क्या है रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा? Issue of Rohingya Muslims of Myanmar
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के अनुसार पिछले दो हफ्तों में करीब 1.23 लाख रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से पलायन कर चुके हैं. म्यांमार में 25 अगस्त को भड़की हिंसा के बाद करीब 400 लोग मारे जा चुके हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार (छह सितंबर) को म्यांमार दौरे में इस मुद्दे का जल्द समाधान खोजने की उम्मीद जताई. रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा जानने से पहले जानते हैं आखिर रोहिंग्या मुसलमान है कौन?
रोहिंग्या कौन हैं?
म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है. म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं. सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है. हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं. म्यांमार के रखाइन राज्य में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है. इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.
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बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं. रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं. इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था.
क्या है रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा
साल 2012 में रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच भारी हिंसा हुई थी. 2012 में हुई हिंसा में कम से कम 80 लोग मारे गए थे और करीब एक लाख पलायन कर गये थे. बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु रोहिंग्या विरोधी भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाते हैं. साल 2012 में हुई हिंसा को भड़काने में उनकी अहम भूमिका मानी गयी थी.
साल 2015 में रोहिंग्या मुसलमानों का एक बार फिर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ. एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 100 रोहिंग्या पलायन के दौरान मारे गए. ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं. भारत सरकार देश में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को वापस उनके देश भेजने जा रही है. हालांकि ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है. सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार को जवाबतलब किया है.
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आख़िर रखाइन राज्य में हो क्या रहा है?
म्यांमार में मौंगडोव सीमा पर 9 पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के बाद पिछले महीने रखाइन स्टेट में सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया था. सरकार के कुछ अधिकारियों का दावा है कि ये हमला रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने किया था. इसके बाद सुरक्षाबलों ने मौंगडोव ज़िला की सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया और एक व्यापक ऑपरेशन शुरू किया.
रोहिंग्या कार्यकर्ताओं का कहना है कि 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. म्यामांर के सैनिकों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के संगीन आरोप लग रहे हैं. सैनिकों पर प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या के आरोप लग रहे हैं. हालांकि सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है. कहा जा रहा है कि सैनिक रोहिंग्या मुसलमानों पर हमले में हेलिकॉप्टर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
कौन है इसका ज़िम्मेदार
म्यांमार में 25 वर्ष बाद पिछले साल चुनाव हुआ था. इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी. हालांकि संवैधानिक नियमों के कारण वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन पाई थीं. सू ची स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं. हालांकि कहा जाता है कि वास्तविक कमान सू ची के हाथों में ही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सू ची निशाने पर हैं. आरोप है कि मानवाधिकारों की चैंपियन होने के बावजूद वे खामोश हैं.
क्या कहना है आंग सान सू ची का
पिछले 6 हफ्तों से आंग सान सू ची पूरी तरह से चुप हैं. वह इस मामले में पत्रकारों से बात भी नहीं कर रही हैं. जब इस मामले में उन पर दबाव पड़ा तो उन्होंने कहा था कि रखाइन स्टेट में जो भी हो रहा है वह ‘रूल ऑफ लॉ’ के तहत है. इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आवाज़ उठ रही है. म्यांमार में रोहिंग्या के प्रति सहानुभूति न के बराबर है. रोहिंग्या के ख़िलाफ़ आर्मी के इस क़दम का म्यांमार में लोग जमकर समर्थन कर रहे हैं.
क्या है बांग्लादेश की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को म्यांमार के राजदूत से इस मामले पर गहरी चिंता जताई है. बांग्लादेश ने कहा कि परेशान लोग सीमा पार कर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में यहां आ रहे हैं.
बांग्लादेश ने कहा कि सीमा पर अनुशासन का पालन होना चाहिए. बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करने वालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा जा रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसकी कड़ी निंदा की है और कहा है कि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है.
बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है. रोहिंग्या और शरण चाहने वाले लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं. इस हफ्ते की शुरुआत में ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक सैटलाइट तस्वीर जारी की थी. इसमें बताया गया था कि पिछले 6 हफ्तों में रोहिंग्या मुसलमानों के 1,200 घरों को तोड़ दिया गया.
पीएम मोदी ने रोहिंग्या मुस्लिमों पर जताई चिंता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि भारत रखाइन प्रांत में हिंसा को लेकर म्यामांर की चिंता से इत्तेफाक रखता है. उन्होंने सभी पक्षों से देश की एकता और क्षेत्रीय अखंडता को संरक्षित रखने को कहा. उन्होंने म्यामांर की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की से मुलाकात की.
मोदी की म्यामांर की पहली द्विपक्षीय यात्रा ऐसे समय हुई है जब रखाइन प्रांत में सेना के अभियान के बाद महज दो हफ्ते में बांग्लादेशी सीमा में 1,25,000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों के पहुंचने पर म्यामांर सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना कर रही है.
प्रधानमंत्री ने सू की के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि भारत म्यामांर के सामने खड़ी चुनौतियों के बीच उसके साथ खड़ा है.
हालाँकि मोदी सरकार भारत से भी इसका पलायन कराना चाहती है. भारत में 40,000 रोहिंग्या समुदाय के लोग हो सकते हैं. रिजिजू ने कहा था कि इसमें 16,000 संख्या उन रोहिंग्या मुसलमानों की है जो संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के तौर पर पंजीकृत हैं. उन्होंने कहा था, “यूएनएचसीआर रजिस्ट्रेशन का मतलब कुछ भी नहीं है. हमारे लिए वे सभी अवैध प्रवासी हैं.”
25 अगस्त को पुलिस चौकी पर हमले के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी निंदा करते हुए बयान जारी किया था कि भारत आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में म्यांमार के साथ मज़बूती से खड़ा है. यह अभी तक साफ़ नहीं है कि भारत इन रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार में भेजेगा या फ़िर बांग्लादेश में. रोहिंग्या इस समय बिना राष्ट्र के हैं, न म्यांमार उन्हें स्वीकार करता है और बांग्लादेश ख़ुद ही लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों का घर बन चुका है. रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित करने का मुद्दा भारत के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है जिस पर सोमवार को सरकार से जवाब मांगा गया था. इस पूरी घोषणा के बाद ऐसा महसूस होता कि इसके पीछे म्यांमार के कट्टर बौद्ध राष्ट्रवादियों का जुड़ाव है.
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