भगवान महादेव जितने सरल शिव हैं, उतना ही विकट उनका स्वरूप है. गले में सर्प, कानों में बिच्छू के कुंडल, तन पर वाघंबर, सिर पर त्रिनेत्र, हाथों में डमरू, त्रिशूल और वाहन नंदी।
भगवान शिव के इस अद्भुत स्वरूप से हमें कहीं बातें सीखने को मिलती हैं। तो चलिए जानते हैं भगवान शिव का स्वरुप हमें क्या सिखाता है-
गले में सर्प और कान में कुंडल
गले में सर्प और कान में बिच्छु के कुंडल दोनों ही विषैले है. उनका यह स्वरुप हमें सिखाता है कि हमारे आसपास कितने ही बुरे लोग क्यों न हों, अगर आप सही हैं तो वे आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं.
तन पर भस्म और बाघम्बर
भस्म और बाघम्बर इस बात का प्रतीक है हमें सदैव ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए जिसमें हम सुविधाजनक महसूस कर सकें. वस्त्र तन ढकने के लिए होते हैं. महंगे कपड़े आपको आम लोगों से दूर कर सकते हैं।
तीसरा नेत्र
भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञानेंद्री का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि अपनी सोच हमेशा सकारात्मक रखनी चाहिए और अपने आसपास हो रहे न्याय-अन्याय पर नजर रखनी चाहिए।
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डमरू
भगवान शिव अपने हाथ में डमरू धारण करते हैं. हाथ में डमरू हमारी खुद की वाणी है. शिव हमेशा डमरू नहीं बजाते, समय आने पर ही उससे ध्वनि निकलती है. यह सिखाती है कि हमें समय आने पर परिस्थिति को समझ कर ही बोलना चाहिए.
नंदी वाहन
नंदी भगवान शिव का वाहन है. बैल को धर्म का प्रतीक माना गया है. शिव का वाहन धर्म है, यह प्रतीक हमें यह सीख देता है कि हमारा वाहन यानी जीने का सिद्धांत धर्म होना चाहिए, अधर्म नहीं। धर्म से ही हमें सफलता और और शांति मिलेगी।
त्रिशूल
त्रिशूल शिव का हथियार है। त्रिशुल के तीनों फन भूत, भविष्य और वर्तमान को दर्शाते हैं। भगवान शिव का तीनों पर नियंत्रण हैं। हम वर्तमान में जीना चाहिए, भविष्य के लिए योजनाएं बनानी चाहिए और अतीत के अनुभव से सीखना चाहिए। सफलता के ये तीन सूत्र ही त्रिशुल के तीन फन दर्शाते हैं।