दीवाली का महत्व : संस्कार, संस्कृति और सामाजिक त्योहार
बच्चों के लिए दीवाली का महत्व
दीवाली का त्यौहार हर साल दशहरा के 18 दिनों के बाद आता है जो भारतीय समुदायों में सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला त्यौहार है। भारतीय लोग रस्म या त्यौहार के रूप में अपनी नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति और परंपरा देना चाहते है। दीवाली सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक है जो बहुत वर्षों पूर्व से हमारी संस्कृति और परंपराओं को जारी रखें हुये है। जो हमने हमारी पुरानी पीढ़ी से सीखा है और वहीं अपनी नई पीढ़ी को दे दिया है। दीवाली धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं सहित सामाजिक विधि का त्यौहार है।
बच्चें आने वाले सभी त्योहारों के बारे में जानने के लिये और को मनाने के लिए बहुत उत्सुक और निर्णायक होते हैं। वे इतिहास और कहानियों और त्यौहार के महत्व को जानना चाहते हैं। दीवाली हमारे बच्चों को बताने के लिए बहुत सारे अवसर लाता है दिवाली के धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व है, इतिहास और कहानी के बारे में। वे आसानी से दिवाली के सभी और प्रत्येक पहलु को दिवाली के एक समान कई प्रतीकों के माध्यम से जान जाते है। उनको दिवाली की सभी और प्रत्येक क्रिया में शामिल करना जैसे: खरीददारी करना, शिल्प बनाना, दीये बनाना और रंगना और सजाना आदि उनकी उत्सुकता को बढाता है। उन्हें अपनी खरीददारी और लाइट की सजावट में मदद करने देना चाहिये।
उन्हें साफ सफाई और लाइट लगाने की गतिविधियों में शामिल करना चाहिये। उन्हें विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित दिवाली के इतिहास और महत्व के बारे में सही बताना चाहिये। उन्हें यह भी बताना चाहिये कि इस दिन दीये जलाना (प्रकाश करना), साफ सफाई करना, मिठाई बाँटना क्यों आवश्यक है। इस तरह वे भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के प्रति अपने दायित्व और सामाजिक क्रियाओं को सुधारेंगें। उन्हें रंग बिरंगे दिवाली कार्ड, लिफाफे और रंगोली बनाने के लिये प्रोत्साहित करना अच्छी शुरुआत हो सकती है। उन्हें दिवाली पर फैशनेवल कपडे खरीदने के स्थान पर परम्परागत कपङे खरीदने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। उन्हें दिवाली सकुशल और सुरक्षित मनाने की, विभिन्न प्रकार के भारतीय भोजन और मिठाई बनाने की, पूजा कैसे करते है, कैसे पटाखें और फूलझडियॉ जलाते है और कैसे सभी से मिलते है आदि की शिक्षा देनी चाहिये।
दीवाली पर रोशनी का महत्व
दिवाली के महान त्यौहार पर अपने घरों और रास्तों के सभी ओर दीयों को जलाने की परम्परा है। पूरे वर्ष घर में स्वास्थ्य, धन, बुद्धिमत्ता, शान्ति और समृद्धि लाने के लिये घरों को दीयों और मोमबत्ती के प्रकाश से प्रकाशित करने की रस्म है। घर की प्रत्येक जगह से अन्धकार को हटाकर घर में देवी लक्ष्मी का स्वागत करने की भी रस्म है। सभी जगह जलता हुआ प्रकाश अन्धकार को हटाने के प्रतीक के साथ अपनी आत्मा से बुराई को हटाने का भी प्रतीक है। लोग पूजा करके और दीये जलाकर धन और समृद्धि का आशीर्वाद लेते है।
जलते हुये दीये अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय का प्रतीक है। दिवाली पर विभिन्न प्रकार के दीपकों की किस्में प्रयोग की जाती है जैसे: हाडी दीपक, मिट्टी के दीयें, मोमबत्ती, बिजली के लैंप, पीतल, तांबा या धातु लैंप आदि।
दीवाली पड़वा का महत्व
दिवाली का चौथा दिन वर्शप्रतिपदा और प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है जिसके मनाने का अपना महत्व है। यह हिन्दू कलैण्डर के अनुसार कार्तिक महीने में पहले दिन पडता है। वर्शप्रतिपदा और प्रतिपदा का महत्व पडवा के दिन राजा विक्रमादित्य के राज अभिषेक के साथ विक्रम संवत् के प्रराम्भ से सम्बन्धित है। इसी दिन व्यवसायी अपने नये वित्तीय खाते शुरु करते है।
एक अन्य हिन्दू परम्परा के अनुसार यह माना जाता है पत्नियॉ अपने पति के माथे पर लाल रंग का तिलक लगाकर, गले में माला पहनाकर, आरती करके उनकी लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। बदले में पत्नियॉ अपने पति से उपहार प्राप्त करती है। यह गुडी पडवा के नाम से भी जाना जाता है जो पति पत्नी के बीच प्रेम, स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन लङकी के माता–पिता नव विवाहित जोडे को विशेष भोज पर आमन्त्रित करते है।
पडवा के दिन राजा बलि भगवान विष्णु के द्वारा हरया गया था, इसीलिये इसे बलि पद्दमी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान की राक्षस के ऊपर विजय की याद में भी मनाया जाता है।
दिवाली के दिनों का महत्व
दीवाली पांच दिनों का त्यौहार है; प्रत्येक दिन के उत्सव का धर्मों और रीतियों के अनुसार अलग–अलग महत्व है। हिंदू धर्म में, दीवाली के दिनों को तदनुसार मनाया जाता है: दिवाली का पहला दिन धनतेरस, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। लोग नयी वस्तुऍ खरीदते है और घर लाते है जिसका अर्थ है कि लक्ष्मी घर आयी है। धनतेरस भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक के रूप में भी जाना जाता है) की जयंती या जन्मदिन की सालगिरह याद करने के लिए मनाया जाता है । यह माना जाता है कि उनकी उत्पत्ति सागर मंथन के दौरान हुयी थी।
दिवाली का दूसरा दिन राक्षस नरकासुर पर भगवान कृष्ण की जीत के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुबह तेल स्नान करके नये कपडे पहनने का रिवाज है। तब भगवान कृष्ण या विष्णु के लिए प्रकाश व्यवस्था और पूजा समारोह आयोजित किया जाता है।
दिवाली का तीसरा दिन समृद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद पाने के लिए देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। जलते हुये दीयों का महत्व अंधकार को दूर करके और घर में देवी का स्वागत करने के लिए है।
चौथा दिन गोवर्धन पूजा(अर्थात् अन्नकूट) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का महत्व घमण्डी इन्द्र के ऊपर भगवान कृष्ण की विजय के उपलक्ष्य में जाना जाता है, जिन्होंने गोकुल वासियों को संकटपूर्ण बारिश से सुरक्षित किया था। यह दिन दुष्ट आत्मा राजा बाली पर भगवान विष्णु की विजय की याद करके बाली–प्रतिपदा के रूप में भी मनाया जाता है।
पांचवॉं दिन भाइयों और बहनों द्वारा भाई दूज के रूप में से मनाया जाता है, जो उनके बीच प्यार के बंधन को दर्शाता है। दिन का मुख्य महत्व मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यामी (अर्थात् यमुना नदी) की कहानी है।