नवरात्रि में हर दिन होता है अलग उम्र की कन्या पूजन, क्या है इसका महत्त्व
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नवरात्र में हम मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की अर्चना करते हैं. नवरात्र में कन्या पूजन के बाद ही पूजा सफल होती है. जो लोग पूरे नौ दिन का उपवास करते हैं वो नौ कन्याओं का पूजन करने के बाद ही उपवास पूर्ण करते हैं.
क्या है कन्या पूजन
कन्या पूजन के बिना नवरात्र व्रत को अधूरा माना जाता है. इस दौरान अष्टमी और नवमी को दो से लेकर 10 वर्ष तक की आयु वाली नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है. इस आयु वर्ग की कन्याओं को साक्षात मां का स्वरूप माना जाता है. देवी पुराण के अनुसार इन्द्र ने जब ब्रह्मा जी भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कन्या पूजन ही बताया .
पूजन में नौ कन्याएं ही क्यों
शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छह की पूजा से छह प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है. इसलिए नौ कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व होता है.
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नौ कन्याओं को नौ दुर्गा का रुप माना गया है. नौ दुर्गा का मतलब नौ वर्ष की कन्या की पूजा करना होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं नवरात्रि के हर दिन अलग उम्र की कन्या का पूजन किया जाता है. आइये आपको बताते हैं कन्या पूजन की उम्र और इसके महत्त्व के बारे में.
कुमारिका
2 वर्ष की कन्या को ‘ कुमारिका ‘ कहते हैं. इनका पूजन दूसरे नवरात्र को ही करना चाहिए. ऐसा कहते हैं कि इनके पूजन से धन, आयु और बल की वृद्धि होती है .
त्रिमूर्ति
3 वर्ष की कन्या को ‘ त्रिमूर्ति ‘ कहते हैं. तीसरे दिन मां कूष्मांडा के दिन तीन वर्ष की कन्याओं को पूजना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है.
कल्याणी
4 वर्ष की कन्या को ‘ कल्याणी ‘ कहते हैं. चौथे दिन इस उम्र की कन्याओं का पूजन करना चाहिए. इनके पूजन से सुख तथा लाभ मिलते हैं.
रोहिणी
5 वर्ष की कन्या को ‘ रोहिणी ‘ कहते हैं. पांचवें दिन इस उम्र की कन्याओं को पूजना चाहिए. इनके पूजन से स्वास्थ्य लाभ मिलता है.
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कालिका
6 वर्ष की कन्या को ‘ कालिका ‘ कहते हैं. छठे दिन इस आयु की कन्याओं को पूजना चाहिए. इनके पूजन से शत्रुओं का नाश होता है.
चंडिका
7 वर्ष की कन्या को ‘ चण्डिका ‘ कहते हैं. सातवें दिन इस आयु की कन्याओं को पूजना चाहिए. इनके पूजन से संपन्नता ऐश्वर्य मिलता है.
शाम्भवी
8 वर्ष की कन्या को ‘शाम्भवी’ कहते हैं. आठवें दिन इस आयु की कन्याओं को पूजना चाहिए.इनके पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है.
दुर्गा
9 वर्ष की कन्या को ‘ दुर्गा ‘ कहते हैं. नौवे दिन इस आयु की कन्याओं को पूजना चाहिए. इनके पूजन से कठिन कार्यों की सिद्धि होती है.
सुभद्रा
10 वर्ष की कन्या को ‘ सुभद्रा ‘ कहते हैं. नौवें दिन इस वर्ष की कन्याओं को पूजना चाहिए. इनके पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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