भारत में दिवाली त्यौहार का महत्व : कैसे हर धर्म मनाता है दीपावली
दिवाली भारत का सबसे अधिक मनाया जाने वाला त्यौहार है। भारतीय क्षेत्रों और धर्मों के अनुसार दिवाली के त्यौहार के महत्व की विविधता है। भारतीय लोग जो अलग क्षेत्रों में रहते है, वे दिवाली अपनी संस्कृति, शास्त्र विधि और महत्व के अनुसार मनाते है। यह भारत का मुख्य त्यौहार है क्योंकि भारतीय लोग बहुत ज्यादा धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पारंपरिक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भारतीय लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों की विविधता ने बहुत से मेलों और उत्सवों को बनाया है।
दिवाली, भारत बहुत महत्व का त्यौहार है क्योंकि केवल भारत में ही इस त्यौहार से बहुत सारी हिन्दू भगवान की कहानियॉ और किवदंतियॉ जुङी हुई है। दिवाली त्यौहार की सभी किवदंतियॉ जैसे: भगवान राम और सीता की कहानी, महावीर स्वामी की कहानी, स्वामी दयानन्द की कहानी, राक्षस नरकासुर की कहानी, भगवान कृष्ण की कहानी, पांडवों की कहानी, गणेश और देवी लक्ष्मी की कहानी, भगवान विष्णु की कहानी, विक्रमादित्य की कहानी, सिख गुरु हरगोविंद की कहानी आदि और बहुत सी कहानियॉ है जो केवल भारत से ही जुङी हुई है। इसी लिये भारत में दिवाली का महत्व मनाया जाता है।
भारतीय लोग बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक रहे हैं, वे मानते है कि दिवाली पर सभी स्थानों पर दीयें जलाने से बुरी ऊर्जा को हटाकर अच्छी ऊर्जा आकर्षित होगी। वे समाज से इस बुराई को दूर करने के लिए पटाखें जलाकर बहुत तेज ध्वनि करते है। वे अपने घर और मन में आशीर्वाद, बुद्धि और धन का स्वागत करने के लिये रंगोली बनाते है, दरवाजे पर पर्दे लगाते है, देवी लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करते है। दीवाली के त्यौहार की उत्पत्ति और इतिहास भारत से सम्बन्धित है। वे पूरे वर्ष शुद्ध आत्मा, समृद्धि और भगवान के आशीर्वाद के स्वागत के लिये अपने घरों, कार्यालयों और अन्य काम के स्थानों की साफ सफाई और पुताई कराते है।
दिवाली अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दिवाली पर सरसों के तेल के साथ मिट्टी के दीये प्रज्जवलित करने का हिंदू अनुष्ठान है। लोगों के बीच दुश्मनी दूर करने और प्यार और दोस्ती को बढाने के लिये इस दिन मिठाई और उपहार वितरित करते है। यह पूरे भारत के साथ साथ भारत के बाहर भी विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा जैसे: हिन्दू, सिख, जैन और बुद्ध के द्वारा भी मनाया जाता है।
दिवाली का हिन्दूओं के लिये महत्व
भारत में हिन्दूओँ द्वारा दिवाली मनाने के आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। हर साल हिन्दूओं द्वारा मनाया जाने वाला दिवाली का उत्सव भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के उनके राज्य में 14 वर्ष बाद वापस आने से जुड़ा हुआ है। अयोध्या के लोगों ने अपने राजा का स्वागत मिट्टी के दीये जलाकर और पटाखें जलाकर किया। भगवान राम ने राक्षस राजा को हराया था इसलिये लोग इसे अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय के प्रतीक के रुप में मनाते है।
दिवाली के दिव्य चरित्र के अनुसार, दिवाली का पॉच दिनों का समारोह अलग अलग महत्वों को दर्शाता है। दिवाली का पहला दिन, धनतेरस हिन्दूओं के नये वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ को दर्शाता है। दिवाली का दूसरा दिन छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है जो भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर जीत के रुप में जाना जाता है। दिवाली का तीसरा दिन मुख्य दिवाली के नाम से जाना जाता है जो हिन्दूओँ द्वारा देवी लक्ष्मी की पूजा करके देवी लक्ष्मी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जो बहुत समय पहले देवताओं और राक्षसों द्वारा समुन्द्र मंथन से उत्पन्न की गयी थी। वे मानते है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से उनके ऊपर धन, बुद्धि और समृद्धि की बरसात होगी। दिवाली का चौथा दिन बली प्रतिप्रदा या गोर्वधन पूजा के नाम से जाना जाता है जो भगवान विष्णु की राक्षस राजा बली पर विजय के साथ साथ भगवान कृष्ण की घमण्डी इन्द्र के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दिवाली का पॉचवा और अन्तिम दिन यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से जाना जाता है जो हिन्दूओं में भाई- बहनों के रिश्ते और जिम्मेदारियों को मजबूती प्रदान करता है।
दिवाली के त्यौहार पर दीयें जलाना और पटाखें जलाना बुद्धि, स्वास्थ्य, धन, शान्ति और समृद्धि प्राप्ति के साथ साथ बुराई को भी अपने घर और जीवन से नष्ट करने का अपना महत्व है। यह पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के वास्तविक आनन्द और खुशी को दर्शाता है। पटाखों से उत्पन्न धुआँ बारिश के मौसम में पैदा हुये हानिकारक कीङे मकोङे और मच्छरों को मारता है।
दिवाली पर जुऍ का खेल खेलने का अपना महत्व है क्योंकि देवी पार्वती और भगवान शिव इस दिन पासों से खेले थे। देवी पार्वती ने घोषित किया कि जो दिवाली की रात को यह खेल खेलेगा वह पूरे वर्ष विकास करेगा। किसान अपने घर में नयी फसल लाने और नई फसल के मौसम के शुरू होने के कारण दिवाली मनाते हैं।
जैन धर्म के लिए दीवाली का महत्व
जैनियों द्वारा भी दीवाली अपनी संस्कृति, परंपरा और महत्व के अनुसार मनायी जाती है। यह माना जाता है कि, दीपावली के दिन, भगवान महावीर (युग के अंतिम जैन तीर्थंकर) ने 15 अक्टूबर 527 ईसा पूर्व को पावापुरी में कार्तिक के महीने(अमावस्या की सुबह के दौरान) की चतुर्दशी पर निर्वाण प्राप्त किया था। कल्पसूत्र (आचार्य भद्रबाहु द्बारा रचित) के अनुसार, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में वहॉ अंधेरे को प्रकाशित करने के लिये बहुत सारे देवता थे। यही कारण है कि दीवाली जैन धर्म में महावीर के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
वे दिवाली के चौथे दिन या दिवाली प्रतिप्रदा को नये वर्ष शुरु होने के रुप में मनाते है। वे दिवाली से अपने व्यवसायों नये वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते है। वे सामन्यतः ध्वनि प्रदूषण के कारण पटाखें जलाने से बचते है। वे रोशनी और दीये के साथ मंदिरों, कार्यालयों, घरों, दुकानों को सजाते है जो ज्ञान को फैलाने और अज्ञान को हटाने का प्रतीक है। वे मंदिरों में मंत्रोच्चार और अन्य धार्मिक गीतों का जाप करते है। जैन धर्म में भगवान से प्रार्थना करने के लिये दीवाली पर पावा-पुरी की यात्रा करने की एक रस्म है।
व्यवसायी धन की पूजा के साथ ही लेखा बहियों की पूजा करके धनतेरस मनाते हैं। काली चौदस पर विशेषतः महिलाओं द्वारा दो दिन का उपवास रखना पसन्द किया जाता है। अमावस्या के दिन वे भगवान की पूजा और उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने के लिए के डेरासर जाते है। वे “महावीरस्वामी प्रज्ञाते नमः” का जाप करते है। उनके लिये दिवाली का अर्थ है नया साल, वे एक दूसरे से मिलते है और शुभकामनाऍ देतें हैं। नए साल के दूसरे दिन वे भाऊबीज अर्थात् महावीर स्वामी की मूर्ति की शोभायात्रा निकालते है। वे पटाखें नहीं फोङते, बहुत अधिक क्रोध करने को टालते है इसके स्थान पर वे दान करते है, उपवास रखते है, मंत्र पढते है और मन्दिर सजाते है।
सिखों के लिए दीवाली का महत्व
सिखों के लिए दीवाली का त्योहार मनाने के अपने स्वयं के महत्व है। वे उनके गुरु हर गोबिंद जी के और कई हिंदू गुरुओं के साथ सम्राट जहाँगीर की जेल से घर वापसी के उपलक्ष्य में यह जश्न मनाते है। जेल से मुक्त होने के बाद हर गोबिंद जी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गये। लोगों ने बहुत उत्साह और साहस के साथ पूरे शहर को सजाकर और दीयें जलाकर अपने गुरु की आजादी का जश्न मनाया। उस दिन से गुरु हरगोबिंद जी बंदी-छोर अर्थात् मुक्तिदाता के रूप में जाने जाना शुरू हो गये। लोग गुरुद्वारे जाते है और भगवान से पूजा करते है और लंगर करते है। वे गुरुद्वारे में मोमबत्ती जलाते है और कुछ पटाखें भी जलाते है। वे अपने गुरु की मुक्ति दिवस के रूप में दीवाली मनाते हैं यही कारण है कि यह बंन्दी दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
सिखों के दीवाली मनाने का एक और महत्व साल 1737 में भाई मणि सिंह जी की शहादत है, जो बड़े सिख विद्वान और रणनीतिकार थे। दीपावली के दिन पर उन्होंने खालसा के आध्यात्मिक बैठक में कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया जो मुगल सम्राट द्वारा उन लोगों के ऊपर लगाया गया था, जो मुसलमान नहीं थे। यही कारण है कि वे भी भाई मणि सिंह जी की शहादत याद करने बंदी छोर दिवस के रूप में दीवाली मनाते है।
बौद्ध धर्म में दीवाली का महत्व
यह माना जाता है कि इस दिन पर सम्राट अशोक ने अपना धर्म बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया इसके कारण बौद्ध समुदाय द्वारा दीवाली मनायी जाती है। यही कारण है कि वे अशोक विजयादशमी के रूप में दीवाली मनाते है। वे मंत्र जाप के साथ ही सम्राट अशोक याद करके इसे मनाते हैं।
लेखक – पं. दयानंद शास्त्री, उज्जैन