सिख धर्म के 9वें गुरु तेग बहादुरका नाम एक क्रांतिकारी युग पुरुष के नाम पर जाना जाता है. विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का धर्म की रक्षा में नाम अद्वितीय है.
आज गुरु तेग बहादुर सिंह का 400वां प्रकाशपर्व है. गुरु तेग बहादुर का जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हुआ था. उनका बचपन का नाम त्यागमल था.
बाल्यावस्था में ही संत स्वरूप और गहन विचार
ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेज बहादुर बचपन से ही संत स्वरूप और गहन विचारवान और उदार चित्त थे. वह बचपन से ही आधात्यमिक रूचि वाले पुरुष थे.
गुरु तेग बहादुर 1634 में करतारपुर के युद्ध में ऐसी वीरता दिखाई कि उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर रख दिया. उस वक्त वह महज 13 साल के थे. 21 वर्ष की सतत् साधना के बाद 1665 ई. में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए.
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कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा
वर्ष 1675 की बात है गुरु तेग बहादुर के दरबार में कश्मीरी पंडितों का एक दल आया और उन्होंने बताया कि औरगंजेब जबरन लोगों को अपने धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर कर रहा है.
कश्मीरी पंडितों ने तेग बहादुर को बताया कि जो लोग औरंगजेब की बातों को नहीं मान रहे हैं उन पर अत्याचार किया जा रहा है. कश्मीरी पंडितों के दल ने उनसे मदद की प्रार्थना की.
गुरु जी ने कहा, ‘इसके लिए किसी महापुरुष को आत्मबलिदान देना होगा. 09 वर्षीय बालक गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा, इस बलिदान के लिए आपसे बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है.’
औरंगजेब ने तेग बहादुर के सामने रखी शर्त
कश्मीरी पंडितों के दल से मुलाकात करने बाद गुरु तेग बहादुर औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे. औरंगजेब ने उनके सामने तीन शर्ते रखीं, ‘इस्लाम कबूल करें, करामात दिखाएं या शहादत दें.
औरगंजेब को जवाब देते हुए गुरु जी ने उत्तर दिया ‘मैं धर्म परिवर्तन के विरुद्ध हूं, और चमत्कार दिखाना ईश्वर की इच्छा की अवहेलना है.’ इसके बाद गुरु जी के साथ दिल्ली गए तीन सिखों भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला को यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया.
औरंगजेब ने गुरु जी पर भी अनेक अत्याचार किए. अंतत: आठ दिनों की यातना के बाद 24 नवंबर 1675 ई. को गुरु जी को दिल्ली के चांदनी चौक में शीश काटकर शहीद कर दिया गया. गुरु तेग बहादुर की याद में इसी स्थान पर गुरुद्वारा शीश गंज को बनाया गया.
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