नाथ संप्रदाय जहाँ गुरु -शिष्य परंपरा से जुड़ी परंपरा है सबसे कठिन
कुंभ मेले में प्रथम बार नाथ संप्रदाय का अखाड़ा शामिल हुआ है. ऐसा नहीं है की कुम्भ में नाथ पहली बार शामिल हुए हैं लेकिन अखाड़े के रूप में उनका यह प्रथम कुम्भ है. यहां कल्पवास करने नाथ संप्रदाय के प्रमुख/ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जल्द पहुंचेंगे. ऐसी मान्यता है कि उसकी स्थापना आदिनाथ भगवान शिव ने की थी. यह कथा भी प्रचलित है कि भगवान से ही मत्स्येन्द्रनाथ ने ज्ञान प्राप्त किया था और फिर मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ हुए. इस संप्रदाय में गुरु -शिष्य परंपरा से जुड़ी परंपरा सबसे कठिन मानी जाती है.
कर्ण छेदन के उपरांत ही नाथ संप्रदाय में होता है पहला प्रवेश
नाथ संप्रदाय में गुरु-शिष्य परंपरा बहुत कठिन है. सबसे कठिन परीक्षा कर्ण छेदन के दौरान होती है. नाथ संप्रदाय में कान के निचले हिस्से में नहीं, बल्कि ठीक बीच के हिस्से में छेदन होता है, जहां से नसें और हड्डियां होती हैं. शिष्य इस दर्द को जब सह लेता है, तभी उसको नाथ संप्रदाय में पहला प्रवेश मिलता है. कहीं-कहीं लोग इसे कान फाड़ना भी कहते हैं.
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हठ योग द्वारा होती है छोटी दीक्षा
सर्वप्रथम शिष्य को पांच से सात साल गुरु सानिध्य में रहना पड़ता है. सबसे पहले हठ योग द्वारा छोटी दीक्षा के साथ शिष्य का मुंडन कर चोटी काटी जाती है. उसका नामकरण कर नाथ जनेऊ पहनाया जाता है. चोटी काटने का मतलब उसका पूर्व जन्मों का लेखा-जोखा खत्म कर अब से नया जन्म होना माना जाता है. इसके बाद ही मंत्र मिल पाता है.
40 दिन तक रहते हैं गुप्त स्थान पर
गुरु के आदेशानुसार शिष्य को कर्ण छेदन के बाद 40 दिनों तक गुप्त स्थान पर रहना होता है. कर्ण छेदन को चीरा गुरु भी कहा जाता है. गुरु के आदेश पर शिष्य को 40 दिनों तक ऐसे स्थान पर बिना उपचार रहना होता है, जहां किसी से मिलना न हो सके. इसे अवधूत रूप में रहना कहते हैं. भोजन भी 40 दिनों तक वही करना होता है, जो गुरु आदेश होता है. गुरु ही अत्यधिक जरूरत पड़ने पर मिलता है. 40 दिनों में हठ योग के जरिये तपस्या सीखता है. कहा जाता है कि ऐसा करने से संसार, परिवार, भोग-विलासता से मोह भंग हो जाता है.
शैव संप्रदाय के अंतर्गत आता है नाथ सम्प्रदाय
वैदिक,वैष्णव, शैव और स्मार्त हिन्दुओं के प्रमुख संप्रदाय हैं. शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं. उन्हीं में दसनामी और बारह गोरखपंथी संप्रदाय शामिल है. जिस तरह शैव के कई उप संप्रदाय हैं उसी तरह वैष्णव और अन्य के भी. भारत में नाथ संप्रदाय को संन्यासी, योगी, जोगी, उपाध्याय, बाबा, नाथ, अवधूत आदि नामों से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि नाथ संप्रदाय के साधु-संत, दुनिया भर में भ्रमण के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुकते हैं और वहां अखंड धूनी रमाते हैं. अगर वे ये ना करना चाहें तो हिमालय में खो जाते हैं. एक नाथ साधु हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करते हैं.
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नाथ संप्रदाय में कई विदेशी शिष्य भी शामिल है
नाथ संप्रदाय में 4000 से ज्यादा जुडे़ विदेशी शिष्यों की संख्या है. जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रेलिया समेत कई स्थानों पर सैकड़ों विदेशी भी इस परंपरा से जुड़े हैं. देश में 80 से अधिक नाथ संप्रदाय से जुड़े मठ, आश्रम हैं. सभी लोग कुंभ के दौरान प्रयागराज आएंगे. सबसे ज्यादे अनुयायी जर्मनी में हैं.
अन्य देशों में भी है नाथ संप्रदाय के मठ
नाथ संप्रदाय के मठ-मंदिर भारत के अलावा अनेक देशों में फैले हैं. नेपाल, पाकिस्तान, काबुल, म्यांमार समेत अनेक देशों में इसकी शाखाएं हैं. जबकि गुरु गोरखनाथ अखाड़ा का मुख्यालय हरिद्वार में है. उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अखिल भारतवर्षीय अवधूत मेध बारहपंथ योगी महासभा के अध्यक्ष हैं. नाथ सम्प्रदाय की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है. विश्व में योग-ध्यान की साधना के जरिए मानव को संन्मार्ग पर चलाना इस संप्रदाय का उद्देश्य है, जिसको लेकर विश्वभर में मुहिम चल रही है.
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