अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हम आपके लिए अआधुनिक 21 योगियों कि सीरीज लेकर आये हैं. उसकि तीसरी सीरीज में आज आप जानेंगे महर्षि अरविन्द और महर्षि महेश योगी के बारे में. तो चलिए शुरू करते हैं यह तीसरी सीरीज-
महर्षि अरविन्द
अरविन्द घोष एक महान योगी एवं दार्शनिक थे। क्रांतिकारी महर्षि अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता (बंगाल की धरती) में हुआ। उनके पिता के.डी. घोष एक डॉक्टर तथा अंग्रेजों के प्रशंसक थे। पिता अंग्रेजों के प्रशंसक लेकिन उनके चारों बेटे अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन गए।
इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया, बंगाल के महान क्रांतिकारियों में से एक महर्षि अरविन्द देश की आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी थे। उन्हीं के आह्वान पर हजारों बंगाली युवकों ने देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया था। सशस्त्र क्रांति के पीछे उनकी ही प्रेरणा थी।
किन्तु बाद में यह एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया। वेद, उपनिषद ग्रन्थों आदि पर टीका लिखी। योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ लिखे। उनका पूरे विश्व में दर्शन शास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है और उनकी साधना पद्धति के अनुयायी सब देशों में पाये जाते हैं। यह कवि भी थे और गुरु भी।
30 मई 1909 को उत्तरपाड़ा में एक संवर्धन सभा की गयी वहाँ अरविन्द का एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ जो इतिहास में उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने अपने इस अभिभाषण में धर्म एवं राष्ट्र विषयक कारावास-अनुभूति का विशद विवेचन करते हुए कहा था कि जब मुझे आप लोगों के द्वारा आपकी सभा में कुछ कहने के लिए कहा गया तो मैं आज एक विषय हिन्दू धर्मं पर कहूँगा। मुझे नहीं पता कि मैं अपना आशय पूर्ण कर पाऊँगा या नहीं। जब मैं यहाँ बैठा था तो मेरे मन में आया कि मुझे आपसे बात करनी चाहिए। एक शब्द पूरे भारत से कहना चाहिये। यही शब्द मुझसे सबसे पहले जेल में कहा गया और अब यह आपको कहने के लिये मैं जेल से बाहर आया हूँ।एक साल हो गया है मुझे यहाँ आए हुए। पिछली बार आया था तो यहाँ राष्ट्रीयता के बड़े-बड़े प्रवर्तक मेरे साथ बैठे थे। यह तो वह सब था जो एकान्त से बाहर आया जिसे ईश्वर ने भेजा था ताकि जेल के एकान्त में वह ईश्वर के शब्दों को सुन सके। यह तो वह ईश्वर ही था जिसके कारण आप यहाँ हजारों की संख्या में आये। अब वह बहुत दूर है हजारों मील दूर ।
जब सजा के लिए उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया। जेल में अरविन्द का जीवन ही बदल गया। वे जेल की कोठी में ज्यादा से ज्यादा समय साधना और तप में लगाने लगे। वे गीता पढ़ा करते और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना किया करते। ऐसा कहा जाता है कि अरविन्द जब अलीपुर जेल में थे तब उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन हुए। कृष्ण की प्रेरणा से वह क्रांतिकारी आंदोलन को छोड़कर योग और अध्यात्म में रम गए। जेल से बाहर आकर वे किसी भी आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे। अरविन्द पांडिचेरी चले गए। वहीं पर रहते हुए अरविन्द ने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की और आज के वैज्ञानिकों को बता दिया कि इस जगत को चलाने के लिए एक अन्य जगत और भी है। सन् 1914 में मीरा नामक फ्रांसीसी महिला की पांडिचेरी में अरविन्द से पहली बार मुलाकात हुई। जिन्हें बाद में अरविन्द ने अपने आश्रम के संचालन का पूरा भार सौंप दिया। अरविन्द और उनके सभी अनुयायी उन्हें आदर के साथ ‘मदर’ कहकर पुकारने लगे। अरविन्द एक महान योगी और दार्शनिक थे। उनका पूरे विश्व में दर्शनशास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है।
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उन्होंने जहां वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर टीका लिखी, वहीं योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे। खासकर उन्होंने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे चेतना के विकास की एक कहानी लिखी और समझाया कि किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ। उनकी प्रमुख कृतियां लेटर्स ऑन योगा, सावित्री, योग समन्वय, दिव्य जीवन, फ्यूचर पोयट्री और द मदर हैं।
एक बार किसी कार्यकर्ता ने उनसे पूछा : ‘‘गांधीजी तो स्वतंत्रता हेतु इतना कार्य कर रहे हैं और आप यहाँ एकांत में योग-साधना कर रहे हैं ! आप गांधीजी के साथ मिलकर स्वतंत्रता में सहयोग क्यों नहीं देते हैं ?’’
योगी अरविंद ने बड़ा ही सारभूत उत्तर दिया : ‘‘यह जरूरी नहीं कि प्रत्यक्षरूप से ही सभी कार्य होते हों । हम बाह्यरूप से कुछ न करते हुए भी दिखें फिर भी भीतर बैठकर ऐसा कुछ कर रहे हैं कि भारत शीघ्र ही स्वतंत्र होगा । भगवद्विश्रांति व मंत्रशक्ति सब सामर्थ्यों का मूल है ।’’
और इसी परमात्म-विश्रांति व मंत्र-विज्ञान का आश्रय लेकर योगी अरविंद ने देश को स्वतंत्र कराने में प्रत्यक्ष के साथ-साथ सूक्ष्मरूप से भी बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी ।
मंत्र-विज्ञान भारत की महान संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर है । मंत्रों में भौतिक व आध्यात्मिक शक्तियाँ विकसित करने का अलौकिक सामर्थ्य होता है ।
महर्षि अरविन्द का देहांत 5 दिसंबर 1950 को हुआ। बताया जाता है कि निधन के बाद चार दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंतत: 9 दिसंबर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गई।
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महर्षि महेश योगी
महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ था. उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की डिग्री ली. महर्षि योगी ने 13 साल तक ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सान्निध्य में शिक्षा ग्रहण की. स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने ही उन्हें बाल ब्रह्मचारी की उपाधि देकर उन्हें महर्षि महेश योगी का नाम दे दिया.
महर्षि महेश योगी ने ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन के जरिए दुनियाभर में अपने लाखों अनुयायी बनाए थे. उन्होंने योग और ध्यान से बेहतर स्वास्थ्य और आध्यात्मिक ज्ञान का वायदा किया और पूरी दुनिया से कई मशहूर लोग उनसे जुड़ गए. वह 60 के दशक में मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के आध्यात्मिक गुरु बने. बैंड के सदस्य उनके साथ वीकेंड बिताया करते थे. हालांकि बाद में बीटल्स उनसे अलग हो गए थे.
महर्षि महेश योगी कहते थे कि वे अपने भक्तों को उड़ना सिखाते हैं. उनके द्वारा शुरू किए गए ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन में भक्त फुदकते हुए उड़ने की कोशिश करते थे. ‘फ्लाइंग योगा’ को महर्षि ने ‘ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन सिद्धि प्रोग्राम’ का नाम दिया था. उनका कहना था कि यह थिअरी रिसर्च के बाद विकसित की गई है.
जब वे अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर थे तो कुछ लोगों ने उनसे पूछा कि उन्हें संत क्यों कहा जाता है, और उनका जवाब था, “मैं लोगों को ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन सिखाता हूँ जो लोगों को जीवन के भीतर झांकने का अवसर देता है. इससे लोग शांति और ख़ुशी के हर क्षण का आनंद लेने लगते हैं. चूंकि पहले सभी संतों का यही संदेश रहा है इसलिए लोग मुझे भी संत कहते हैं.”
महर्षि योगी पर कई पुरस्कार जीतने वाली फ़िल्म बना चुके बीबीसी के यावर अब्बास ने एक बार ऋषिकेश स्थित उनके आश्रम में उनसे बात की थी.
यावर अब्बास ने पूछा कि क्या कारण है कि वे और उनका ध्यान-योग पश्चिमी देशों में बहुत लोकप्रिय है लेकिन भारत में उन्हें मानने वाले ज़्यादा नहीं हैं.
महेश योगी का जवाब था, “इसकी वजह यह है कि यदि पश्चिमी देशों में लोग किसी चीज़ के पीछ वैज्ञानिक कारण देखते हैं तो उसे तुरंत अपना लेते हैं और मेरा ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन योग के सिद्धांतों पर क़ायम रहते हुए पूरी तरह वैज्ञानिक है.
साल 2008 में जारी हुई उनकी संस्था से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक महेश योगी ने 150 देशों में पाँच सौ स्कूल, दुनिया में चार महर्षि विश्वविद्यालय और चार देशों में वैदिक शिक्षण संस्थान खोल रखे थे.
साल 2008 की 11 जनवरी को महर्षि योगी ने ये कहते हुए रिटायरमेंट की घोषणा कर दी थी कि उनका काम पूरा हो गया है और उनका गुरु के प्रति जो कर्तव्य था वो पूरा हो गया है.
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