दिल्ली से “जैन संयुक्त आध्यात्मिक प्रवचन” का हुआ भव्य शुभारंभ : विभिन्न संप्रदायों के प्रमुख संत एक मंच पर
- राजधानी दिल्ली से जैन एकता का हुआ भव्य शुभारंभ
- जैन धर्म के विभिन्न संप्रदायों के प्रमुख संतों ने एक मंच से दिए आध्यात्मिक प्रवचन
- विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे कार्यक्रम कराने की मची होड़
नई दिल्ली। जैन समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनैतिक अस्तिस्त्व को स्वाभिमान के साथ बनाये रखने तथा युवा वर्ग को जैनत्व की गौरवशाली संस्कृति से परिचय करवाने के लिए नई दिल्ली से जैन एकता की अनूठी पहल के तहत संयुक्त आध्यात्मिक प्रवचन का भव्य आयोजन हुआ। जिसमें अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक पूज्य आचार्य श्री लोकेश मुनिजी महाराज, विश्व विख्यात पूज्य आचार्य श्री सुशील मुनिजी महाराज के शिष्य पूज्य श्री विवेक मुनिजी महाराज एवं दिगम्बर परंपरा के पूज्य श्री योगभूषण जी महाराज एवं श्री सिद्धेश्वर मुनिजी का सानिध्य प्राप्त हुआ।
पूज्य श्री विवेक मुनिजी ने अपने आध्यात्मिक प्रवचन में अहंकार विसर्जन पर जोर देते हुए कहा कि अहंकार से हमारे विनय और मैत्री के आत्मीय गुण नष्ट हो जाते हैं , जिससे परस्पर सहयोग और प्रेम की भावना समाप्त हो जाती है , जबकि आगम में विनय को ही मोक्ष का मूल कहा है । परस्पर में मैत्री, एकता और सद्भावना से ही हमारा आत्मिक और सामाजिक विकास संभव है । आत्मिक एवं सामाजिक विकास के लिए एक होना ही पड़ेगा ।पूज्य श्री योगभूषण जी महाराज ने अपने आध्यात्मिक आख्यान में कहा कि धर्म वस्तु का स्वभाव है, उसे प्राप्त करना ही वास्तविक सम्यक पुरुषार्थ है , निज स्वभाव के ज्ञान से सम्यक्त्व का शुभारंभ होता है । जो स्व–आत्मा को जनता है वही परमात्मा को जनता है क्योंकि आगम में वर्णित है “अप्पा सो परमप्पा” आत्मा ही परमात्मा है। क्षमा, मार्दव, ऋजुता, शुचिता, प्रशम, संवेग, अनुकंपा, श्रद्धा आदि हमारे मूलभूत गुण हैं, इन्हें जानकर जीवन में धारण करना ही वास्तविक धार्मिक जीवन की शुरुआत है ।
उन्होंने आंतरिक शुद्धि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाहर की धार्मिक क्रियाएं भी तभी सार्थक हो पाती हैं, जब आंतरिक स्थिति पवित्र और सरल हो। आज के इस बदलते युग युग में हम स्वयं को भूलते जा रहे हैं और दूसरों में उलझते जा रहे हैं । इसलिए जैन धर्म के मूलतत्व को समझने की अति–आवश्यकता है ।