वंदे-मातरम इस्लाम-विरोधी नहीं
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
औरंगाबाद की नगर निगम में वंदे मातरम् को लेकर धक्का-मुक्की हो गई। असदुद्दीन औवेसी की पार्टी मजलिस-ए-इत्तहादुल मुसलमीन और भाजपा-शिवसेना के पार्षद आपस में भिड़ गए।
कुछ मुसलमान यह मानकर चलते हैं कि वंदे मातरम् को गाना इस्लाम-विरोधी कार्य है। मेरी राय है कि यह खालिस गलतफहमी है। यह मुस्लिम लीग ने फैलाई थी। खुद मुहम्मद अली जिन्ना बड़े उत्साह से वंदे मातरम गाया करते थे लेकिन मुस्लिम लीगी बनने पर वे वंदे-मातरम् के सबसे बड़े विरोधी बन गए। उन्हें तकलीफ थी कि देश के सारे हिंदू और मुसलमान तिरंगे, वंदे मातरम् और गांधी पर लट्टू क्यों हुए जा रहे हैं। 1896 के कांग्रेस अधिवेशन में जब रवींद्रनाथ ठाकुर ने वंदे मातरम् पहली बार गाया तो उसके अध्यक्ष अंजुमन-ए-इस्लाम के नेता रहमतुल्लाह सयानी थे। 1923 में कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना मुहम्मदअली ने इसका विरोध जरुर किया लेकिन बाकी सभी मुसलमान कांग्रेस अध्यक्षों और भारत के मुसलमान राष्ट्रपतियों ने इसे गाया है, क्योंकि इसमें इस्लाम-विरोधी एक शब्द भी नहीं है। वंदे मातरम में भारत या पृथ्वी को माता जरुर कहा गया है लेकिन अल्लाह या ईश्वर कहीं नहीं कहा गया है और वंदे का अर्थ प्रणाम, नमस्कार, सलाम, सम्मान, प्रशंसा करना आदि है। सिर्फ पूजा-अर्चना करना नहीं है। भारतमाता कोई हाड़-मांस की स्त्री नहीं है कि जिसकी पूजा को हम बुतपरस्ती कह दें। वह वैसे ही एक अवधारणा है, जैसे अल्लाह है। न किसी ने भारतमाता को देखा है, न अल्लाह को देखा है। दोनों ही निराकार हैं। पैगंबर मुहम्मद ने तो यहां तक कहा है कि माता के पैरों तले स्वर्ग होता है। यदि ईश्वर परमपूज्य है तो माता पूज्य भी क्यों नहीं हो सकती ? भारत के आर्यसमाजी तो बुतपरस्ती (मूर्तिपूजा) का मुसलमानों से भी ज्यादा विरोध करते हैं लेकिन वे भी वंदे मातरम् बड़े शौक से गाते हैं। वंदे मातरम यदि हिंदुओं का धार्मिक गीत होता तो आपने हिंदू लोगों को इसे किसी मंदिर, किसी शिवाले, किसी त्यौहार, किसी विवाह-मंडप या श्मशान में गाते हुए कभी सुना क्या ? अफगानिस्तान के पठान अपने देश को ‘मादरे-वतन’ कहते हैं और बांग्लादेश के राष्ट्रगान में चार बार मातृभूमि का उल्लेख है। इंडोनीशिया, तुर्की और सउदी अरब के राष्ट्रगीतों में भी मातृभूमि की सुंदरता और गौरव की गाथा है। क्या ये सब हिंदू राष्ट्र हैं ? वंदे मातरम् में क्या एक शब्द भी ऐसा है, जिसके गाने से किसी मुसलमान की मुसलमानियत में तिल भर भी कमी आती हो ?
(इस विषय पर डाॅ. वैदिक का शोधपूर्ण लेख पढ़िए, पुस्तक, ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’ में)