जखनी जलग्राम का अनूठा प्रयोग : जल समागम का शुभारम्भ
- जल समाज का मुद्दा है, सामुदायिक पहल से ही जल बचेगा इसके लिए हम सबको पुरुषार्थ करना होगा – जल योद्धा उमा शंकर पांडे
- खजुराहो में जखनी जलग्राम के तालाबों से लाये जल से मतंगेश्वर महाराज ने किया अभिषेक
- हमें पानी की खेती करनी होगी – मन्नत बाबा
- बुंदेलखंड की तरह पानी बचाने की सामुदायिक पहल होनी चाहिए – स्वामी श्री तिरुपति जी महाराज
- समाज जागरूक है तब तक ही प्राकृतिक संसाधन संरक्षित – लोकेश शर्मा
खजुराहो, 15 मार्च। विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी खजुराहो में जखनी जलग्राम के तालाबों से लाये जल से मतंगेश्वर महाराज के अभिषेक के साथ प्रेमसागर सरोवर के तट पर जल समागम का शुभारम्भ हुआ। प्रात: मतंगेश्वर महाराज के अभिसिंचित जल से खजुराहो की नदी, नहर, कुओं और तालाबों का अभिषेक, पूजन किया गया। समागम में पधारे मन्नत बाबा ने कहा कि जखनी के संकल्प ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि सच्ची लग्न, पुरुषार्थ और कठोर परिश्रम से कुछ भी संभव है। उन्होंने कहा कि सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में जिला बाँदा के जखनी गाँव के जल योद्धा उमाशंकर पांडे ने विज्ञान भवन में पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम आजाद के आह्वान पर जल बचाने का संकल्प लिया तो उपस्थित जन समुदाय अचंभित था। कारण स्पष्ट था कि साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति बिना संसाधन और धन के कैसे जल संकट की विकरालता से उबारेगा, कैसे संकल्प पूरा करेगा। लेकिन जखनी ने लगभग 15 वर्षों के अथक परिश्रम से पानी की फसल बोकर भरी गर्मी में भी गाँव के जल स्तर को 10-15 फुट पर ला दिया है। उन्होंने कहा कि अब हमें पानी की खेती करनी होगी, क्योंकि जल बनाया नहीं जा सकता पर बचाया तो जा सकता है ।
समागम में तिरुपति से पधारे तिरुपति संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति स्वामी श्री तिरुपति जी महाराज ने कहा कि बुंदेलखंड की तरह पानी बचाने की सामुदायिक पहल होनी चाहिए तब ही जल की समस्या का समाधान संभव है।
जखनी जलग्राम के संस्थापक उमाशंकर पांडे ने कहा कि पानी सरकार का नहीं समाज का मुद्दा है, सामुदायिक पहल से ही जल बचेगा और इसके लिए हम सबको पुरुषार्थ करना होगा। बुंदेलखंड में छोटी-बड़ी 35 नदियाँ हैं उनमें 5 बड़ी नदियां और 30 छोटी प्रदेश स्तर की हैं। छोटे-बड़े 225 बांध, 80,000 दर्ज में से वर्तमान 27,000 तालाब, 52,000 कुँए, 300 नाले, 350 बावडियां और चंदेल और बुन्देल राजाओं द्वारा स्थापित लगभग 51 परम्परागत और प्राकृतिक जल संसाधन और जल अनुसन्धान केन्द्र हैं। एशिया की सबसे बड़ी पेयजल योजना “पाठा” चित्रकूट, बुंदेलखंड में है।
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जल की तमाम योजनाओं में अरबों रूपए खर्च करने के बावजूद बुंदेलखंड आज प्यासा क्यूँ है। कारण स्पष्ट है कि हम और हमारा जनमानस जल और जल संसाधनों के प्रति उदासीन हैं। नदियों को तप से धरा पर लाया गया, नदियाँ, तालाब, कुँए, बावड़ियाँ और जल श्रोत पूजनीय और जन-समाज की आस्था और सहभागिता से जीवंत थे। जल हमारे पुरुषार्थ से ही बच पायेगा, समाज को फिर से आगे आकर आस्था और संकल्प के साथ जल को बचाना होगा ठीक वैसे ही जैसे जखनी ने किया, सामुदायिक आधार पर बिना किसी सरकारी मदद के, ऋषि प्रदत्त परंपरागत तरीके से।
1600 किलोमीटर की ग्रीनवाल की संकल्पपूर्ति के लिए पोरबंदर, गुजरात से कुरुक्षेत्र तक की यात्रा से आये ग्रीनमेन विजयपाल बघेल जी ने कहा कि चंदेल, बुन्देल राजाओं द्वारा निर्मित हजारों तालाबों की भूमि बुंदेलखंड में पानी के लिय आज हाहाकार मचा हुआ है। पीने का पानी मालगाड़ी से भेजा जा रहा है। सूखे की भयानक स्थिति है, युवक गाँव से पलायन कर चुका है। जिम्मेदार हम ही हैं, हमने ही अपने हाथों अपने तालाबों को उजाड़ा है lवर्षा लाने वाले वृक्षों को काट लिया है और थोड़ी बहुत होने वाली बारिश के पानी को व्यर्थ बहने के लिए छोड़ दिया है। जल बचाना है, जीवन बचाना है तो पेड़ लगाने होंगे, तालाब बचाने होंगे, जखनी की तरह खुद श्रम करना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार और जखनी जलग्राम के निदेशक श्री टिल्लन रिछारिया जी ने कहा कि जखनी एक प्रयोग है। हनुमान जी की भांति जखनी को अपनी शक्ति का अहसास पूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम के जाग्रत करने से हुआ और आज जखनी के उमाशंकर जी की अगुवाई में जखनी ने जल के प्रति स्वावलंबी होकर विश्व में जल संरक्षण की ऋषि प्रदत्त पुरातन परम्परा को पुन प्रतिष्ठित कर दिया है। जखनी को अब उन सभी जगह प्रयास करना होगा जहाँ जल संकट है इसके लिए प्रथम चरण में बुंदेलखंड के प्रत्येक सूखाग्रस्त गाँव जाकर जल संकल्प सहयोगी बनाएंगे और उन्ही के गांवं के जल श्रोतों को जखनी की तर्ज पर जागृत करके जलग्राम बनाकर गाँव को जल स्वावलंबी बनायेंगे।
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश से पधारे लोकेश शर्मा ने कहा कि जब तक समाज जागरूक है तब तक ही प्राकृतिक संसाधन संरक्षित हैं, आम जनमानस के साथ-साथ राजा भी परमार्थ के लिए प्याऊ, कुँए, बावडियों को बनवाते थे। समाज के उदासीन होने से ही नदी, तालाब, कुँए, बावडियां और तमाम जल श्रोत दूषित होने लगे। हम और हमारे समाज ने ही नदी, तालाब के अधिकार क्षेत्र की भूमि पर अतिक्रमण कर उन्हें समाप्ति के कगार पर ला दिया। यदि जल बचाना है, जीवन बचाना है तो जखनी की तर्ज पर तालाबों, कुँओं और बावडियों को जागृत करना होगा। वर्षा जल को संरक्षित करना होगा। जखनी की तरह “खेत पर मेड और मेड पर पर पेड़” लगाना होगा।
आज के इस कार्यक्रम में बंगाल सरकार के पूर्व प्रमुख सचिव श्री प्रमोद अग्रवाल जी द्वारा सम्पादित पत्रिका वैश्विक सम्पदा, जखनी विशेषांक का विमोचन भी किया गया। जल के क्षेत्र में कार्य करने वाले श्री कपिल सिंह बुंदेला खजुराहो, युसूफ बैग पन्ना, वरिष्ठ पत्रकार राजीव शुक्ला खजुराहो, प्रदीप जी सेन छतरपुर, देवेंद्र जी सुमन छतरपुर,हीरा सिंह देवरी, वीरेंद्र सीगोट खजुराहो, बृजपाल राजपूत, नीरज सोनी पत्रकार छतरपुर, डब्बू महाराज छतरपुर, विनोद भारती पत्रकार एवं पृथ्वी ट्रस्ट खजुराहो, श्री उत्तम सिंह छठी बमोरी सहित लगभग दो दर्जन लोगों को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर आरएसएस के प्रांत पर्यावरण प्रमुख श्री रामकृष्ण जी, वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र तिवारी, श्री सुरेंद्र सिंह बघेल,पंडित सुधीर शर्मा प्रसिद्ध समाजसेवी खजुराहो, पूर्व न्यायाधीश टी. के सिंह और श्री महेश दिवेदी सहित उपस्थित कई जनों ने भावपूर्ण उद्बोधन दिया। इस आयोजन में प्रमुख रूप से सहायक के तौर पर ऋषि कुल आश्रम समिति, लवकुश नगर, श्री विज्ञान बाल विद्या समिति, लवकुश नगर, ओजस्वी फाउंडेशन, खजुराहो तथा खजुराहो डेवलपमेंट एसोसिएशन की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
जल को लेकर आयोजित इस चर्चा में नगर के संभ्रांत जन, गणमान्य व्यक्ति एवं पत्रकार गण उपस्थित रहेl कार्यक्रम का संचालन डॉ. शिवपूजन अवस्थी ने किया।