उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के निमित्त निभाई जाने वाली परंपराओं का इतिहास रथयात्रा के बिना अधूरा है।
रथ यात्रा के इतिहास के मूल में उड़ीसा के प्रधान देवता भगवान जगन्नाथ ही हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक भगवान जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। भगवान जगन्नाथ साक्षात् भगवान हैं और श्री कृष्णा उनकी कला का एक रूप है।
रथ यात्रा का इतिहास
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं में चारों धामों को एक युग का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार कलियुग का पवित्र धाम जगन्नाथपुरी माना गया है। यह भारत के पूर्व में उड़ीसा राज्य में स्थित है, जिसका पुरातन नाम पुरुषोत्तम पुरी, नीलांचल, शंख और श्रीक्षेत्र भी है।
उड़ीसा या उत्कल क्षेत्र के प्रमुख देव भगवान जगन्नाथ हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा राधा और श्रीकृष्ण का युगल स्वरूप है। श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के ही अंश स्वरूप हैं। इसलिए भगवान जगन्नाथ को ही पूर्ण ईश्वर माना गया है।
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नौवे दिन लौटते हैं
भगवान जगन्नाथ भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है।
गुण्डिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है और जो मुख्य मंदिर पहुंचती है।
धार्मिक मान्यता है कि इस रथयात्रा के मात्र रथ के शिखर दर्शन से ही व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। स्कन्द पुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
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