पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाने वाले पर्व पर हर साल भक्त उपवास रखते हैं और घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। मंदिरों में जन्माष्टमी की तैयारी एक हफ्ते पहले से शुरू हो जाती है। मध्य रात्रि में जन्म के बाद भगवान को नई पोशाक पहनाई जाती है और माखन-मिश्री के साथ 56 भोग चढ़ाया जाता है।
56 भोग में 56 अलग-अलग तरह के व्यंजन होते हैं जो जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को अर्पित करने की सदियों से परंपरा चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर कृष्ण जन्माष्टमी पर 56 भोग क्यों लगाया जाता है और इसकी परंपरा कब से शुरू हुई…
आठ पहर भोजन करते थे कृष्ण
भगवान कृष्ण जब गोकुल में नंदलाल और मां यशोदा के साथ रहते थे तब उनकी मां हर दिन आठ पहर अर्थात दिन में आठ बार अपने हाथ से भोजन कराती थी। एकबार ब्रजवासी स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा करने के लिए बड़ा आयोजन कर रहे थे। कृष्ण ने नंदबाबा से पूछा कि आखिर यह आयोजन किस चीज का हो रहा है। तब नंदबाबा ने कहा कि इस पूजा देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और वह अच्छी बारिश करेंगे।
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इंद्रदेव को आ गया क्रोध
कृष्णजी ने कहा कि वर्षा करना इंद्र का काम है तो उनकी पूजा क्यों करना। अगर पूजा करनी है तो गोवर्धन पर्वत की करें क्योंकि इससे फल-सब्जियां प्राप्त होती हैं और पशुओं को चारा मिलता है। तब सभी को कृष्ण की बात अच्छी लगी और सभी ने इंद्र की पूजा न करके गोवर्धन की पूजा करना शुरू कर दिया। इंद्रदेव ने इसको अपना अपमान समझा और उनको क्रोध आ गया।
कृष्ण ने की ब्रजवासियों की रक्षा
क्रोधित इंद्रदेव ने ब्रज में भयंकर बारिश कर दी, हर तरफ पानी ही पानी नजर आने लगा। ऐसा नजारा देखकर ब्रजवासी घबरा गए तब कृष्ण ने कहा कि गोवर्धन की शरण में चलिए वही हमको इंद्र के प्रकोप से बचाएंगे। कृष्णजी ने कनिष्ठा उंगली पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और पूरे ब्रज की रक्षा की। भगवान कृष्ण ने सात दिनों तक बिना कुछ खाए पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा।
ब्रजवासियों ने बनाए 56 भोग
जब आठवें दिन बारिश बंद हुई और सारे ब्रजवासी पर्वत के बाहर निकले। इसके बाद सभी ने सोचा कि कृष्ण ने सात दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाकर हमारी रक्षा की थी। तब माता यशोदा समेत ब्रजवासियों ने कन्हैया के लिए हर दिन के आठ पहर के हिसाब से सात दिनों को मिलाकर कुल 56 प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए थे। छप्पन भोग में वही व्यंजन होते हैं जो कृष्ण कन्हैया को पंसद थे।
ऐसा होता है 56 भोग का प्रसाद
बहुत से भक्त 20 तरह की मिठाई, 16 तरह की नमकीन और 20 तरह के ड्राई फ्रूट्स चढ़ाते हैं। आमतौर पर छप्पन भोग में माखन मिश्री, खीर, बादाम का दूध, टिक्की, काजू, बादाम, पिस्ता, रसगुल्ला, जलेबी, लड्डू, रबड़ी, मठरी, मालपुआ, मोहनभोग, चटनी, मूंग दाल का हलवा, पकौड़ा, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, लौकी की सब्जी, पूरी, मुरब्बा, साग, दही, चावल, इलायची, दाल, कढ़ी, घेवर, चिला और पापड़ होती है।
भोग में ये होता है शामिल
भगवान को चढ़ाए जाने वाले छप्पन भोग में 16 तरह के नमकीन, 20 तरह की मिठाईयां और 20 तरह के मेवे चढ़ाए जाते हैं। इनमें मक्खन, खीर, दूध, चावल, बेसन से बने पकवान शामिल रहते हैं। छप्पन भोग चढ़ाने का भी एक नियम होता है। सबसे पहले भगवान पर दूध चढ़ाया जाता है, फिर बेसन से बने पकवान या नमकीन दिए जाते हैं। उसके बाद सबसे आखिरी में मिठाइयां चढ़ाई जाती हैं।
छप्पन भोग के नाम इस प्रकार है
1. भक्त (भात), 2. सूप (दाल), 3. प्रलेह (चटनी), 4. सदिका (कढ़ी), 5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), 6. सिखरिणी (सिखरन), 7. अवलेह (शरबत), 8. बालका (बाटी), 9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), 10. त्रिकोण (शर्करा युक्त), 11. बटक (बड़ा), 12. मधु शीर्षक (मठरी), 13. फेणिका (फेनी), 14. परिष्टश्च (पूरी), 15. शतपत्र (खजला), 16. सधिद्रक (घेवर), 17. चक्राम (मालपुआ), 18. चिल्डिका (चोला), 19. सुधाकुंडलिका (जलेबी), 20. धृतपूर (मेसू), 21. वायुपूर (रसगुल्ला), 22. चन्द्रकला (पगी हुई), 23. दधि (महारायता), 24. स्थूली (थूली), 25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26. खंड मंडल (खुरमा), 27. गोधूम (दलिया), 28. परिखा, 29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30. दधिरूप (बिलसारू), 31. मोदक (लड्डू), 32. शाक (साग), 33. सौधान (अधानौ अचार), 34. मंडका (मोठ), 35. पायस (खीर), 36. दधि (दही), 37. गोघृत (गाय का घी), 38. हैयंगपीनम (मक्खन), 39. मंडूरी (मलाई), 40. कूपिका (रबड़ी),41. पर्पट (पापड़), 42. शक्तिका (सीरा), 43. लसिका (लस्सी), 44. सुवत, 45. संघाय (मोहन), 46. सुफला (सुपारी), 47. सिता (इलायची), 48. फल, 49. तांबूल, 50. मोहन भोग, 51. लवण, 52. कषाय, 53. मधुर, 54. तिक्त, 55. कटु, 56. अम्ल।
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