हनुमान चालीसा : हनुमान की आराधना Views: 1,547॥दोहा॥श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥॥चौपाई॥जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥सहस बदन तुह्मारो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना । लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥सब सुख लहै तुह्मारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥आपन तेज सह्मारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥चारों जुग परताप तुह्मारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥राम रसायन तुह्मरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥अन्त काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥॥दोहा॥पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप । राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥ Post By Religion World