कुम्भ 2019 विशेष: क्या है शाही स्नान और क्यूँ अस्त्र शस्त्र के साथ नज़र आते हैं यहाँ साधु
कल मकर संक्रांति के अवसर पर शाही स्नान की शुरुआत होगी. शाही स्नान की तारीखें घोषित हो चुकी है. तेरह अखाड़ों के साधु-संत संगम पर शाही स्नान करेंगे. शांति से शाही स्नान निबटाने के लिए अखाड़ों का क्रम और स्नान के लिए जगह भी तय कर दी गयी है. वास्तव में इस स्नान को शाही स्नान क्यूँ कहते हैं और स्नान के दौरान साधुओं में इतनी आक्रामकता क्यूँ नज़र आती है. आइये जानते हैं शाही स्नान के बारे में रिलिजन वर्ल्ड की नज़र से –
क्या है शाही स्नान
शाही स्नान को वैदिक परम्परा नहीं है. ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत चौदहवीं से सोलहवी शताब्दी के बीच हुयी. उस दौरान देश पर मुगल शासकों के आक्रमण की शुरुआत हो गई थी. धर्म और परंपरा को मुगल आक्रांताओं से बचाने के लिए हिंदू शासकों ने अखाड़े के साधुओं और खासकर नागा साधुओं से मदद ली.तब नागा साधु धीरे-धीरे आक्रामक होने लगे और धर्म को राष्ट्र से ऊपर देखने लगे. ऐसे में शासकों ने नागा साधुओं के प्रतिनिधि मंडल के साथ बैठक कर राष्ट और धर्म के झंडे और साधुओं और शासकों से काम का बंटवारा किया. साधु खुद को खास महसूस कर सकें, इसके लिए कुंभ स्नान का सबसे पहले लाभ उन्हें देने की व्यवस्था हुई. इसमें साधुओं का वैभव राजाओं जैसा होता था, जिसकी वजह से इसे शाही स्नान कहा गया. इसके बाद से शाही स्नान की परंपरा चली आ रही है.
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क्या है आक्रामकता का कारण
वक्त के साथ शाही स्नान को लेकर विभिन्न अखाड़ों में संघर्ष होने लगा. साधु इसे अपने सम्मान से जोड़ने लगे. उल्लेख मिलता है कि साल 1310 में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णव अखाड़े के बीच खूनी संघर्ष हुआ. दोनों ओर से हथियार निकल गए और पूरी नदी ने खूनी रंग ले लिया. साल 1760 में शैव और वैष्णवों के बीच स्नान को लेकर ठन गई. इसके उपरांत ब्रिटिश इंडिया के शासन काल के दौरान स्नान के लिए विभिन्न अखाड़ों का एक क्रम तय हुआ जो अब तक चला आ रहा है.
कुम्भ का यह स्नान आखिर क्यूँ कहलाता है शाही स्नान
शाही स्नान के लिए विभिन्न अखाड़ों से ताल्लुक रखने वाले साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों, हाथी-घोड़े पर बैठकर स्नान के लिए पहुंचते हैं. सब अपनी-अपनी शक्ति और वैभव का प्रदर्शन करते हैं. इसे राजयोग स्नान भी कहा जाता है, जिसमें साधु और उनके अनुयायी पवित्र नदी में तय वक्त पर डुबकी लगाते हैं. माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में डुबकी लगाने से अमरता का वरदान मिल जाता है. यही वजह है कि ये कुंभ मेले का अहम हिस्सा है और सुर्खियों में रहता है. शाही स्नान के बाद ही आम लोगों को नदी में डुबकी लगाने की इजाजत होती है.
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कब शुरू होता है शाही स्नान
ये स्नान मकर संक्रांति दिन पर सुबह 4 बजे से शुरू हो जाता है. इस वक्त से पहले अखाड़ों के साध-संतों का जमावड़ा घाट पर हो जाता है. वे अपने हाथों में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र लिए होते हैं, शरीर पर भभूत होती है और वे लगातार नारे लगाते रहते हैं. मुहूर्त में साधु न्यूनतम कपड़ों में या फिर निर्वस्त्र ही डुबकी लगाते हैं. इसके बाद ही आम जनता को स्नान की इजाजत मिलती है