कजरी तीज का त्योहार 6 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए इस व्रत को करती हैं। कजरी तीज के कैलेंडर के अनुसार इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। जिसमें आप नीमड़ माता की पूजा कर सकती हैं तो चलिए जानते हैं क्यों मनाई जाती है तीज-
जानिए क्यों मनाई जाती है कजरी तीज
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार रक्षाबंधन के तीन दिन बाद आता है। कजरी तीज के दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को न केवल सुहागन महिलाएं बल्कि कुंवारी लड़कियां भी सुयोग्य वर पाने के लिए करती हैं। कजरी तीज का यह व्रत निर्जला किया जाता है। इस दिन नीमड़ माता की पूजा की जाती है। कजरी तीज की पूजा तालाब के किनारे की जाती है। यदि घर के पास कोई तालाब न हो तो मिट्टी और गोबर से तालाब की आकृति बनाकर पूजा की जाती है। वहीं इस दिन गाय की पूजा को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन गाय को आटें की सात लोई बनाकर उस पर गुड़ और घी रखकर खिलाया जाता है और उसके बाद ही कजरी तीज के व्रत का पारण किया जाता है।
कजरी तीज का शुभ मुहूर्त-
तृतीया तिथि प्रारंभ- सुबह 10 बजकर 50 मिनट से
तृतीया तिथि समाप्ति- रात 12 बजकर 15 मिनट पर।
चंद्रोदय का समय- रात 9 बजकर 8 मिनट पर।
कजरी तीज की पूजा विधि
कजरी तीज पर्व में सुहागिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और माता पार्वती संग भगवान भोलेनाथ की भक्ति भाव से पूजा करती है. भगवान के भोग के लिए जौ, गेहूं, चना और चावल के सत्तू में घी और मेवे मिलाकर प्रताद तैयार किया जाता है. शाम में महिलाएं कजरी तीज की कथा पढ़ती हैं. इसके बाद शाम के समय चंद्रमा की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता हैं.
चांदी की अंगूठी और गेहूं के दानों के साथ दिया जाता है अर्घ्य
कजरी तीज पर शाम के समय पूजा करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. फिर चंद्रमा को रोली, अक्षत और मौली अर्पित की जाती है. चांदी की अंगूठी और गेहूं के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद अपने स्थान पर ही खड़े होकर परिक्रमा की जाती है. चंद्र की पूजा करने के बाद महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं.
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