दिव्य कुम्भ : भव्य कुम्भ – कैसे ?
- भव्य श्रीवास्तव
एक सवाल सभी के मन में होगा…प्रयागराज कुम्भ 2019 में ऐेसा क्या हुआ जिससे इसे याद किया जाएगा। कुम्भ केवल मेला, स्नान, पंडाल, आयोजन, कथा, पॉन्टून पुल, दान और संतों के दर्शन भर नहीं है। ये संस्कृति, राष्ट्र, धर्म, समाज, आध्यात्म का एक पड़ाव भी है। ये कहना कि यहां से कुछ नई धाराएं निकलती है, अतिश्योक्ति नहीं होगी। कैसे आप भी पढ़िए…
– कुम्भ में वैसे तो 20 करोड़ लोग आए, स्नान किया, मेला घूमा और सरकार, संतों और संस्थाओं की व्यवस्था का आनंद लिया। पर इससे बड़ी बात
– इन करोड़ों लोगों ने एक ऐसे महामेले को अंजाम दिया जिसमें 2600 करोड़ रूपए लगाए गए, और इन करोड़ों लोगों की वजह से 1 लाख करोड़ कमाने की बात कही गई। यानि हमनें भारत को एक महा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने की ओर एक कदम बढ़ाया है। हमारे महाआय़ोजन भव्य और दिव्य होते आएं हैं और हम इसमें सभी को खुले दिन से आमंत्रित करते हैं।
– कुम्भ में छह हजार पंडालों को जमीन दी गई थी। इनमें से करीब छह सौ में मुफ्त खाने यानि अन्नक्षेत्र को स्थापित किया गया था। मेले में सीताराम बापा, जगतगुरु हंसदेवाचार्य, गुरू कार्ष्णि महाराज, अक्षयपात्रा और सैकड़ों पंडालों में रोजाना 3-4 लाख लोगों ने दो समय का भोजन किया। यानि 50 दिनों में 2-3 करोड़ लोगों ने सरकारी राशन और संतों के योगदान से कुम्भ के महामेले में महाप्रसाद मुफ्त पाया।
– कुम्भ में सामाजिक सेवा के कई मानक बनें। हर बड़े पंडाल में चिकित्सा सेवा, कंबल, योग-ध्यान, गौशाला, अखंड कीर्तन, दौनिक यज्ञ और महायज्ञ, शारीरिक विकारों के लिए सेशन, श्रमिकों के बच्चों के लिए पांच सरकारी स्कूल, साठ हजार से ज्यादा स्वच्छता कर्मियों के लिए रहने और भोजन व्यवस्था, साधुओं के लिए सस्ता राशन, मुफ्त बिजली, पानी, टैंट, सड़क आदि।
– कुम्भ में सामाजिक रूढ़ियां टूटी। एक और दलित महामंडलेश्वर बनें और उन्होनें अपनी जाति या समाज के लोगों को नई परंपराओं से जोड़ा तो किन्नर अखाडे को जूना ने अपना अंग बनाकर शाही स्नान में साथ रखा। साथ ही शैव और वैष्णव अखाड़ों में बंधुता के कई उदाहरण दिखे।
– कुम्भ में उत्तर प्रदेश पुलिस ने सिद्ध किया कि वे मानव सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। पुलिस की सहायता और सहृदयता के किस्से सभी से सुनने को मिले।
– कुम्भ में कुछ पंड़ालों के वैभव के चर्चे होते रहे। पर इन्हें भौतिक युग में हिंदू धर्म की बढ़ती पहचान और शहरी लोगों के रूचि के अनुसार देखा गया। इनके कमरे किरायों पर उपलब्ध रहे और इनमें बेहतरीन सुविधाएं मिलीं। इनको दिखावे की तरह देखने वाले भी इनकी भव्यता से प्रभावित हुए।
– कुम्भ में हजारों संन्यासियों ने भौतिक जगत छोड़कर अपना पिण्डदान करके संन्यास लिया। इसे कहीं न कहीं धर्म की मजबूत होती ताकत के तौर पर देखा गया। नागाओं को देखने वालों की भारी भीड़ रही तो अखाड़ों वाले सेक्टर में हमेशा चहल-पहल दिखी। इससे ये तो पता चलता है कि धर्म की इस बनावट और बसावट से लोग अभी भी अनभिज्ञ हैं, और इसके लिए कुम्भ का लगना जरूरी है।
– कुम्भ की वजह से 70 देशों के हजारों सैलानी फिर से भारतीय धर्म, आध्यात्म, दर्शन की ओर झुके। जो कहीं न कहीं हमारी संस्कृति की नश्वरता के लिए आधार ही बना।
– कुम्भ ने अपने लक्जरी स्वरूप को भी दिखाया – लक्जरी पंडालों में हजारों रूके, और इस वैभव से अपनी भक्ति के बीच सुविधा का पुल बनाकर खुद को एक नया अनुभव दिया। चार लक्जरी टेंट सिंटी में बहार रही।
– कुम्भ में विशद चर्चा हुई – विहिप ने हिंदू धर्म की चुनौतयिों और राम मंदिर को मथा, तो परम धर्मसंसद में कई प्रस्ताव पारित हुए। संस्कृति विद्वत कुम्भ लगा जिसमें फिल्मी दुनिया से लेकर सोशल मीडिया महारथी भी आए। स्वच्छचता को लेकर कई आयोजन हुए तो सोशल मीडिया महाकुन्भ भी लगा। दुनिया के 30 देशों की जनजातियां आईं तो संतों के बीच खुलकर कई बातों पर वार्ताएं हुई।
– कुम्भ में कथा, प्रवचन, सत्संग, सेमिनार की गणना की जाए तो गिनीज बुक में गिनती हो जाए। तकरीबन 500 कथाएं (7-9 दिन वाली), 1000 पंडालों में अखंड कीर्तन ( 24 घंटे लगातार) और विभिन्न विषयों पर सैकड़ों सेमिनार।
– कुम्भ में एक अनुमान के अनुसार 1000 से ज्यादा बड़े यज्ञ हुए। केवल महर्षि महेश योगी संस्थान में 33 अति महारूद्राभिषेक हुए।
– अखाड़ों और पंडालों ने ने हजारों टन चीनी का प्रसाद बनाकर बंटवाया।
कुम्भ को केवल एक धार्मिक आयोजन समझना हमारी भूल होगी। भारत विचार के प्रसार से वसुधैव कुटुंबमकम की भावना को जाती है। यहां ऐसे वृहद आयोजन जिस सहजता से होती है, वो इसकी जड़ों की गहराई और प्रकृति से इसके जुड़ाव को बताता है। कुम्भ एक पड़ाव है, जहां राजनीति, समाज और धार्मिक विचारों का समुद्र मंथन होता है, हर बार कुम्भ में कुछ निकलता है। इस बार हमें यहां से प्राप्त हुआ है – “वृहदता और भारतीयता”।