होलाष्टक में भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम
होलाष्टक अष्टमी तिथि से आरंभ होता है। अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक अलग-अलग ग्रहों का प्रभाव बहुत अधिक रहता है। जिस कारण इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की इन 8 दिनों में ग्रह अपने स्थान में बदलाव करते हैं। इसी वजह से ग्रहों के चलते इस अशुभ समय के दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
शादी : ये किसी के भी जीवन के सबसे महत्वपूर्ण लम्हों में से एक होता है। यह वो मौका होता है जब आप किसी के साथ पूरा जीवन व्यतीत करने के वादे करते हैं। यहां से जिंदगी का एक अलग पन्ना भी शुरू होता है। इसलिए शादी को बहुत ही शुभ माना गया है। यही कारण है कि हिंदू धर्म मे होलाष्टक में विवाह की मनाही है। अत: इन दिनों में विवाह का कार्यक्रम नहीं किया जाना चाहिए।
नामकरण संस्कार: किसी नवजात बच्चे के नामकरण संस्कार को भी होलाष्टक में नहीं किया जाना चाहिए। हमारा नाम ही पूरे जीवन के लिए हमारी पहचान बनता है। नाम का असर भी हमारे जीवन पर अत्यधिक पड़ता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि इसे शुभ काल में किया जाए।
विद्या आरंभ: बच्चों की शिक्षा की शुरुआत भी इस काल में नहीं की जानी चाहिए। शिक्षा किसी के भी जीवन के सबसे शुभ कार्यों में से एक है। इसलिए जरूरी है कि जब अपने बच्चे को किसी गुरु के देखरेख में दिया जाए तो वह शुभ काल हो। इससे बच्चे की शिक्षा को लेकर अच्छा असर होता है और तेजस्वी बनता है।
संपत्ति की खरीद–बिक्री: ये कार्य भी होलाष्टक काल में नहीं किया जाना चाहिए। इससे अशांति का माहौल बनता है। संभव है कि आपने जो संपत्ति खरीदी या बेची है, वह बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन जाए। इसलिए कुछ दिन रूककर और होलाष्टक खत्म होने के बाद ही इन कार्यों को हाथ लगाएं।
नया व्यापार और नई नौकरी: आप नया व्यापार शुरू करना चाहते हैं या फिर कोई नई नौकरी ज्वाइन करना चाहते हैं तो बेहतर है इन दिनों में इसे टाल दें। आज की दुनिया में व्यवसाय या नौकरी किसी के भी अच्छे जीवन का आधार है। इसलिए होलाष्टक के बाद इन कार्यों को करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा आपके साथ रहेगी और आप सफलता हासिल कर सकेंगे।