माँ बगलामुखी जयंती : 23 अप्रैल : जानिए माँ बगलामुखी जयंती की कथा एवं इतिहास
दस महाविद्या में आठवीं स्वरूप देवी बगलामुखी का है। माता बगलामुखी पीली आभा से युक्त हैं इसलिए इन्हें पीताम्बरा कहा जाता है। बगलामुखी की पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व है।
बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है। देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है. तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले बगलामुखी माता को प्रसंन करना जरूरी है बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं। रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है |
बगलामुखी अवतरण दिवस
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माँ बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है। जिस कारण इस तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है।
इस वर्ष माँ बगलामुखी जयंती 23 अप्रैल 2018 (सोमवार) को है। इनका प्राकट्य स्थान गुजरात का सौराष्ट्र में माना जाता है। मां बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
बगलामुखी का महाभारत कालीन मंदिर
मध्यप्रदेश के आगर जिले में नलखेड़ा कस्बे में माँ बगलामुखी का महाभारत कालीन भव्य और प्राचीन मन्दिर स्थित हैं ।प्रचलित कथानुसार इस मंदिर की स्थापना धर्मराज युदिष्ठिर में महाभारत युद्ध के समय की थी।
यहाँ पर माता बगलामुखी की स्वयम्भू प्रतिमा शमशान क्षेत्र में स्थित होने से तंत्र में इसका बहुत अधिक हैं। यहां दूर दूर से साधक आकर साधना सम्पन्न करते हैं।
नलखेड़ा में वैशाख मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को मां बगुलामुखी का जन्मदिवस (जयन्ति)बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।यह स्थान ( मां बगलामुखी शक्ति पीठ) नलखेड़ा में नदी के किनारे स्थित है स्वयंभू प्रतिमा है । यह शमशान क्षेत्र में स्थित हैं। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के 12 वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार की थी। देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है। तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा में हैं।
माँ बगलामुखी को पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। माता बंगलामुखी की पूजा तंत्र विधि की पूजा होती है। इसलिए इनकी पूजा बिना किसी गुरु के निर्देशन में नहीं करनी चाहिए।
जानिए माँ बगलामुखी जयंती की कथा एवम इतिहास
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माँ बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है। जिस कारण इस तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष सोमवार (23 अप्रैल 2018 ) को बगलामुखी जयंती है । मां बगलामुखी को पीताम्बर या ब्रह्मास्त्र रुपणी भी कहा जाता है। शत्रुओ को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाक्सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिये माॅ बगुलामुखी की उपासाना की जाती है। इनकी उपासना में हल्दी की माला पीले फूल और पीले वस्त्रो का विधान है। दश माहविद्याओ में इनका आठवां स्थान है।
साधक को इस दिन माँ बगलामुखी की निमित्त पूजा-अर्चना एवम व्रत करना चाहिए। माता बगलामुखी की कृपा से शत्रु का नाश होता है एवम साधक के जीवन से हर प्रकार की बाधा दूर होती है।
यह हैं माँ बगलामुखी अवतरण की कथा
हिन्दू धर्म के अनुसार एक बार सतयुग में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने वाला तूफान उतपन्न हुआ, जिससे समस्त लोको में हाहाकार मच गया और समस्त लोक के लोग संकट में आ गए। इस संकट की समस्या में भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।
जब भगवान विष्णु जी को कोई उपाय ना सुझा तो उन्होंने शिवजी को स्मरण किया। तब भगवान शिवजी ने कहा कि यदि कोई इस विनाश को रोक सकता है तो वो शक्ति रूप है। आप उनकी शरण में जाएँ।
तत्पश्चात, भगवान विष्णु जी ने कठिन तपस्या करके शक्ति रूप देवी को प्रसन्न किया। तदोपरांत माता बगलामुखी देवी प्रकट होकर समस्त लोकों को इस संकट से उबारा। अतः इस दिन से समस्त लोको में माता बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ।
ऐसे करें माता बगलामुखी व्रत पूजन
इस दिन प्रातः काल उठे, नियत कर्मो से निवृत होकर पीले रंग का वस्त्र धारण करें। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार व्रती को साधना अकेले मंदिर में अथवा किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर माता बगलामुखी की पूजा करनी चाहिए। पूजा की दिशा पूर्व में होना चाहिए। पूर्व दिशा में उस स्थान को जहाँ पर पूजा करना है। उसे सर्वप्रथम गंगाजल से पवित्र कर ले।
तत्पश्चात उस स्थान पर एक चौकी रख उस पर माता बगलामुखी की प्रतिमूर्ति को स्थापित करें। तत्पश्चात आचमन कर हाथ धोए, आसन पवित्र करे। माता बगलामुखी व्रत का संकलप हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, एवम पीले फूल तथा दक्षिणा लेकर करें। माता की पूजा धुप, दीप, अगरबत्ती एवम विशेष में पीले फल, पीले फूल, पीले लड्डू का प्रसाद चढ़ा कर करना चाहिए।
व्रत के दिन व्रती को निराहार रहना चाहिए। रात्रि में फलाहार कर सकते है। अगले दिन पूजा करने के पश्चात भोजन ग्रहण करे।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार माँ बगलामुखी की पूजा-अर्चना करने से शत्रु रोग-कष्ट कर्ज आदि पर विजय प्राप्त होती है। संसार का कोई ऐसा संताप नहीं है जिसका निवारण इनकी अराधना से संभव न हो। जीवन में अगर कभी ऐसा समय आए जब शत्रुओं के भय से आप बेहाल हो, सभी रास्ते बंद हो और कानूनी मामलों में आप दलदल की तरह फंसकर रह जाएं। इस बुरे दौर में पूरे ब्रह्मांड की सबसे बड़ी शक्ति मां देवी बगलामुखी की पूजा से आप अपने जीवन को सफल बनाकर मनचाही दिशा दे सकते हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति इनमें समाई हुई है। मां की जयंती के दिन अथवा प्रत्येक बृहस्पति इनकी आराधना करने से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश तथा जीवन में समस्त प्रकार की बाधाओं से मुक्ती मिलती है।
मां बगलामुखी मंत्र –
मंत्र ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
36 अक्षर का माँ बगलामुखी महामंत्र इस प्रकार हैं –
” ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।”
यह सभी जप हल्दी की माला पर करना चाहिए और पूजा में पुष्प, नैवेद्य आदि भी पीले होने चाहिए। साधक पीले वस्त्र पहन कर पीले आसन पर बैठ कर मंत्र जाप करें।