आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है. हर व्यक्ति योग के महत्त्व को जान चुका है. योग के लिए 2 चीज़ें बहुत महत्त्वपूर्ण है सही आसन और सही आसन. चौंकिए मत हम यहाँ सही योगासन और सही योगा मैट की बात कर रहे हैं.
जिस आसन पर हम योग का अभ्यास करते है उसे योग मैट कहा जाता है. बाजार में कई प्रकार के योग मैट मौजूद हैं, ऐसे में हर किसी को कनफ्यूज़न रहता है की उन्हें किस तरह के मैट का इस्तेमाल करना चाहिए. आज हम आपको इस लेख के ज़रिये योगा मैट से जुड़ी सभी जानकारी देंगे, लेकिन सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर योगा मैट की शुरुआत कहाँ से हुयी.
योगा मैट का योग की दुनिया में कैसे हुआ प्रवेश
योग काफी प्राचीन विधा है और उस दौरान हमारे ऋषि मुनि हुए या साधू संत किसी को भी योगा करते समय किसी भी प्रकार के आसन की आवश्यकता नहीं होती थी. फिर योग के लिए मैट की जरूरत सबसे पहले किसे महसूस हुई ?
चलिए जानें कैसे हुई मैट पर योग करने की शुरूआत।
बात 1970 के दशक की है, जब लोग योग करने के लिए दरी या चटाई का इस्तेमाल करते थे। लेकिन समय के साथ इस दरी का स्थान रबर की मैट ने ले ली। योगा मैट के इस्तेमाल का श्रेय भी योग गुरू बी के एस अयंगर को जाता है। ऐसा नहीं है वो शुरू से ही मैट पर योग करते थे, पहले वो भी सामान्य लोगों की तरह की जमीन पर कंबल बिछाकर योग का अभ्यास करते थे।
लेकिन 1960 के दशक में जब उन्होंने यूरोप के देशो में योग की कक्षाएं लेनी शुरू की तो उन्होने इस बात पर ध्यान दिया कि यूरोपियन छात्रों को फर्श पर खड़े होकर आसन करने में दिक्कत होती है क्योंकि उनके पैर फिसलते रहते थे। जिसकी वजह से उनका ध्यान सिर्फ इस बात पर लगा रहता था कि कहीं वह गिर न जायें और इस कारण वो लोग योग पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते थे।
भारतीय छात्रों के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं क्यूंकि भारत में ज़्यादातर योग खुले मैदानों में या फिर कुदुप्पा नाम की चट्टान से बने पत्थर पर किया जाता था लेकिन विदेशों में ज़मीन अलग तरह की होती थी.
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योग में रबर मैट का प्रवेश
योग गुरू अयंगर अब हर वक्त यही सोच्च्ते रहते थे कि ऐसा क्या किया जाये की विदेशी छात्रों की इस समस्या का समाधान मिल जाये. फिर एक दिन अचानक जर्मनी में उन्हें कार्पेट के नीचे रखी रबर की चटाई ने गिरते-गिरते बचाया। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस के ऊपर खड़े होकर योग तरी किया जाये और जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही हुआ, उस रबर मैट पर आसानी से योग किया गया।
मैट को स्टिकी मैट नाम दिया गया
उन्होंने इस हरी रबर की मैट को ‘स्टिकी मैट‘ का नाम दिया। जिसके बाद ब्रिटेन के छात्रों ने जर्मनी से योगा मैट का पहला रबर मैट का सेट खरीदा। जिसके बाद ये ग्रीन मैट या स्टिकी मैट के नाम से मशहूर हुए। योग के लिए इन रबर मैट के उपयोग ने इन मैट को पुनर्जीवित कर दिया। बाद में, इसी तरह के नीले मैट जर्मनी में ही बनाए गए। जिसके बाद जर्मनी ही योग मैट का मुख्य निर्माता बन गया था। यद्यपि, यूके, यूरोप और अमेरिका में अयंगर योग चिकित्सकों ने इन योग मैट का उपयोग करना शुरू कर दिया, मुंबई और पुणे के छात्र ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि ये मैट फिलहाल भारत में उपलब्ध नहीं थे और उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं थी। उनके पैर फर्श पर नहीं फिसलते थे। हालांकि, विदेशी छात्र जो योग सीखने के लिए पुणे आए हुए थे उन्होंने अपने मैट वही छोड़ना शुरू कर दिए। जिसके बाद योग मैट के उत्प्रेरकों ने उन्हें अपने संस्थान में रखा।
पिछले 20 वर्षों में कई देशों को ऐसे मैट्स का निर्माण और निर्यात करते हुए देखा गया है जैसे जर्मनी, यूएसए और चीन में बनते हैं। अब इन मैटों को स्टिकी मैट नहीं बल्कि ‘योग’ मैट कहा जाता है। इतना ही नहीं अब इन मैट्स को नाइकी और रीबॉक जैसी बड़ी स्पोर्ट्स कंपनियों द्वारा ब्रांडेड मैट के रूप में बेचा जाता है। जिसने योग मैट के निर्माण को एक बिलियन डॉलर का उद्योग बना दिया है।
एक बार गुरुजी बीकेएस अयंगर से यह पूछा गया कि उन्होंने अपने इस आइडिया को ‘पेटेंट’ क्यों नहीं करवाया। जिसके जवाब में उन्होंने कहा, “क्या ऋषि मुनियों ने अपना ज्ञान पेटेंट किया था? ” उनके अनुसार यदि उनके ज्ञान से लोगों की मदद होती है तो वो उन्हें मिलना चाहिए। और ऐसे विचारों को पेटेंट करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। इस प्रकार योग मैट सार्वभौमिक बन गया।
ये मैट अब पूरी दुनिया में उपयोग किए जाते हैं। यहां तक कि, हमारे प्रधान मंत्री ने भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर इन योग मैट पर ही आसन किया था। दिलचस्प बात यह है कि भारत में अभी भी यह मैट नहीं बनाए जाते हैं।
योग मैट का इस्तेमाल क्यों करना चाहिए?
यदि देखा जाये तो मैट का इस्तेमाल करना कोई कम्पल्शन नहीं है, लेकिन कई आसनों को करते वक्त आपको इसकी जरुरत पढ़ती है, इसलिए जरूरत के हिसाब से मैट का इस्तेमाल करना सही भी है।
दरअसल मैट एक गद्दी का काम करता है जो न केवल आसनों को करने में सपोर्ट देता है बल्कि कई बार चोट लगने से भी बचाता है|
कुछ लोगो को ज़मीन पर योग करने के दौरान उनकी हथेलियों, घुटने, कोहनी आदि को दबाने पर दर्द और असुविधा होती है। ऐसे लोगो के लिए मैट बहुत सहायक है|
कुछ आसनों को सीधे फ्लोर पर बिलकुल नहीं किया जाता है। क्योंकि इससे कलाइयों पर ज्यादा जोर पड़ता है।
क्या बेड पर भी कर सकते हैं योग
निश्चित तौर पर बेड पर बैलेंस बनाना या स्ट्रेचिंग वाले आसन करने में बहुत ज्यादा मुश्किल होगी। लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ ऐसे भी योग आसन हैं जिन्हें आप सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले ही अपने बेड पर कर सकते हैं।
पश्चिमोत्तानासन जैसे आसन को सुबह ही कर लेने से आपका मस्तिष्क दिन भर के लिए उर्जा से भर जाता है। आप अपनी गद्दे पर कुछ ताकत बढ़ाने वाले आसन जैसे कि बलासन और शवासन भी कर सकते हैं।
बस ध्यान रखें कि योग करते समय आपका गद्दा बिलकुल समतल हो। सच तो ये है कि योग मैट आपके और आपके योग प्रैक्टिस के बीच नहीं आता है। याद रखें ये सिर्फ आपको प्रैक्टिस करने में मदद करता है।
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