मथुरा के बलदेव स्थित दाऊजी मंदिर में 30 मार्च को विश्व प्रसिद्ध हुरंगा होगा. हुरंगा देखने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ेगा. यहां हुरियारों के नंगे बदन पर कपड़े के पोतने (कोड़ों) की मार पड़ती है. देशी-विदेशी श्रद्धालु हुरंगे की एक छवि देखने को यहां एकत्रित होंगे. हुरंगा के नायक शेषावतार दाऊजी महाराज होंगे.
बलदाऊ पर केन्द्रित है दाऊजी का हुरंगा
दाऊजी का हुरंगा कान्हा के बड़े भ्राता बलदेव पर केंद्रित है. हुरंगा में गोप समूहों को गोपियों द्वारा प्रेम से भीगे कोड़ों की मार लगाई जाती है. इस दृश्य को देख कर श्रद्धालु आनंदित हो उठते हैं. हुरंगा ब्रज की होली का मुकुट मणि है.
हुरंगा मंगलवार सुबह 11 बजे से दाऊजी मंदिर में शुरू हो चूका है. हुरंगा में खेलने के लिए ब्रज की गोपिका स्वरूप महिलाएं लहंगा, फरिया, आभूषण पहन मंदिर में होली गीत गाते हुए प्रवेश करती हैं. श्रद्धालु सुबह से ही छतों पर एकत्र हो जाते हैं. मंच पर श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ अबीर गुलाल उड़ाते हैं.
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हुरंगा में गोस्वामी कल्याण देव के वंशज सेवायत पांडेय समाज के पुरुष और महिलाएं ही खेलते हैं. महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़-फाड़ कर उन्हें प्रेम से टेसू के रंग में भिगो कर उनका कोड़ा बना कर नंगे बदन पर मारती हैं. कोड़े पड़ते ही पुरुष भी आनंदित हो जाते हैं. हुरियारिनें यह नहीं देखती कि पिटने वाले जेठ हैं या ससुर है.
हुरंगा में हुरियारिनें झंडा छीनने का प्रयास करती हैं, पुरुष उसे बचाने का प्रयास करते हैं. अंत में महिलाएं झंडा छीनने में सफल हो जाती है. इसी के साथ हुरंगा संपन्न हो जाता है.
आठ कुंतल टेसू फूल, ढाई कुंतल केसरिया रंग का प्रयोग
दाऊजी मंदिर के हुरंगा में आठ कुंतल टेसू के फूल, ढाई कुंतल केसरिया रंग, 11 कुंलत अबीर-गुलाल, 11 कुंतल गुलाब व विभिन्न प्रकार के फूलों का प्रयोग होता है. टेसू के फूलों का रंग प्राकृतिक रूप तैयार किया जाता है. इसमें केसर, चूना, फिटकरी मिला कर शुद्ध रूप से प्राकृतिक बनाया जाता है. गुलाल को मशीनों द्वारा उड़ाया जाता है. पानी व रंगों के फव्वारे भी लगाए जाते हैं.
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