कामदा एकादशी 2018: जानिए कामदा एकादशी कब, क्या है शुभ मुहूर्त
एकादशी व्रत की हिंदू धर्म में बहुत मान्यता है। प्रत्येक मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आने वाली दोनों एकादशियों का अपना विशेष महत्व होता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तो और भी खास होती है। इसका एक कारण यह भी होता है कि यह हिंदू संवत्सर की पहली एकादशी होती है। चैत्र नवरात्रि और राम नवमी के बाद यह पहली एकादशी है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान में यह मार्च या अप्रैल के महीने में आती है। हर साल 24 एकादशियां होती है, अधिकमास या मलमास के आने पर इनकी संख्या 26 हो जाती है। पद्म पुराण के अनुसार कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
कामदा एकादशी का उपवास चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार साल 2018 में कामदा एकादशी का व्रत 27 मार्च (मंगलवार) को है।इस बार कामदा एकादशी व्रत चैत्र शुक्ल एकादशी, 27 मार्च 2018 (मंगलवार) को पड़ रही है। जो मनुष्य कामदा एकादशी का व्रत जिस कामना के साथ करता है उसकी पूर्ती होती है। साथ ही पारिवारिक जीवन से संबंधित समस्याओं का स्वतः समाधान हो जाता है।
चैत्र मास की एकादशी अन्य मास की अपेक्षा और भी अधिक खास महत्व रखता है। क्योंकि चैत्र मास में ही भारतीय नव संवत्सर की शुरुआत होती है। शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य कामदा एकादशी का व्रत करता है वह प्रेत-आत्मा की योनि से मुक्ति पाता है। कामदा एकादशी का उल्लेख विष्णु पुराण में किया गया है। कामदा एकादशी को समस्त सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए बेहद खास माना गया है। कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है।
कामदा एकादशी 2018 तिथि और शुभ-मुहूर्त
पारण का समय – 06:59 से 08:46 बजे (28 मार्च 2018)
पारण के दिन हरि वास का समय समाप्त -06:59 बजे (28 मार्च 2018)
एकादशी तिथि प्रारंभ – 03:43 बजे (27 मार्च 2018)
एकादशी तिथि समाप्त – 01:31 (28 मार्च 2018)
एकादशी व्रत का पारण कब करें और कब नहीं करें
एकादशी व्रत के दूसरे दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। पारण का अर्थ होता है उपवास समाप्त कर अन्न ग्रहण करना। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले अवश्य ही कर लेना चाहिए यदि ऐसा नहीं करते है तो व्रत का पूरा फल नहीं मिल पाता है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही कर लेना चाहिए। द्वादशी तिथि के भीतर यदि पारण नहीं करते है तो पाप करने के समान होता है। आठों प्रहर निर्जल (बिना पानी पिए) रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करें। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
ये है कामदा एकादशी व्रत की पूजा विधि
कामदा एकादशी व्रत के दिन स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
इस दिन एकादशी व्रत की कथा सुनने का विशेष महत्व है। द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।इसके बाद ब्राहमण को भोजन दक्षिणा देकर ही विदा करना चाहिए। ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा के बाद ही पारन करना चाहिए।
कामदा एकादशी पर करें संतान की कामना करें पूरी
सच्चे और पवित्र मन से जो भी मांगा जाये तो ईश्वर उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। पंडित शर्मा के अनुसार संतान की प्राप्ति करने वालों के लिए कामदा एकादशी बेहद लाभकारी है।
*पत्नी पत्नी संयुक्त रूप से भगवान कृष्ण को पीला फल और पीले फूल अर्पित करें
*संतान गोपाल मंत्र का कम से कम 11 बार माला का जाप करें
*माला जपने के बाद संतान प्राप्ति की कामना करें
*फल को पति पत्नी प्रसाद के रूप में ग्रहण करें
जानिए कामदा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
पुराणों में प्रत्येक मास की एकादशी का माहात्म्य कथाओं के माध्यम से व्याख्यायित किया गया है। चैत्र शुक्ल एकादशी यानि कामदा एकादशी की कथा कुछ इस प्रकार है।
हुआ यूं कि एक बार धर्मराज युद्धिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के सामने चैत्र शुक्ल एकादशी का महत्व, व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की। भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे कुंते बहुत समय पहले वशिष्ठ मुनि ने यह कथा राजा दिलीप को सुनाई थी वही मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं।
रत्नपुर नाम का एक नगर होता था जिसमें पुण्डरिक नामक राजा राज्य किया करते थे। रत्नपुर का जैसा नाम था वैसा ही उसका वैभव भी था। अनेक अप्सराएं, गंधर्व यहां वास करते थे। यहीं पर ललित और ललिता नामक गंधर्व पति-पत्नी का जोड़ा भी रहता था। ललित और ललिता एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, यहां तक कि दोनों के लिये क्षण भर की जुदाई भी पहाड़ जितनी लंबी हो जाती थी।
एक दिन राजा पुण्डरिक की सभा में नृत्य का आयोजन चल रहा था जिसमें गंधर्व गा रहे थे और अप्सराएं नृत्य कर रही थीं। गंधर्व ललित भी उस दिन सभा में गा रहा था लेकिन गाते-गाते वह अपनी पत्नी ललिता को याद करने लगा और उसका एक पद थोड़ा सुर से बिगड़ गया। कर्कोट नामक नाग ने उसकी इस गलती को भांप लिया और उसके मन में झांक कर इस गलती का कारण जान राजा पुण्डरिक को बता दिया। पुण्डरिक यह जानकर बहुत क्रोधित हुए और ललित को श्राप देकर एक विशालकाय राक्षस बना दिया। अब अपने पति की इस हालत को देखकर ललिता को बहुत भारी दुख हुआ। वह भी राक्षस योनि में विचरण कर रहे ललित के पिछे-पिछे चलती और उसे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने का मार्ग खोजती। एक दिन चलते-चलते वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जा पंहुची और ऋषि को प्रणाम किया अब ऋषि ने ललिता से आने का कारण जानते हुए कहा हे देवी इस बियाबान जंगल में तुम क्या कर रही हो और यहां किसलिये आयी हो। तब ललिता ने सारी व्यथा महर्षि के सामने रखदी। तब ऋषि बोले तुम बहुत ही सही समय पर आई हो देवी। अभी चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि आने वाली है। इस व्रत को कामदा एकादशी कहा जाता है इसका विधिपूर्वक पालन करके अपने पति को उसका पुण्य देना, उसे राक्षसी जीवन से मुक्ति मिल सकती है। ललिता ने वैसा ही किया जैसा ऋषि श्रृंगी ने उसे बताया था। व्रत का पुण्य अपने पति को देते ही वह राक्षस रूप से पुन: अपने सामान्य रूप में लौट आया और कामदा एकादशी के व्रत के प्रताप से ललित और ललिता दोनों विमान में बैठकर स्वर्ग लोक में वास करने लगे।
मान्यता है कि संसार में कामदा एकादशी के समान कोई अन्य व्रत नहीं है। इस व्रत की कथा के श्रवण अथवा पठन मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
वर्तमान समय में राक्षस का अर्थ है जातक अंतःकरण में रहने वाले तामसिक गुण। इस समय यह व्रत करने से सभी प्रकार के तामसिक प्रवृत्तियों का नाश हो जाता है तथा अंतःकरण में सात्विक वृत्तियों का संचार होने लगता है।
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)