कैलाश-मानसरोवर यात्रा : अनोखी, अविस्मरणीय और अद्भुत
पहाड़ों पर धर्म बसता है, तभी तो हमारे देवी देवता दूर पहाड़ों में बसे है। वैष्णोदेवी, सबरीमाला, नंदा देवी, बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ और कैलाश। पर गौर करिए, जिस ईश्वर को पाना सबसे कठिमन है, वो खुद कठिनतम स्थान पर बसे है। यात्रा के सुखद और कष्टमय अनुभवों को जीने के लिए आपको कहीं न कहीं जना पड़ता है। कभी किसी अपने से मिलने तो कभी किसी परमात्मा का साक्षात्कार करने। घट-घट वाली, काशी के वासी, कैलाश के आधिपति शिव की साधना के चरम पलों में कोई अगर उन्हें महसूस कर पाता है, तो कुछ खास लोग, अपनी एक यात्रा से ही इस खास अहसास को पा लेते हैं। ये यात्रा जीवन में एक बार घटने वाली घटना है।
जिन्होंने भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा की है, वे इस बात को बता सकते हैं कि उन्होंने शिव को देखा है, साक्षात। 2016 में कैलाश-मानसरोवर की यात्रा पर गए दिल्ली के नरेश मित्तल ने बताया कि, “हमारे मन में यात्रा को लेकर डर नहीं था, हां यात्रा कठिन होती है ये सुना था, पर ऐसा कुछ लगा नहीं। हां, बड़े आध्यात्मिक अनुभव जरूर हुए। मानसरोवर पर रात में हम गुरुजी के साथ बैठे थे, तो ऐसा अहसास हुआ कि ब्रह्मर्षि सरोवर से स्नान करके बाहर आ रहे हो। वहां मंत्रजाप करके बहुत अच्छा लगा। बहुत ही अच्छा लगा, यात्रा इतनी आसानी से हुई कि पता नहीं चला”।
हमनें ये जानने की कोशिश की, कि क्यों कैलाश की यात्रा को आज भी दुर्गम और कष्टप्रद माना जाता है, कयों लोग इसका नाम सुनते ही अपनी उम्र और बीमारियां गिनने लगते है…क्या इसकी वजह वो भ्रम है कि कैलाश बहुत दूर है, और वहां बहुत चलना पड़ता है, या एक अंजान जगह से जुड़ी गलत बातों से वो भ्रम में ही रहते है। या इसकी वजह वो बातें है, जो अमूमन इस यात्रा को करने के लिए बताई जाती हैं। जैसे…“इस यात्रा में प्रतिकूल हालात, अत्यंत खराब मौसम में ऊबड़-खाबड़ भू-भाग से होते हुए 19,500 फुट तक की चढ़ाई चढ़नी होती है और यह उन लोगों के लिए जोखिम भरा हो सकता है जो शारीरिक और चिकित्सा की दृष्टि से तंदुरुस्त नहीं हैं”।(https://kmy.gov.in/kmy/advisory?lang=)
वैसे भारत के विदेश मंत्रालय को 2017 में कैलाश जाने के लिए 44,42 आवेदन मिले, और इसमें 826 सीनियर सिटिजन थे। इस साल ये इससे भी ज्यादा होने की पूरी संभावना है। आज जब एडवेंचर के नाम पर लोग पहाड़ियों से कूद रहे हो, जल प्रपातों में खुद को भिेंगो रहे हो, और तेज गति से गाड़ियों पर घूमते हो, तब ऐसे में प्रकृति और परमात्मा के सबसे सुंदर स्थान पर जाने में भय होना, विचित्र लगता है।
दरअसल, ये समझ में आता है कि विषम परिस्थितियों में बसे कैलाश-मानसरोवर तक जाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, जिसके लिए मन के साथ साथ शरीर का मजबूत होना जरूरी है। वैसे भी चलता फिरता शरीर ही कहीं आ जा सकता है। लेकिन सुविधाओं के इस विश्व में चाहत से बड़ा कुछ नहीं है।
हाल ही में हमें जब इस बात की जानकारी मिली कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा केवल पांच दिन में की जा सकती है, तो हमें आश्चर्य हुआ, लेकिन कई संस्थाओं द्वारा नेपाल के रास्ते हैलीकाप्टर के जरिए ये अब संभव हो गया है। हमनें 2018 में 2-7 मई तक होने वाली पांच दिवसीय कैलाश यात्रा आयोजित करने वाले भागवताचार्य संजीवकृष्ण ठाकुरजी से समझना चाहा कि ये कैसे संभव होता है। उन्होंने रिलीजन वर्ल्ड को बताया कि, ” भारत में जिसने भी जन्म लिया हो, उसके लिए धर्म की चेतना प्राप्त करने में तीर्थों का योगदान खास है। चेतना को ईश्वर से तादात्म करने में इन तीर्थों का खास महत्व है। मेरे मन में ये विचार आया कि शिव से साक्षात्कार के लिए केवल कैलाश ही एक मात्र तीर्थ है। पर सुना था कि यात्रा कठिन होती है, बचपन से सुना था इस यात्रा के बारे में। सीमा के हिसाब ये चीन में भले हो, पर आध्यात्मिक धरातल पर ये भारत का ही हिस्सा लगता है। पर इसका नाम सुनते ही लगता था कि बहुत सारी चुनौतियां होंगी। कैलाश-मानसरोवर का नाम सुनते ही मन में खयाल आता है कि, दुर्गम पहाड़ होंगे, कठिनाइयां होंगी, बर्फ पर चलना होगा, भूखे-प्यासे चलना पड़ेगा। पर भगवान शंकर का नाम लेकर ये निश्चय किया कि ये यात्रा किया जाए। बहुत सारे लोगों के मन में ये इच्छा, भय के साथ रहती है। वर्ष 2016 में मुझे ये सौभाग्य मिला। हम छठवें दिन कैलाश की यात्रा करके लखनऊ लौट आए थे। मेरे साथ 75 साल की एक वृद्ध महिला भी गई, उनकी सुखद यात्रा देखकर आज भी मन प्रसन्न होता है। हम लखनऊ से नेपालगंज गए, फिर वहां से सभी को छोटे विमान से आगे की यात्रा हुई। हम ताकलाकोट हैलीकाप्टर से पहुंचे। हम वहां दो दिन रूके, इससे हमारा स्थानीय माहौल से तालमेल हो गया। ताकलाकोट से एक घंटे की दूरी पर ही है कैलाश। चीन की सड़कें ऐसी कि आप गाड़ी में चाय भी पिएं, तो वो भी न हिले। धरती पर एक ही तो स्थान है जहां आप जीते जी जा सकते है। भगवान विष्णुजी और ब्रह्मा के यहां तो जीवन के बाद जाया जाता है और केवल कैलाश ही तो है जहां साक्षात शिव आज भी बसे है, और आप जा सकते है। कैलाश पर्वत पर पहुंचकर हमने सबसे पहले राक्षस ताल के दर्शन किए, जहां रावण ने शिव की आराधना करी थी। मानसरोवर में स्नान के वक्त कई भक्तों की आंसुओं की धार बह रही थी। परिक्रमा के बाद मानसरोवर पर रात्रि विश्राम का अवसर मिला। वहीं परमार्थ कुटिया पर रूके। उस रात किसी को वहां नंदी बैल दिखे तो, किसी को भगवान गणेश तो किसी को ऊँ की आकृति नजर आ रही थी। ऐसा सुना था कि ब्रह्म मूहूर्त में देवता मानसरोवर में स्नान करने आते है। हम रात ढ़ाई बजे ही मानसरोवर किनारे पहुंच गए। साढे तीन बजे पानी के बीच एक धार सी बन गई, जैसे कोई पानी के बीच उतर आया हो। मेेरे साथ कई भक्तों ने इस दृश्य को देखा। सुबह पुन: स्नान किया और सौभाग्य मिला हमें हवन करने का। सबने हवन में हिस्सा लिया। फिर हम यम द्वार पर गए, मान्यता है कि मरने के बाद सभी आत्माएं वहीं से गुजरते, शिव के सामने से। एक बार कैलाश जरूर जाए, बहुत ही सरलता और सहजता ये यात्रा होती है। बहुत ही आनंद से होती है ये यात्रा। ये तो कष्टों से मुक्ति की यात्रा है। आप भी कैलाश जाएं और कैलाशी कहलाएं। इस पूरी यातरा में कोई असुविधा नहीं होती, ये मेरा निजी अनुभव है”।
जीवन में बिना परिश्रम कुछ नहीं मिलता। किसी बेहद सुंदर और दिव्य स्थान पर जाना भी भाग्य और सोच का ही परिणाम होता है। आप भी इस खास यात्रा को जल्द से जल्द करें, और हो सके तो सुविधा के उपयोग से कम से कम समय में करें, जिससे आप ईश्वर और खुद के बीच घटित होने वाले खास रिश्ते को करीब से समझ सकें। जाहिर है किसी गुरु के साथ ये यात्रा इसलिए और सुगम होगी, क्योंकि वो आपकी जिम्मेदारी खुद ले रहा है, ईश्वर से साक्षात्कार के लिए। तो हो आइए कैलाश, जहां है शिव का वास। ले लीजिए एक डुबकी मानसरोवर में, जिससे जीवन में सुखद अहसास।