बुद्धं शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
धम्मं शरणम गच्छामि
महात्मा बुद्ध के अनुयायी इसे त्रिशरण मंत्र के रूप में उच्चारित करते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है मैं बुद्ध की शरण जाता हूं। मैं धर्म की शरण जाता हूं, और मैं संघ की शरण जाता हूं।
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह त्रिशरण मंत्र मूल मन्त्र है. बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अनुसार इन तीनों की शरणागत होने से ही कोई सच्चा शिष्य एवं साधक बनता है।
बुद्ध शब्द का अर्थ है : जागा हुआ, एनलाइटेन्ड, आत्मज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति।
धर्म का अर्थ है : जीवन का महानियम, जिससे सारा अस्तित्व चल रहा है। चीन के संत लाओत्से ने जिसे ‘ताओ’ कहकर पुकारा। बुद्ध उसे पाली भाषा में ‘धम्म’ कहते थे।
संघ का मतलब है : सत्य के खोजियों का, शिष्यों का, साधकों का, ध्यान में डूबने वाले अंतर्यात्रियों का, अपने हमसफर संगी-साथियों का समूह।
महात्मा बुद्ध को जानने के लिए उनकी शिक्षाओं का ज्ञान आवश्यक उनके धम्म का ज्ञान आवश्यक है. महात्मा बुद्ध के अनुयायियों के अनुसार तर्क की सहायता से प्राप्त किया गया ज्ञान तथा नैतिकता ही बौद्ध धर्म का सच्चा सार है,और इंसान को पूर्ण इंसान बनाने का रास्ता है, बुद्ध और उनका धम्म.
संघ की संरचना होने पर संघ की पहली सदस्य बनी गौतमी प्रजापति. गौतमी प्रजापति कोई और नहीं अपितु महात्मा बुद्ध की सौतेली माता थीं. संघ के निर्माण के उपरान्त उसके लिए नियम की आवश्यकता थी. और इसी आवश्यकता की जननी हेतु एक बौद्ध ग्रन्थ की रचना की गयी जिसे त्रिपटक के नाम से जाना जाता है.
बोधिवृक्ष के नीचे अपनी आयु के 35वें वर्ष में जब राजकुमार सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी तब वो राजकुमार से बुद्ध हो गए थे । इसके उपरांत उन्होंने जगह जगह जाकर अपने उपदेशों के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया. महात्मा बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में दिया था जिसका प्रचार उनके पांच अनुयायियों ने लोक भाषा पालि में किया था.
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गौतम बुद्ध के बुद्ध होने की कथा को जिस ग्रन्थ का रूप दिया गया वो संकलन ही त्रिपटक है. पालि भाषा में इस ग्रन्थ को तिपिटक कहते हैं।
त्रिपिटक का रचनाकाल ईसा पूर्व 100 से ईसा पूर्व 500 है। सभी त्रिपिटक सिहल देश (श्रीलंका) में लिखे गये। त्रिपिटक के तीन खंड हैं-
- विनयपिटक
- सुत्तपिटक
- अभिधम्मपिटक
विनयपिटक
उपाली नाम के एक बौद्ध ने, जो जाति से शूद्र थे, सबसे पहले विनय पिटक की रचना की। इसी में पहली बार “बुद्धं शरणं गच्छामि” का जिक्र किया गया।
विनयपिटक में पांच ग्रंथ सम्मिलित हैं। इसमें बुद्ध के विभिन्न घटनाओं और अवसरों पर दिए उपदेश संकलित हैं। इसमें बौद्ध श्रमणों तथा भिक्षुओं के संघ के विनय, अर्थात् अनुशासन-आचार सम्बन्धी नियम दिये गये हैं। जिसमें धम्म (धर्म), अर्थात् बौद्ध-सिध्दातों, भगवान बुद्ध के सूक्तों (जिसमें पालिका ‘सुत्त’ शब्द निकलता है)- सद्वचनों द्वारा निरूपण किया गया है। इसीलिए ये पालि पिटक ‘त्रिपिटक’ कहलाते हैं। प्रथम के पातिमोक्ख, खन्धक तथा परिवार नामक तीन भाग हैं।
सुत्तपिटक
सुत्तपिटक में भी पांच भाग हैं और इसमें भिक्षुओं, श्रावकों आदि के आचरण से संबंधित बातों का उल्लेख है।
अभिधम्मपिटक
अभिधम्मपिटक के सात भाग हैं और उसमें चित्त, नैतिक धर्म और निर्वाण का उल्लेख है।