यस्थ बनते ही हम आत्मज्ञान पाने लायक बनते हैं. सच्चा गुरु स्वयं को कभी थोपता नहीं है. वह अपने व्यवहार हमारे सामने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करता है जिससे हम वैसा व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं.
गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान देने के साथ-साथ जीवन में अनुशासन में जीने की कला भी सिखाते हैं. वह व्यक्ति में सत्कर्म और सद्विचार भर देते हैं. इसलिए गुरु पूर्णिमा को अनुशासन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है.