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Impact of GST on Religion and Religious Activites

Impact of GST on Religion and Religious Activities

जीएसटी आ चुका है। देश ने एक जुलाई को एक नई सुबह देखी है। सत्तर साल से जारी कई पुरानी व्यवस्थाओं को एकीकृत करके उन्हें एक पैकेट में देने की कोशिश आज से शुरू हो जाएगी। कहा ये जा रहा है कि ये सरल, सुगम और सहज टैक्स प्रणाली की शुरूआत है जिससे आम लोगों के जीवन में सरलता आएगी। बताया ये गया है कि 81 फीसदी सामानों पर कर की दर 18 प्रतिशत से कम रखी गई है। खाने पीने के बहुत सारे सामानों पर कोई कर नहीं लगेगा। फल और मांस पर 12 फीसदी कर, चीनी पर 5 फीसदी, मोबाइल पर 12 फीसदी, सौंदर्य प्रसाधन पर काफी छूट, घडियों और खिलौनों पर 18 फीसदी का कर पड़ेगा। 28 फीसदी के दायरे में बोतलबंद पेय, परफ्यूम, ऑफ्टर शेव लोशन, डियोड्रेंट, फर के कपड़े, रेजर ब्लेड, कार, रिवाल्वर और पिस्तौल को रखा गया है। जाहिर है देश के लिए ये नया अनुभव होगा कि वो सामानों को कर की नजर से देखें और खरीदें। इससे पहले सालाना बजट के वक्त ही कोई कर से महंगा और सस्ता की सोच लाता था।

हमारे दिन प्रतिदिन की गतिविधियों में खान-पान, पहनावा-ओढावा के अलावा धर्म की बड़ी भूमिका है। अगरबत्ती, कपूर से लेकर रूई हर घर में आस्था के प्रतीक हैं। इसके साथ ही मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारा में होने वाली गतिविधियों से रोजाना करोडों लोगों का नाता है। धार्मिक स्थानों पर दान से लेकर आर्थिक सहयोग की एक लंबी श्रंख्ला है। कहीं जगराता होता है, तो कहीं मास प्रेयर। धार्मिक आयोजनों से होने वाली कमाई पर कर की बात जीएसटी में सामने आई है। चूंकि जीएसटी में ज्योतिष, पंडिताई, ट्रस्ट और एनजीओ को शामिल किया गया है इसलिए धार्मिक कथाओं और ज्योतिषिय कार्यों से होने वाली कमाई के अलावा धार्मिक आयोजन से होने वाली कमाई पर अब कर चुकाना होगा। आजतक धार्मिक आयोजनों से होने वाली कमाई पर टैक्स नहीं लिया जाता था। अभी तक यह सब गतिविधियां कर के दायरे में शामिल नहीं थे। कमाई पर टैक्स की बात अबतक केवल नौकरीपेशा या व्यापारी तक ही सीमित थी, पर जीएसटी के लागू होने से धार्मिक संस्थाओं पर शिकंजा कसने वाला है। जीएसटी के तहत वे सारी धार्मिक संस्थाएं आएंगी जो किसी भी तरह के बड़े दान ले रही हैं या किसी भी तरह की सेवा से धन कमा रही हैं। अब तक धार्मिक ट्रस्टों को टैक्स की रियायत थी, पर अब नए वित्तीय वर्ष में पंडित और ज्योतिषियों से लेकर ट्रस्ट व एनजीओ को भी फिर से नए वित्तीय वर्ष में पंजीयन कराना होगा। जीएसटी के लिए वस्तुओं के साथ सेवाओं को भी शामिल किए जाने से धार्मिक आयोजनों एवं कथावाचन से होने वाली आय भी इसके दायरे में आएगी और यदि इससे कमाई 10 लाख से ज्यादा हुई तो फिर इस पर जीएसटी के तहत टैक्स भी जमा करना होगा। जीएसटी में ज्योतिष, पूजा, कथा, प्रवचन आदि के एवज में ली जाने वाली निजी दक्षिणा भी शामिल की गई हैं। सिख धर्म की सबसे बड़ी संस्था एसजीपीसी को इससे हर साल 6 करोड़ का नुकसान होगा।

आम लोगों के लिए जीएसटी में रियायत मिली है, नारियल, प्रसाद (धार्मिक स्थलों के जैसे मस्जिद, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा आदि) को कर में छूट मिली है। ये सामान सस्ते होंगे और लोगों की आस्था के राह में कोई दिक्कत नहीं पेश करेंगे। यात्राओं को लेकर भी जीएसटी में कुछ प्रावधान किए गए है। सरकार ने धार्मिक यात्राओं को जीएसटी की नई व्यवस्था में टैक्स के दायरे से बाहर रखा है। हालांकि एक हजार रुपए से ज्यादा वाले होटल के कमरों पर जीएसटी के तहत पांच फीसदी कर लगेगा, जिसका सीधा प्रभाव धार्मिक नगरों में ठहरने वालों पर पड़ेगा। हज की यात्रा पर आने वाले खर्च पर कोई कर नहीं लगेगा।

Impact of GST on religion

धर्म के क्षेत्र को व्यवस्थित करने की सोच के साथ जीएसटी में आम आदमी को सीधी राहत और धार्मिक संस्थाओं की जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की गई है। धन के प्रभाव से धर्म की स्थिति कई बार असहज और अतिरेकी हो जाती है। आयोजनों पर अनापशनाप पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। जिसका कोई भी लाभ समाज को सीधे तौर पर नहीं दिखता है। ऐसे में सरकार की मंशा दस लाख से ऊपर की आमदनी वाले आयोजनों को जिम्मेदार बनाने की लगती है। बड़ी धार्मिक संस्थाओं के संसाधनों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। साथ ही उनकी जवाबादारी बढ़ेगी। उम्मीद है निजी आस्था और सामाजिक बंधुता के बीच जीएसटी एक सेतु की तरह काम करेगा।

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Post By Religion World