जन्मकुंडली में अद्भुत संयोग बनाता हैं बुध-केतु का योग
वैदिक ज्योतिष में यदि सबसे कम चर्चा किन्ही ग्रहों की होती है तो वो हैं बुध व केतु. इनपर सबसे कम लिखा गया है,सबसे कम ध्यान दिया जाता है, सबसे कम इन्ही से डरा जाता है।
ज्योतिष में बुध को बुद्धि, बौद्धिक क्षमता, तर्क शक्ति, निर्णय शक्ति, स्मृण शक्ति, वाणी, वाक्शक्ति, व्यव्हार कुशलता, चातुर्य, व्यापार, वाणिज्य, गणनात्मक विषय, सूचना, संचार, यातायात, मस्तिष्क, नर्वससिस्टम, त्वचा आदि का कारक माना गया है. मिथुन और कन्या बुध की स्वराशि है, और कन्या में ही बुध उच्च स्थिति में भी होता है शुक्र, शनि और राहु बुध के मित्र ग्रह हैं बुध क्योंकि बुद्धि का कारक है अतः बुध के साथ प्रत्येक ग्रह का योग कुछ विशेष परिणाम देता है तो आईये देखते हैं के अन्य ग्रहों से युति करने पर बुध कैसे परिणाम देता है।
बुध प्रधान व्यक्ति हाजिर जवाब होने के साथ साथ अच्छा मित्र भी होता है क्योंकि वो सम्बन्धों को निभाना जानता है। केतु एक विभाजित करने वाला ग्रह, एक संत की तरह जो अकेले रहता है, सुख सुविधाओं और भोग -विलास से पूर्णतः दूर, रिश्तों और उनमे संवाद की जंहा कोई आवश्यकता नहीं। केतु का स्वभाव बुध से पूर्णतः विपरीत है, केतु जब भी किसी ग्रह के साथ होता है तो उसे उसके फल देने से भटकाता है, बुध का प्रमुख फल बुद्दि (मति) प्रदान करना है, इसलिए बुध–केतु योग को मति भ्रम योग कहते है।
केतु और बुध की युति का भी फल इसी प्रकार बुद्धि को भ्रमित करने वाला होता है, हालांकि किस राशि और कुंडली के किस भाव में ये योग बना है इस बात पर भी फल निर्भर करता है।
वैदिक ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु, भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दु:ख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोडऩे के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।
ऐसा माना जाता है कि केतु, अपने भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह है तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र।
मंगल, राहु, शनि,अदि ग्रहों का नाम सुनकर ही आम आदमी की घिगी बंध जाती है, किन्तु बुध और केतु को बेचारे समझ कर गम्भीरता पूर्वक महत्व ही नहीं दिया जाता.इस कारण ये अन्दर ही अन्दर कितना नुकसान कर जाते हैं पता ही नहीं चल पाता।
आपने कभी किसी चालक/धर्त्त/घुन्ने इंसान को देखा है? अरे वही जो बस मन ही मन जलना, चिढना जानता है। पर कभी आपके सामने आपके लिए अपनी फितरत को प्रदर्शित नहीं करता.आपकी गाडी से लिफ्ट मांगकर आता है और मौका देखकर उसी की हवा निकाल देता है और वापसी में आपको बिना बताय किसी और के साथ निकल जाता है.या जाते जाते आपकी गाडी पर पत्थर से निशान मार जाता है. जिसे बात बात पर आँख मारने की आदत होती है जैसे कह रहा हो की बेटा मुझे क्या समझा रहे हो,मुझे तो सब पहले से ही पाता है वो तो बस मैं तुम्हारी बातों से मजे ले रहा हूँ. `आप उसकी मीठी मीठी बातों से कभी कभी समझ तो सब जाते हैं लेकिन उसके चापलूसी भरे व्यवहार के कारण उसे कह कुछ नहीं पाते.और वह समय समय पर आपके ऊपर गुप्त प्रहार करने से नहीं चूकता।
बस तो साहब यही हाल वैदिक ज्योतिष में केतु और बुध का है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि बुध की दोनों राशियाँ द्विस्वभाव हैं अततः नैसर्गिक रूप से इसका व्यवहार भी द्विस्वभाव है.जहाँ यह सूर्य को छोड़ कर आगे निकला ,या सूर्य की आँख बचाकर उससे पीछे रह गया तो तब आप इसकी खुरापातों को ढंग से समझ लेंगे.यह आपको परेशान करने से नहीं चूकेगा.जातक की या तो बुआ (पिता की बहन) होती नहीं है,या जातक के अपनी बुआ से सम्बन्ध ठीक नहीं रह पाते।
इस योग में बुध के प्रभाव दूषित हो जाते है जैसे बुध की प्रबल होने की परिस्थिति में कोई व्यक्ति बहुत अच्छा वक्ता है तो केतु के साथ आने की परिस्थिति में अर्थ हीन , डींगे हांकने वाला और आवश्यकता से अधिक बोलने वाला हो सकता है , कई बार उसके व्यक्तव्य उसी के लिए परेशानी खड़ी करने वाले हो सकते है (वाणी पर नियंत्रण होना) , यही हाल उसकी वाणिज्यिक योजनाओं का हो सकता है , उसके समीकरण और योजनाएं सत्य से परे हो सकते है जो उसके लिए परेशानी का कारन बन सकते है, या कहे बुद्धि की भ्रमित होने की परिस्थिति का निर्मित होना । उदहारण के लिए आर्थिक परिस्थिति को जांचे बिना व्यापारिक योजना बनाना और आर्थिक स्थिति का ध्वस्त होना । विचारधारा का संकुचित होना पर सोचा का अत्यधिक संवेदनशील होना, हमेशा अज्ञात भय रहना और वाणी पर नियंत्रण न होना बुध केतु योग में बुध बहुत कमजोर हो तो व्यक्ति कम बोलने वाला , संकोची और अपने पक्ष या मन की बात को स्पष्ट रूप से नहीं रख पाने वाला होगा। ऐसे लोग बड़े एकाकी होते है , आपसी रिश्तों में संवाद की कमी के चलते और संकोच के कारन अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं कर पाते साथ ही व्यापारिक का क्रियान्वयन भी नहीं हो पता। रिश्तों में कई बार धोखा होने की सम्भावना बनी रहती है , विशेषकर व्यवसायिक। बुध केतु युति में आर्थिक उतार चढाव बहुत बार देखा गया है , जिसका कारण बिना परिस्थितियों को समझे निवेश या खर्च करना होता है और व्यापारिक दृष्टिकोण का आभाव। कई बार ये लोग मीत व्ययी और कई बार अति व्ययी हो जाते है , बहुत सी परिस्थितियों में जब बुध अत्यन्त ही कमजोर और दुःस्थान में हो तब ये योग गम्भीर एकाकीपन गम्भीर मानसिक अवसाद जेल योग (या लम्बे समय तक हास्पिटल /सुधार ग्रह तक में रहने की नौबत ला देता है। इस योग की वजह से व्यक्ति दूसरों की बात और सलाह को स्वीकार करने या समझने की परिस्थिति से अत्यन्त दूर होता है जो उसकी आर्थिक परेशानी और एकाकीपन का कारण भी बनता है।
जन्म कुंडली में बुध और केतु का योग अच्छा नहीं माना गया है इस योग में बुध केतु से पीड़ित होता है अतः इस योग के होने पर व्यक्ति को बौद्धिक क्षमता से जुडी समस्याएं रहती है, निर्णय शक्ति कमजोर होती है, ऐसे में व्यक्ति को कई बार उच्चारण या बोलने से जुडी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है, व्यक्ति को हेजिटेशन और न्यूरो प्रॉब्लम्स की सम्भावना भी होती है, शिक्षा में भी ये योग बाधक होता है, व्यक्ति अपने बातों को अच्छे से एक्सप्रेस नहीं कर पाता।
यदि आपकी जन्मकुंडली में बुध के साथ केतु ग्रह एक ही स्थान में स्थित है तो ऐसा जातक मोक्ष मार्गी होता है। वह हमेशा मोक्ष तथा आत्मज्ञान की बात करते रहेगा। इस योग में चर्म रोग होने की सम्भावना बनी रहती है। ऐसे लोगो को अनैतिक सम्बन्ध से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। आप विद्या अर्जन भी करेंगे।
जिस कारण वह व्यवसाय में सदा धोखा खाता है या पर्याप्त परिश्रम के के बाद भी फल प्राप्त नहीं करता. केतु विश्वासघात करने वाला ग्रह है .ये जहाँ अकेला होगा उस भाव से आपको निश्चिन्त करने का प्रयास करेगा।
आपको उस भाव से सम्बंधित कमी नहीं खलने देगा किन्तु जब उस भाव के फलित की आवश्यकता पड़ेगी तो आपको वहां से कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि उदाहरण के लिए आपको घर से निकलते हुए अपने बटुए के भरे होने का अहसास होगा किन्तु मौके पर आपका बटुआ खाली होगा.इसी प्रकार केतु यदि पंचम भाव में अकेला होगा तो आपको कभी अपनी शिक्षा का लाभ जीवन में नहीं मिल पायेगा . यह आपको पहले तो खुद ही बेफिक्र करेगा उसके बाद आपकी लापरवाही का फायदा उठाकर आपको धोखा दे देगा,और आप अपनी ही आत्मुग्हता में डूबे रहेंगे . और इसी कारण सदा पीछे रह जायेंगे. कारण कभी आपकी समझ में नहीं आएगा. आपको सदा विश्वास रहेगा की ससुराल से आपको बहुत मदद मिलने वाली है किन्तु समय पर आपको एक फुग्गा भी वहां से नहीं मिलेगा.कहा यह जायेगा की हम चाहते तो बहुत हैं तुम्हारी मदद करना किन्तु मजबूर हैं.ये खेल केतु महाराज का होता है.होकर भी वस्तु का न होना. मरीचिका, दृष्टिभ्रम कुछ भी कहिये।
वैदिक ज्योतिष में बताये गए छह गंडमूल में से क्या आपने ध्यान दिया की तीन का स्वामी बुध है और तीन का केतु। देखा इन के व्यवहार के कारण इस और ध्यान ही नहीं जाता।
संसार में दो तरह के केतु पारिवारिक रिस्तों में मिलते है,एक तो वे जो अपने द्वारा पारिवारिक स्थिति को बढाने में सहायक होते है,और दूसरे जो पारिवारिक स्थिति से सहायता लेकर अपनी खुद की स्थिति बनाते है,यानी दो एक तो लेने वाले होते है दूसरे देने वाले होते है,मामा भान्जा साला दामाद यह चार तरह के केतु पारिवारिक रिस्तों में मिलते है,मामा से माँ मिलती है,जिसके द्वारा पिता और खुद स्थिति बनती है,साले के द्वारा पत्नी की प्राप्ति होती है,जिससे आगे का वंश और काम सुख की प्राप्ति होती है,यह दो तो हमेशा देने वाले होते है,और दूसरे भान्जा बहिन का पुत्र होता है,और बहिन के साथ आकर हमेशा ले जाने वाला होता है,मामा सकारात्मक है तो भान्जा नकारात्मक,पुत्री के पति को दामाद कहा जाता है,दामाद अपनी औकात बनाने के लिये पुत्री को ले जाता है,और अपनी औकात बनाता है,इस प्रकार से दोनो प्रकार के केतु से आना और जाना बना रहता है।
पारिवारिक रिस्तों के अलावा अन्य प्रकार का केतु पारिवारिक रिस्तों के अलावा घर के अन्दर दो तरह के जीव मिलते है,एक तो घर की रखवाली करते है,और दूसरे घर के अन्दर छुपकर बरबाद करने का काम करते है,घर की रखवाली करने वाला कुत्ता होता है,और घर के अन्दर छुपकर बरबादी करने वाला चूहा होता है,एक का काम बचाना और दूसरे का काम बरबाद करना,इस प्रकार चूहा और कुत्ता को भी नकारात्मक और सकारात्मक केतु कहा गया है।
यह रखें सावधानी
जब केतु बुरा फ़ल देना शुरु करे तो जातक को किसी प्रकार का अपनी मुशीबतों का शोर नही मचाना चाहिये,कारण जितना अधिक शोर मचाया जायेगा केतु उतना ही अधिक परेशान करने के लिये अपना असर देगा। दसवे भाव के ग्रहों को देखकर केतु की प्रताणन की सूचना निश्चित रूप से पहले ही मिल जाती है।
केतु की पीडा से जातक का स्वास्थ खराब होता है,तो चन्द्रमा सहायक माना जाता है,कभी कभी केतु पुरुष सन्तान यानी पुत्रो को कष्ट देता है,ऐसा होने पर मन्दिर में कम्बल का दान करना चाहिये,केतु के बुरे प्रभाव से पांव के पंजो एं या पेशाब की नली में रोग पीडा आदि होने के कारण मिलने वाले कष्टो से बचने के लिये पावों के अंगूठो पर रेशमी धागा बांध लेना चाहिये।
केतु का कारक सोने वाला पंलग भी माना जाता है,विवाह के समय जो पलंग मिलता है या बिस्तर मिलता है उस पर केतु का स्वामित्व माना जाता है,प्रसूति के समय स्त्री को इसी पलंग का इस्तेमाल करना चाहिये। ऐसा करने से केतु बच्चे को दुख नही देता है।
इन उपायों से होगा लाभ
सबसे सटीक उपाय है की अधिक से अधिक सामाजिक होने की चेष्टा करना और दूसरों की सलाह ले कर आगे बढ़ना , साथ ही धन के निवेश या कोई भी योजना बनते समय सतर्क रहना।
बुद्धि के देवता भगवान श्री गणेश की आराधना इस दुर्योग से बचाने का कार्य करती है, अतः विघ्न हर्ता बुद्धि के दाता श्रीगणेश की आराधना करते रहे। गणेश चतुर्थी और गणेश पूजा के दिन उपवास रखना चाहिये। तिल नीबू और केले का दान करना चाहिये।
घर मे काला धोला कुत्ता पालें या ऐसे कुत्ते की सेवा करें,लेकिन शुक्र केतु की युति होने पर हरगिज भी कुत्ता नही पाले और न ही कुत्तों की सेवा करें।आसपास के लोगों से अच्छा व्यवहार और अच्छा चालचलन बना कर रखें,अन्यथा पेशाब वाली बीमारी होने की बात मिलती है। नौ साल से कम उम्र की बालिकाओं को खट्टी मीठी टाफ़ियां देने से भी केतु खुश रहता है। काले धोले तिल बहते पानी में बहाने से भी केतु की पीडा कम होती है। नाना की सेवा करे और उनकी आज्ञा का पालन करें।
लेख एवं गणऩा – ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री, उज्जैन