इस बार ब्रज में करें होली का हुडदंग : कहां-कहां जाए, कैसे खेलें मथुरा में होली
होली का त्योहार आये और ब्रज की होली का ज़िक्र न हो ऐसा संभव हो ही नहीं सकता। आपने अक्सर सुना होगा की ब्रज में होली का आनंद कुछ और ही होता है। आप भी चाहते होंगे मथुरा, बरसाना या गोकुल की होली का लुत्फ़ उठाना, लेकिन आपको पता ही नहीं है कि वहां कहाँ-कहाँ होली का उत्सव मनाया जा रहा है… तो अब परेशानी की कोई बात नहीं है हम आपको बताते हैं कि कैसे आप इस होली को कान्हा की नगरी में यादगार बना सकते है। आपको विस्तार से बताते हैं कि आने वाले दिनों में मथुरा में कहाँ- कहाँ रंगोत्सव का आयोजन होगा।
23-2-18 — नंदगाँव फाग आमंत्रण उत्सव
बरसाना के श्रीजी महल से शुक्रवार को नंदगांव के नंदभवन को लठामार होली खेलने का निमंत्रण जाएगा। निमंत्रण के बाद नंदभवन में विभिन्न कार्यक्रम होंगे।इस दौरान पहले से निमंत्रण की उत्सुकता में पलक पांवडे़ बिछाए नंदगांव के ग्वाल निमंत्रण स्वरूप आए गुलाल को नंदबाबा एवं कन्हैया के चरणों में रखेंगे और ठाकुर जी से होली खेलने के लिए बरसाना चलने का निवेदन करेंगे। फाग आमंत्रण महोत्सव के दौरान कान्हा के घर नंदभवन में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
23-2-18— बरसाना लड्डू होली
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दूसरी ओर राधाजी के गांव बरसाना में शुक्रवार को लड्डूू होली का आयोजन मंदिर परिसर में किया जाएगा। क्विंटलों मोतीचूर आदि के लड्डू श्रद्धालुओं पर बरसाए जाएंगे। संध्या के समय बरसाना के श्रीजी महल में हजारों किलो लड्डुओं की बरसात होगी। इसे स्थानीय लोग लड्डू होली की संज्ञा देते हैं। देश के विभिन्न कोनों से आए श्रद्धालु उन लड्डुओं को लपकने के लिए आतुर दिखाई देते हैं।
24-2-18 — बरसाना लठामार होली
बरसाना का लट्ठमार होली न सिर्फ देश में मशहूर है बल्कि पूरी दुनिया में भी काफी प्रसिद्ध है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में लट्ठमार होली मनाई जाती है। नवमी के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। यहां लोग रंगों,फूलों के अलावा डंडों से होली खेलने की परंपरा निभाते है। इसे देखने के लिए कई जगहों से लोग आते है।दरअसल यह परंपरा भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण अपने साथियों के साथ मिलकर नंद गांव से बरसाना राधा और उनकी सखियों के संग होली खेलने पहुंचते हैं। जहां पर कृष्ण जी राधा संग ठिठोली करते है जिसके बाद वहां की सारी गोपियां उन पर डंडे बरसाती थी।इनकी मार से बचने के लिए नंदगांव के ग्वाले लाठी और ढ़ालों का सहारा लेते हैं यहीं परंपरा धीरे-धीरे चली आ रही है जिसका आजतक पालन किया जा रहा है। इस दौरान पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारन कहा जाता है। इसके बाद सभी मिलकर रंगों से होली का उत्सव मनाते है।
25-2-18— नंदगाँव लठामार होली
होली की बात हो तो नंदगांव बरसाना से पीछे कैसे रह सकता है। अगले दिन नंदगांव की महिलाओं की बारी आती है। बरसाना के पुरुष नंदगांव की महिलाओं के साथ रंग खेलने पहुंचते हं लेकिन उनके साथ लिया जाता है मीठा सा बदला। महिलाएं उन्हें लाठियों से मारती हैं। रंग, गुलाल, मिठाई और उल्लास में सराबोर हुई भीड़। महिलाएं मारती हैं लठ्ठ और गांव के सारे कन्हैया खुद को बचाते हुए उन्हें रंग लगाने की फिराक में रहते हैं। इस वक्त यहां की फिज़ाओं में उड़ता है रंग, गुलाल के साथ बचपना, आनंद।बरसाने की तरह ही 25 फ़रवरी को नंद्गाओं में भी लठामार होली का आयोजन किया जायेगा. तो जो लोग लट्ठमार होली का लुत्फ़ बरसाने में नहीं ले पाए हैं वो नंदगाँव में इसका भरपूर आनंद ले सकते हैं.
26-2-18— श्रीकृष्ण जन्मभूमि की होली
मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में होली का भव्य जश्न मनाया जाता है। मथुरा में ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। दूर-दूर से श्रीकृष्ण भक्त आकर यहां होली खेलते हैं। इस मौके पर लठ्ठमार होली भी खेली जाती है। हर तरफ बस रंग औऱ रंग ही नजर आते हैं। यहां एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है। मथुरा के श्रीद्वारकाधीश मंदिर में एक भव्य आयोजन भी किया जाता है। तो मथुरा जाकर हो जाइए रंगों से सरोबार।
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26-2-18— वृन्दावन की होली
रंगभरनी एकादशी खास दिन है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में काफी धूमधाम के साथ रंगभरनी एकादशी मनाई जाती है। दुनिया भर के भगवान श्रीकृष्ण के भक्त यहां इकठ्ठा होते हैं और रंगों से खेलते हैं। रंग और आनंद से सराबोर भक्तों को देखते ही बनता है।
27-2-18 —छड़ीमार होली, गोकुल
छड़ीमार होली जिसमें हुलियारियों ने छड़ियां बरसाईं तो बाल कृष्ण के स्वरूपों ने अपने डंडे से उनका बचाव करते हैं। इस होली के बारे में कहा जाता है कि बाल गोपाल ने बगीचे में बैठकर भक्तों के साथ होली खेली थी। वही परंपरा आज तक चलती आ रही है।
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1-3-18— होलिका दहन, फालैन का पंडा
होलिका दहन यानी बुराई को खत्म करने का प्रतीकात्मक त्योहार। होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, हिरण्यकश्यप नाम अपने पुत्र प्रहलाद पर अत्यधिक क्रोधित था। इसकी वजह प्रहलाद का विष्णु भक्त होना था। क्रोधित हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठर को कहा क्योंकि उसे अग्नि के प्रभाव से मुक्त होने का वरदान मिला था। लेकिन विष्णु भक्त प्रहलाद पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और होलिका खुद ही जल गई। मथुरा और ब्रजभूमि में होलिका दहन ज्यादा उत्साह के साथ मनाया जाता है।
2-3-18— द्वारिकाधीश होली, चतुर्वेदी समाज का डोला
तमाम जश्नों के बाद आ जाता है रंगों की होली का दिन। पूरे ब्रज के लोग होली खेलने के लिए इकठ्ठे हो जाते हैं। लाल, हरा, नीला, गुलाबी, बैंगनी हर तरह के रंग हवा में घुल जाते हैं और प्यार, आनंद, भाईचारा हर तरफ उमड़ पड़ता है। गलियों और सड़कों पर होली के गाने बजते रहते हैं। होली मनाने के लिए बृज से बेहतर दुनिया में कोई और जगह नहीं हो सकती है।
3-3-18— दाऊजी का हुरंगा, जाव का हुरंगा, नंदगाँव का हुरंगा
श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता दाऊजी महाराज के धाम बलदेव में हुरंगा में हुरियारिनों ने हुरियारों से कोड़ेमार होली खेली जाती है । इस दौरान जमकर रंग और अबीर-गुलाल बरसा। हां की होली थोड़ी अलग इसलिए है क्योंकि न तो हुरियारिनें लाठी बरसातीं हैं, न ही फूल। यहां हुरियारिनें हुरियारों के कपड़े फाड़कर उनसे कोड़ा बनाकर उन्हीं की पीठ पर प्रेम से प्रहार करती हैं। दाऊजी मंदिर के हौद टेसू के रंग से लबालब होते हैं |
3-3-18 — मुखराई का चरकुला नृत्य
राधारानी के ननिहाल मुखराई की नृत्य कला चरकुला ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम मचायी है. पूर्व में होली या उसके दूसरे दिन रात्रि के समय गांवों में स्त्री या पुरुष स्त्री वेश धारण कर सिर पर मिट्टी के सात घड़े तथा उसके ऊपर जलता हुआ दीपक रखकर अनवरत रूप से चरकुला नृत्य करता था। गांव के सभी पुरुष नगाड़ों, ढप, ढोल, वादन के साथ रसिया गायन करते थे। यह परम्परा आज भी चली आ रही है. आप मुखराई जाकर इसका लुत्फ़ उठा सकते हैं.
4-3-18— बठैन का हुरंगा,गिडोह का हुरंगा
कोसी से करीब पांच किमी दूर गांव बठैन में चार मार्च को होने वाला हुरंगा इस बार कुछ अलग होगा। इसके लिए करीब तीस लाख की लागत से हुरंगा मैदान का सुंदरीकरण कराया जाएगा जिससे यहां की संस्कृति दूर तक प्रसारित की जा सके।बलदेव और जाव-बठैन के अलावा ब्रज के अनेक गांवों में हुरंगे की समृद्ध परंपरा चली आ रही है। इनका स्वरूप एक जैसा है। हुरंगे के रूप में यहां ब्रजबाम और गोप ग्वालों के बीच मुकाबला होता है। ब्रजांगनाएं हुरियारों पर लाठी चलाती हैं जिसे वे डंडों पर रोकते हैं। इसी बीच एक आदमी झंडी लेकर भागता है, जो भी उसे छीन लेता है, वो जीत जाता है और हुरंगा खत्म हो जाता है।
गांवों में हुरंगे की परिपाटी कितनी पुरानी है, ये कोई नहीं बता पाता। पूछने पर यही कहते हैं कि दादा-परदादा के जमाने से चला आ रहा है। अधिकांश स्थानों पर ये हुरंगे दूज को ही होते हैं। समय के साथ इन हुरंगों में बहुत कुछ बदला है।
तो इंतज़ार किस बात का… आइये और ब्रज की होली का आनंद लीजिये. आप सभी बृज धाम की होली में सादर आमंत्रित हैं.
फोटो सौजन्य –Shri Mathura Ji
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