कुम्भ-2019: कैसी है नागा बाबाओं की रहस्यमयी दुनिया
कड़कड़ाती सर्दी में कुम्भ मेले में आपने नागा बाबाओं को ज़रूर देखा होगा. नग्न शरीर पर भभूत लगाये अपने में मस्त नाचते गाते नागा बाबा. कैसी होती है इन नागा बाबाओं की रहस्यमयी दुनिया. कहाँ से आते हैं यह नागा साधू और क्या प्रक्रिया है उनके नागा साधू बनने की. आइये आज लेकर चलते हैं आपको नागा बाबाओं के इस रहस्यमय संसार में-
क्या है नागा साधुओं का इतिहास
सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की. उनके बाद शुकदेव ने, फिर अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके से नया आकार दिया. बाद में शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया. बाद में अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई. पहला अखाड़ा अखंड आह्वान अखाड़ा’ सन् 547 ई. में बना.
नाथ परंपरा
ऐसा माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है. नवनाथ की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है. गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि. घुमक्कड़ी नाथों में ज्यादा रही.
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा साधु
संतों के तेरह अखाड़ों में केवल सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये प्रमुख अखाड़े हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा.
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कैसे बनते हैं नागा साधू
नागा साधु बनने के लिए इतनी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद कोई आम आदमी इसे पार ही नहीं कर पाए. नागाओं को आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है. इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं.
पहली प्रक्रिया जांच पड़ताल
जब किसी भी व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि वह सारे सांसारिक भोग-विलास का जीवन त्यागकर नागा साधु बनने का निर्णय लेता है उसे किसी अखाड़े से सम्पर्क करना होता है. अखाड़ा अपने स्तर उस व्यक्ति और उसके परिवार के बारे में सारी जानकारी एकत्र करता है. सारी जानकारी लेने के बाद अखाड़े में प्रवेश मिलता है.
दूसरी प्रक्रिया ब्रह्मचर्य का पालन
अखाड़े में प्रवेश मिलने के बाद व्यक्ति को ब्रह्मचर्य के कठोर नियमों का पालन और परीक्षा देनी होती है. इस प्रक्रिया में 6 महीने से लेकर 12 साल तक का समय लग जाता है. ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास करने के बाद ही उसे अगली प्रक्रिया में शामिल करने का मौका मिलता है.
तीसरी प्रक्रिया महापुरुष बनने की प्रक्रिया
ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास करने के बाद साधु को महापुरुष बनाया जाता है. इसके लिए लिए 5 गुरु बनाए जाते हैं उन्हीं के दिशा निर्देशों का उन्हें पालन करना होता है.
चौथी प्रक्रिया स्वयं का पिंडदान और श्राद्ध करना
नागा साधु बनने के लिए यह प्रक्रिया सबसे खास मानी जाती है. महापुरुष बनने के बाद नागा साधु को अवधूत बनने की परीक्षा देनी होती है. इस प्रकिया में सबसे पहले मुंडन किया जाता है इसके बाद स्वयं को मृत मानकर अपने हाथों से श्राद्ध और पिंडदान करते हैं.
पांचवी प्रक्रिया नपुंसक बनाना
अवधूत की परीक्षा पास करने के बाद नागा को दिगंबर साधु बनने की परीक्षा देनी होती है. इस प्रक्रिया में साधु को नग्न अवस्था में 24 घंटे के लिए अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा होना पड़ता है. बाद में अखाड़े का एक वरिष्ठ साधु उस व्यक्ति के लिंग की एक विशेष नस खींचकर उसे नपुंसक बना देता है.
छठी प्रक्रिया गुरुमंत्र
दीक्षा के बाद गुरु से नागा साधु को गुरुमंत्र मिलता है. यह गुरु मंत्र हमेशा उसके जीवन तक उसका साथ देता था.
सातवीं प्रक्रिया शरीर पर भस्म और रूद्राक्ष धारण करना
नागा साधु कभी भी अपने शरीर पर किसी भी तरह का कोई वस्त्र नहीं पहनते. नागा साधुओं को भस्म एवं रूद्राक्ष धारण करना पड़ता है. स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं. यह भस्म भी प्रतिदिन ताजी होती है.सूर्योदय से पूर्व उठ जाने के बाद नित्यक्रिया और स्नान के बाद नागा साधु अपना श्रृंगार करते हैं. भभूत, रुद्राक्ष, कुंडल आदि से श्रृंगार करने वाले नागा साधु अपने साथ त्रिशूल, डमरू, तलवार, चिमटा, चिलम आदि साथ रखते हैं.
आठवी प्रक्रिया जीवनभर एक समय भोजन करना
नागा साधु बनने पर दिन में केवल एक ही समय भोजन करना होता है. नागा साधु को केवल 7 घरों में ही भिक्षा मांगने का अधिकार होता है.
नवी प्रक्रिया बस्ती के बाहर रहना और जमीन पर सोना
नागा साधु को जिंदगी भर जमीन पर ही सोना पड़ता है और सूनसान जगहों पर ही निवास करना होता है. नागा संनयासी कभी भी एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं टिकते हैं और पैदल ही भ्रमण करते हैं.
दसवी प्रक्रिया पद प्राप्त करना
नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, और महामंडलेश्वर जैसे पद प्राप्त होते हैं.
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कैसे मिलती है नागा साधुओं को उपाधियां
चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं.इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को नागा; उज्जैन के कुंभ में उपाधि पाने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार के कुंभ में उपाधि पाने वाले को बर्फानी नागा तथा नासिक के कुंभ में उपाधि पाने वाले को खिचडिया नागा कहा जाता है. इससे यह जानकारी मिलती है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है.
कैसे बनती है नागा साधुओं की भभूत
नागा बाबाओं क विशेष श्रिंगार भभूत से ही होता है . नागा साधु की भभूत लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार होती है. नागा बाबा या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या फिर यह राख धुनी की होती है
हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं. इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है. इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है. इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है. यही भस्म ही नागा साधुओं का वस्त्र होता है.