नवरात्रि साधना के अनमोल ज्योतिषीय और स्वास्थवर्धक फायदे : वैज्ञानिक निष्कर्ष के साथ
(21 — 29 सितम्बर 2017 से )
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही ज्योतिषीय महत्व रहा है। हमारी वैदिक भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार व्यावहारिक और वैज्ञानिक तौर पर खरे उतरते है।
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे”
नव अक्षरों वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र के हर अक्षर में देवी दुर्गा कि एक-एक शक्ति समायी हुई हैं, जिस का संबंध एक-एक ग्रहों से हैं।
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि नवरात्रि का धार्मिक आध्यात्मिक लौकिक और शारीरिक दृष्टि से बड़ा महत्व महत्व है। शिव और शक्ति की आराधना से जीवन सफल और सार्थक होता है।
शारदीय नवरात्र के दिनो में ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए मां दुर्गा की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली के ग्रहों की शांति हेतु नवरात्रि के दिनो में मां दुर्गा की आराधना पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से कि जाये, तो मां दुर्गा कि प्रमुख नौ शक्तियाँ जाग्रत, होते हुए नव ग्रहों को नियंत्रित करती हैं, जिससे ग्रहों से होने वाले अनिष्ट प्रभाव से रक्षा प्राप्त होती है और ग्रह जनित बाधाओ से मुक्ति प्राप्त होती है|
ज्योतिष मत के अनुसार यदि जन्म कुंडली में चंडाल योग, दरिद्र योग, ग्रहण योग, विष योग, कालसर्प एवं मांगलिक दोष, एवं नवग्रह संबंधित पीड़ा एवं दैवी आपदाओं से मुक्ति प्राप्त करने का सरल साधन देवी कि आराधना हैं।
जब ज्योतिष के दूसरे उपायों जैसे पूजा, अर्चना, साधना, रत्न एवं अन्य उपायो से पूर्ण ग्रह पीडाएं शांत नहीं हो पा रही हो तब ऐसी स्थिति में आदि शक्ति मां भगवती दुर्गा के नव रुपो कि आराधना से व्यक्ति सरलता से विशेष लाभ प्राप्त कर सकता हैं।
नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ‘नवरात्र’ है।
नवरात्र पर्व हमेशा चैत्र और आश्विन मास में ही होते हैं इसका एक वैज्ञानिक कारण है। मौसम विज्ञान के अनुसार यह दोनों ही मास सर्दी गर्मी की संधि के महत्वपूर्ण मास है। शीत ऋतु का आगमन अश्विन मास से आरंभ हो जाता है और. ग्रीष्म ऋतु का चैत्र मास से , यह एक संधि काल है इसलिए हमारे स्वास्थ्य पर इनका विशेष प्रभाव पड़ता है। शरीर में वात पित्त और कफ तीनों पर प्रभाव पड़ता है। यह कारण है इस संसार के अधिकांश रोगी इन दोनों मास में या तो अच्छे हो जाते हैं या फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
जैसे ही एक ऋतु खत्म होती है प्रकृति में एक हलचल प्रारंभ होने लगती है | पेड़-पौधे, वनस्पति, जगत, जल, आकाश और वायु मंडल सभी में परिवर्तन होने लगता है। जब ऋतु बदलती है तो नए अन्न को शरीर को देने से पहले हम शरीर को खाली कर लेते हैं जैसे एक बर्तन में नये प्रकार के भोजन से पहले बर्तन साफ कर लिया जाता है। जब हम उपवास करते हैं तो शरीर के पाचन तन्त्र को विश्राम मिलता है परंतु विश निष्कासान (toxins) की प्रक्रिया चलती रहती है जिसे शरीर में जमा सारा विष निकाल जाता है । अब जब हम फिर से अन्न ग्रहण करते हैं तो पाचन तन्त्र अधिक क्षमता से काम करता है । इसलिए शास्त्रों और आयुर्वेद में भी संधि काल के इन महीनों में शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए 9 दिन तब विशेष रूप से व्रत उपवास आदि का विधान किया है।
यदी ब्रम्हचर्य का पालन करते करते हुए इन 9 दिनों में अगर विधि पूर्वक व्रत उपवास किया जाए आने वाले ऋतु काल के लिए शरीर में नई शक्ति का संचार हो जाता है। इस कारण आगे आने वाले ऋतु परिवर्तन मैं किसी भी प्रकार का रोग और व्याधि से काफी हद तक छुटकारा मिल सकता है।
उपवास के दौरान अन्न नहीं खाने के पीछे वैज्ञानिक कारण यह भी है कि हमारे शरीर के लिए कभी-कभी भूखा रहना भी फायदेमंद होता है।
उपवास करने पर हम अनादि नहीं खाते हैं जिससे हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है। व्रत के दौरान हम बहुत नियम से संतुलित खाना खाते हैं जो कि हमारी सेहत के लिए बहुत अच्छा रहता है।
व्रत में नियम के अनुसार खाने से कब्ज गैस इन डाइजेशन सिर दर्द बुखार आदि बीमारियों का असर कम हो जाता है। उपवास वजन घटाने का सबसे अच्छा प्रभावी तरीका है यह यह शरीर की संरचना को नियंत्रित करता है, शरीर के मेटाबोलिज्म प्रणाली को नियंत्रित करता है। इसलिए हम नवरात्रि में 9 दिन का व्रत उपवास करते हैं और शरीर को मजबूत बनाते हैं।
प्रायः देखा जाता है कि ज्योतिष के माध्यम से पता चलता है कि किस कारण से यह रोग हुआ है और उसका इलाज रत्न चिकित्सा या मंत्र चिकित्सा के माध्यम से किया जाता है |मंत्र भी सही मुहूर्त मे करने पर शीघ्रातिशीघ्र प्रभावशाली होते है।
यही कारण है कि पुराने से पुराने असाध्य रोगो को भी नवरात्रो मे मंत्र चिकित्सा द्वारा ठीक कर पाना सम्भव होता है |
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे”
नवार्ण मंत्र दुर्गा कि नव शक्तियाँ व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष कि प्राप्ति में सहायक सिद्ध होती हैं…